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[ २२ ] अध्याय प्रधानविषय
ठाङ्क से ज्यादा माहात्म्य कहा गया है (८६-६३)। उषाकाल के स्नान की प्रशंसा कर और स्नानकाल में स्नान न कर हजामत या दंतधावन करें उसे रौरव नरक और पितृ श्राप कहा है (६४-६६)। गङ्गा और कुएँ के स्नान का माहात्म्य तथा स्नान का समय बताया गया है (१७-१०८)। भाद्रपद के महीने में नदी के स्नान का निषेध बताया है क्योंकि नदियाँ रजस्वला रहती हैं किन्तु जो नदियां सीधी समुद्र में जाती हैं उनमें स्नान हो सकता है ( १०६-११०)। रवि संक्रान्ति में और ग्रहण में अमावास्या में, व्रत के दिन, षष्ठी तिथि पर
गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिये (१११-११२ )। २ स सदाचार नित्यकम वर्णनम् । ६६६ किस प्रकार स्नान करना अर्थात् स्नान करने की विधि बतलाई है (११३-१२३)। स्नान का मन्त्र, पञ्चगव्य स्नान के मंत्र, मिट्टी लगाने के मंत्र आदि जिन मंत्रों का उचारण करना है उनका वर्णन किया गया है (१२४१४८)। स्नान का फल और स्नान करने का विधान, विना मंत्रों के स्नान करने से स्नान का कोई फल नहीं होता है यह बताया गया है जैसे जल में मच्छी पैदा होती है और वहीं लय हो जाती है (१४६-१५०)।