Book Title: Smruti Sandarbh Part 02
Author(s): Maharshi
Publisher: Nag Publishers

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Page 11
________________ अध्याय प्रधान विषय पृष्ठाङ्क आचार धर्मवर्णनम्- ६२६ १ . "आचार भ्रष्टदेहानां भवेद्धर्मः पराङ्मुख" । व्यासजी ने अपना सिद्धान्त स्पष्ट किया है कि यदि मनुष्य आचार से च्युत है तो उसे धर्मपराङ्मुख समझना चाहिए। सदाचार विहित धर्म मर्यादा को नहीं जान सकता है। "सन्ध्यास्नानं जपो होम स्वाध्यायो देवतार्चनम् । वैश्वदेवातिथेयश्च षट्कर्माणि दिने दिने ॥ (३६) षट्कर्माभिरतो नित्यं देवताऽतिथिपूजकः । हुतशेषन्तु भुञ्जानो ब्राह्मणो नावसीदति" ॥ (३८) षट् कर्म का निरूपण, गृहस्थी को अतिथि का सत्कार परमावश्यक है वैश्वदेव कर्मादि का निरूपण और अतिथि का लक्षण ( ३८-५८)। राजा को प्रजा से सर्वस्वशोषण का निषेध "पुष्पं पुष्पं विचिनुयान्मूलच्छेदं न कारयेत्" मालाकार का उदाहरण दिया है (५८-समाप्ति तक)। २ गृहस्थाश्रमधर्मवर्णनम् । ६३१ द्वितीयाध्याय में गृहस्थी के धर्माचार का निर्देश किया है (१)।

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