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जिनके लिए जीवन ही कर्म था, और कर्म ही जीवन। जो पक्षाघात से सात माह पीड़ित रहकर, रामनवमी की शाम ( ३ अप्रैल १९७१ ), राम की प्यारी होकर, अपना नाम भी सार्थक कर गयीं। उन्हीं तपस्विनी, ममतामयी, माँ की, पावन स्मृति में। .
-देवेन्द्रकुमार
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