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[ २७ ] अध्याय
प्रधानविषय ४ वैश्वदेव विधिवर्णनम् ।
७२८ वैश्वदेव विधि का वर्णन करते समय बताया है कि जो बिना अग्नि को चढ़ाये खाता है अथवा बिना बलि वैश्वदेव किये जो अन्न परोसा जाता है वह अभोज्य अन्न है। जिस अग्नि में अन्न पकाये उसी में अन्न का हवन करना चाहिये और हवन करने के मन्त्र तथा
विधान लिखा है (१५५-१६३)। ४ आतिथ्य विधिवर्णनम् ।
७३२ अतिथि की विधि और अतिथि को भोजन देने का माहात्म्य लिखा है। अतिथि का लक्षण, जैसे जो कि भूखा, प्यासा, माग चलने से थका हुआ प्राणरक्षा मात्र चाहता है यदि ऐसा अतिथि अपने घर आवे तो उसे विष्णु रूप समझना चाहिये। गृहस्थी के लिये अतिथि सत्कार परम धम बतलाया है (१६४-२११)। वर्णाश्रम धर्म वर्णनम् ।
७३४ वर्णाश्रम धर्म बताये हैं, जैसे यज्ञ करना, कराना, दान
देना, लेना, पढ़ना, पढ़ाना ये छः कर्म ब्राह्मण के कहे हैं इसी प्रकार क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के कर्म का