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[ २३ ] अन्याय
प्रधान विषय मन्त्र के उच्चारण का विधान, उदात्त अनुदात्त, स्वरित, प्लुत स्वरों के उच्चारण का क्रम बताया गया है (१५१-१५५) किस अङ्ग में कितनी बार मिट्टी लगानी चाहिये उसका विधान और शरीर पर ॐ का कहाँ कहाँ पर और कितनी बार लिखना इसका विधान, स्नान के समय गायत्री का जप और स्नानान्तर गायत्री के मन्त्र का
जप करने का निर्देश किया गया है (१५६-१६८)। २ श्राद्ध इति कर्तव्यता, तर्पण वर्णनम् । ७०४ तपण की विधि, देवताओं के तर्पण, पितरों के तर्पण, मनुष्यों के तर्पण और अपने वंशजों का तर्पण तथा
यक्षों के तर्पण की विधि बताई गई हैं (१६६-२२०)। २ कर्तव्यवर्णनम् । तस।
७०६ मनुष्य के हाथ पर ब्रह्मतीर्थ, पितृतीर्थ, प्राजापत्य तीर्थ, सौमिक तीर्थ तथा दैव्य तीर्थ ये पंचतीथ बताये गये हैं । स्नान करके इन पांच तीर्थों से जल चढ़ाना चाहिये (२२१-२२४)। बिना स्नान किये भोजन करता है उसकी निन्दा और स्नान करने से दुःस्वप्न का नाश बताया गया है। स्नान करने के यह फल बताये हैं (२२५-२२६) यथा