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निवेश वहाँ नहीं है इसलिए उसे मिध्यादृष्टि नहीं कहते, अपितु सासादन सम्यही कहते हैं ।
शंका- एक जीव में एक साथ सम्यक् और मिथ्यादृष्टि सम्भव नहीं हैं इसलिए सम्यग्मिथ्यादृष्टि नाम का तीसरा गुणस्थान नहीं बनता ?
समाधान - युगपत् समीचीन और असमीचीन श्रद्धावाला जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि है, ऐसा मानते हैं और ऐसा मारने में विरोध नहीं आता ।
शंका- पाँच प्रकार के भावों में से तीसरे गुणस्थान में कौन-सा भाव ?
समाधान — तीसरे गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव है ।
शंका- मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से सम्यड्. मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने वाले जीव के क्षायोपशमिक भाव कैसे सम्भव है ?
समाधान – वह इस प्रकार है कि वर्तमान समय में मिथ्यात्व - कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय होने से सत्ता में रहने वाले उसी मिथ्यात्व कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभाव लक्षण उपशम होने से और सम्यड्. मिथ्यात्व कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों का उदय होने से सम्यड्. मिथ्यात्व गुणस्थान पैदा होता है, इसलिए वह क्षायोपशमिक है ।
शंका- औदयिक आदि पांच भावों में से किस भाव के आश्रय से संयमासंयम भाव पैदा होता है ?
समाधान -- संयमासंयम भाव क्षायोपशमिक है, क्योंकि अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय के वर्तमानकालीन सर्वघाती स्पर्धकों के उदयाभावी क्षय होने से और आगामी काल में उदय में आने योग्य उन्हीं के सदवस्था रूप उपशम होने से तथा प्रत्याख्यानावरणीय कषाय के उदय से संयमासंयम रूप अप्रत्याख्यान चारित्र उत्पन्न होता है । शंका-संयमासंयम रूप देशचारित्र के आधार से सम्बन्ध रखने वाले कितने सम्यग्दर्शन
होते हैं ।
समाधान - क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक । इनमें से कोई एक- सम्यग्दर्शन-विकल्प से होता है क्योंकि उनमें से किसी एक के बिना अप्रत्याख्यान चारित्र का प्रादुर्भाव नहीं हो सकता ।
शंका- सम्यग्दर्शन के बिना भी देशसंयमी देखने में आते हैं ।
समाधान- नहीं । जो जीव मोक्ष की आकांक्षा से रहित है और जिसकी विषय-पिपासा दूर नहीं हुई है उसके अप्रत्याख्यान-संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती ।
शंका- यदि छठे गुणस्थानवर्ती जीव प्रमत्त हैं तो वे संयत नहीं हो सकते ।
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्म और परिग्रह इन पाँच पापों से विरतिभाव को संयम कहते हैं जो कि तीन गुप्ति और पाँच समितियों से रक्षित है ।
शंका- पाँच प्रकार के भावों में से किस भाव से क्षीणकषाय गुणस्थान की उत्पत्ति होती है ?
- मोहनीय कर्म के दो भेद हैं- द्रव्यमोहनीय ओर भावमोहनीय । इस गुणस्थान के
समाधान -
१० / षट्खण्डागम - परिशीलन
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