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[ ३२ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क के अनुसार स्त्री नहीं कही जा सकती है (२२)। जहां कन्या नहीं देनी चाहिये उनको बताया है ( २३-२७) । उन लड़कियों के लक्षण लिखे हैं जिनके साथ विवाह नहीं करना हैं और कन्यादान करने का जिनका अधिकार है उनका वर्णन (२८-३२)। उन कन्याओं का वर्णन है जिनके साथ विवाह हो सकता है (३३-३०) कन्यादान और कन्या के लक्षण जिनको कि दायविभाग
मिल सकता है उनका वर्णन (३८-४०)। ६ लक्ष्मीस्वरूपा स्त्री वर्णनम् ।
७५८ गृहस्थी को त्रियों की इच्छा का अनुमोदन करना तथा उनको प्रसन्न रखना यह गृहस्थ की सम्पत्ति और श्रेय का साधन बताया है (४१-४५)। स्त्रीपुरुष में जहां विवाद होता है वहां धर्म, अर्थ, काम सभी नष्ट हो जाते हैं (४६-४७)। स्त्रियों को पतिव्रत पर रहना और इसका अनुशासन और पतिव्रता न रहने से नारकीय दारुण दुःखों का होना बताया है (४८-५५)। ६ . गृहस्थधर्म वर्णनम्।
स्त्री शक्तिरूपा है एवं शक्ति का स्रोत है। सारे संसार की उत्पादिका शक्ति भी स्त्री जाति ही है। उसका संरक्षण कुमार्यावस्था में पिता द्वारा तथा युवावस्था में