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पहले दोनों प्रकार के मोहनीय कर्म का सर्वथा नाश हो जाता है। अतएव इस
गुणस्थान की उत्पत्ति क्षायिक गुण से है। शंका-उपशम किसे कहते हैं ? समाधान-उदय, उदीरणा, उत्कर्षण-अपकर्षण, परप्रकृति-संक्रमण, स्थितिकाण्डक-घात और
अनुभाग-काण्डक-घात के बिना ही कर्मों के सत्ता में रहने को उपशम कहते हैं। शंका---क्षपक का अलग गुणस्थान और उपशम का अलग गुणस्थान क्यों नहीं कहा गया ? समाधान -तहीं, क्योंकि उपशमक और क्षपक इन दोनों में अनिवृत्तिरूप परिणामों की
अपेक्षा समानता है। शंका-क्षय किसे कहते हैं ? समाधान-जिनके मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृतियों के भेद से प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध,
अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध अनेक प्रकार के हो जाते हैं ऐसे आठ कर्मों का जीव से जो अत्यन्त विनाश हो जाता है उसे क्षय कहते हैं। अनन्तानुबन्धी क्रोध-मानमाया-लोभ तथा मिथ्यात्व, सम्यड्.मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति इन सात प्रकृतियों का असंयतसम्यग्दष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत अथवा अप्रमत्तसंयत जीव नाश
करता है। शंका-इन सात प्रकृतियों का युगपत् नाश करता है या क्रम से ? समाधान-तीन करण करके अनिवृत्तिकरण के चरम समय के पहले अनन्तानुबन्धि चार का
एक साथ क्षय करता है। पश्चात्, फिर से तीनों ही करण करके, उनमें से अधःकरण और अपूर्वकरण इन दोनों को उल्लंघन करके, अनिवत्तिकरण के संख्यात बहुभाग व्यतीत हो जाने पर मिथ्यात्व का क्षय करता है। इसके अनन्तर अन्तर्मुहूर्त व्यतीत कर सम्यङ मिथ्यात्व का क्षय करता है । तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त व्यतीत कर
सम्यक् प्रकृति का क्षय करता है। शंका - हुण्डावसर्पिणी काल के दोष से स्त्रियों में सम्यग्दृष्टि जीव क्यों नहीं उत्पन्न
होता। समाधान-उपर्युक्त दोष के ही कारण उनमें सम्यग्दृष्टि जीव नहीं उत्पन्न होते हैं।
शंका-यह किस प्रमाण से जाना जाता है ? समाधान--इसी आर्षवचन से।
शंका-तो इसी आर्षवचन से द्रव्य-स्त्रियों का मुक्ति जाना भी सिद्ध होगा? समाधान नहीं । क्योंकि वस्त्र सहित होने से उनके संयमासंयम गुणस्थान होता है, अतएव
उनके संयम की उत्पत्ति नहीं होती। शंका-वस्त्ररहित होते हुए भी उन द्रव्य-स्त्रियों के भावसंयम होने में कोई विरोध
नहीं है ?
समाधान-उनके भावसंयम नहीं हैं। अन्यथा, अर्थात् भावसंयम के होने पर उनके भाव
असंयम के अविनाभावी वस्त्रादि का ग्रहण नहीं बन सकता। शंका--तो फिर स्त्रियों के चौदह गुणस्थान होते हैं यह कथन कैसे बन सकेगा? समाधान-भावस्त्री अर्थात् स्त्रीवेद युक्त मनुष्यगति में चौदह गुणस्थानों का सदभाव मान लेने
पर कोई विरोध नहीं आता।
प्रधान सम्पादकीय/११
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