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[ १६ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क हुए को दास कहते हैं। जिसके संस्कार हो जाते हैं उसे भी दास कहते हैं और जिसके संस्कार न हो वह नाई होता है (२१-२४ )। ब्रह्मकूर्च उपवास की विधि किस तरह की जाय किस मंत्र से-गोमय, दूध, दही
लावे इसका वर्णन आया है ( २५-३३ )। ११ शुद्धि वर्णनम् ।
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हवन का विधान ( ३४-३५)। ब्रह्मकूर्च का माहात्म्य (३६)।
"ब्रह्म! दहेत्सर्व यथैवाग्निरिवेन्धनम् । पीते-पीते पानी यदि पात्र में रह जाय तो फिर पीने का दोष एवं उसको चान्द्रायण व्रत बतलाया है (३७)। तालाव, कूएँ में जहां जानवर मर गया हो उस जल के पीने में प्रायश्चित्त से शुद्धि (३८-४२)। पंच यज्ञ का विधान ।
समय के ब्राह्मणों की निन्दा न करनी चाहिये (४३-५३ । १२ शुद्धिवर्णनम।
६७५ पुनः संस्कारादि प्रायश्चित्त वर्णनम् । खराब स्वप्न देखने से स्नान करने से शुद्धि (१)। अज्ञान से जो सुरापान करे उसका प्रायश्चित्त ( २-४ )। तीनों