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अध्याय
[ ११ ]
प्रधान विषय
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"उपवासो व्रतं चैव स्नानं तीर्थ जपस्तपः । विप्रैः सम्पादितं यस्य सम्पन्नं तस्य तद्भवेत् " ॥
ब्राह्मण जो व्यवस्था देते हैं उसके अनुसार चलने का माहात्म्य ( ४३ - ५८ ) । ब्राह्मण के वाक्य तथा उनका माहात्म्य (५६-६१ ) | अभोज्य अन्न, भोजन करते समय कैसे बैठना चाहिये उसका विधान | कुत्ते स्पर्श किया हुआ अन्न त्याज्य बताया है और चाण्डाल का देखा हुआ अन्न त्याज्य बताया है ( ६२-६३ ) । एक बड़ी संख्या में जो अन्न अशुद्ध हो जाय तो उसे त्याज्य नहीं बतलाया है बल्कि उसे सोने के जल से अथवा अग्नि से शुद्ध किया जा सकता है ( ६४ समाप्ति) ! ७ द्रव्यशुद्धि वर्णनम् ।
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लकड़ी के पात्र और यज्ञ पात्र इनकी शुद्धि के सम्बन्ध में बतलाया है ( १-३ ) । स्त्री, नदी, वापी, कूप और तड़ाग की शुद्धि के सम्बन्ध में बताया है ( ४-५ ) । रजस्वला होने से पहले कन्या का दान न करने पर माता पिता को पाप ( ६-६ ) ।
७ स्त्रीशुद्धिवर्णनम् ।
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रजस्वला स्त्री के शुद्धि के सम्बन्ध में बताया है ( १०-१७) ।