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स्या क• टीका हिन्दीविवेचना ]
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मुलं-नाम्ना विनापि तत्त्वेन विशिष्टायधिना विना ।
चिन्त्यता यदि सन्न्यायाद् वस्तुस्थित्यापि तत्तथा ॥४४॥ नाम्ना विनापि-शृङ्गग्राहिकया तनुग्रहं विनापि, तत्त्वेन शायव प्रतीत्या, विशिष्टावधिना विना-स्वसंवन्धिन भाविनं विशिष्टमवधिमन्तरेण, चिन्त्यताम् माध्य. स्थ्यमबलम्ब्य विमृश्यताम् , यदि मवनि सन्न्यायात्-सूक्ष्मन्यायेन, वस्तुस्थित्यापि उक्तलक्षणया तत्कारणम् नथा असतः कार्यम्य मच्चमाधकम् 1 नैव तथास्ति, अत्यन्तासमवे तन्मंबन्धम्यवानुपपत्तेः, अनीतघटस्यापि तज्ज्ञानज्ञेयत्वपर्यायण सच्चादेव तज्ज्ञानसंबन्धित्वात् , दण्डादो घटकारणतया अपि तत्पर्यायद्वारा घट सत्वं विना दुर्घटत्वात् ।
ननु जाने घटादेानस्वरूपा विषयतैव संबन्धः; दण्डे च दण्डस्वरूपा कारणव तथा, घटनिरूपितत्वेन तद्वयवहारे च घटज्ञानस्य हेतुत्वाद् न दोष' इति चेत् १ न, उभयनिरूप्यस्य सबन्धस्योधयत्रैवान्योन्यव्याप्तत्वात ; अन्यथेनराऽनिर्भासविलक्षणनि सानुपपत्तेः, विषयविशेषं चिना ज्ञानाकाविशेषोपगमे साकारवादप्रसङ्गादिति अन्यत्र विस्तरः ।।४४।। अनन्तर कार्य विशेष का हो सत्य होता है अन्य का नहीं । इसलिये उत्पन्न होनेवाले कार्यचयक्ति का नाममाहतद्वयक्तिरूपसे जान होने और कारण व्यक्ति में उसके जनन का स्वभाव होनेके विचार का कोई प्रयोजन नहीं है क्योंकि वस्तुसिद्धि-कार्यका सत्त्व उक्त ज्ञान और विचार के प्राधीन नहीं है क्योंकि कार्य के सत्त्य की सिद्धि के लिये कारण ग्रहण में जो कार्याथी की प्रवृति होती है उसके प्रति शृङ्ग ग्राहक रीति से कारण व्यक्ति और कार्य व्यक्ति में विशेषरूपसे कार्यकारण भाव का ज्ञान अप्रयोजक है ।।४३।.
[ सम्बन्ध के विना कार्योत्पत्ति का असंभव ] ४४ वीं कारिकामें बौद्ध के पूर्वोक्त कथन का उत्तर प्रस्तुत किया है । कारिका का अर्थ इस प्रकार है-विशेषरूपसे कार्यकारणभाव-ज्ञानके बिना भी यदि अर्थप्राप्तन्याय अर्थात् सामान्य कार्यकारणभावग्रह से ही कार्योत्पत्ति का निर्वाह किया जायेगा और कारण के भावि कार्य रूप अवधि के ज्ञान की अपेक्षा नहीं होगी तो इस तथ्य को सूक्ष्मता के साथ तटस्थ हो कर परीक्षा करनी होगी कि "क्या घस्तुतः उत्पाद्य और उत्पादक का विशेष रूपसे ज्ञान न होने पर भी सामान्य कार्यकारणभाव के प्राधार पर ही कारण असत्कार्य के सत्त्व का साधक हो सकेगा ?" प्राशय यह है कि उत्पत्ति के पूर्व कार्य को सर्वथा असत् मानने पर कारण द्वारा उसके सत्त्व का साधन नहीं हो सकता । क्योंकि, कारण को स्वसम्बद्ध कार्य का हो जनक मानना होगा। यदि कारण से असम्बद्ध भी कार्य की उत्पत्ति मानेंगे तब कारणविशेष का कार्यविशेष के समान अन्य समय कार्यों में भी प्रसम्बन्ध ( सम्बन्धामाय) समान होने से एक ही कारण विशेष से समग्र कार्यों की उत्पत्ति का प्रसङ्ग होगा, मापत्ति होगी ।
__ 'कार्य उत्पत्ति के पूर्व यदि सर्वथा असन होगा तो कारणसे उसका सम्बन्ध न हो सकने के कारण उसके सत्व का साधन असम्भव न होगा क्योंकि विद्यमान और अविद्यमान में भी सम्बन्ध होता है