Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 205
________________ स्या का टीका और हिन्दी विवेचना ] [ १६१ वेन नियमसंभवात् । तब तु निरंशानुभवम्यांशे विकल्पजनना-ऽजननम्वभावभेदस्य शक्तिभेदस्य, पाटवा-ऽपादवादेर्वा न संमव इत्युक्तत्वात् । 'यकस्यापि सहकारिसाचिव्येन तद्विकल्पस्यत्र जनकत्वं, नान्य विकल्पस्य इत्यम्युपगमे स्थिरस्थापि सहकारिमाचित्रण-ऽसाधिव्याभ्यां कार्यजनकत्वा जनकत्वाभ्युपगमप्रसङ्गात , कुम्भकारादिसहकृतस्य मृदादेघाद्यन्वय-व्यतिरेकदर्शनवदभ्यासादिसह कृतस्य निर्विकल्पस्य कदापि विकल्पान्वय पतिरकाऽग्रहणेनाम्यासादिसहकनस्य निर्विकल्पस्य कदापि विकल्पान्धय-व्यतिरेकाऽग्रहणेनाभ्यासादिसहकृतस्याऽविकरूपम्य विकल्पजनकत्वकल्पनाया अन्याय्यत्वाच्च । अथ तत्फलसाधाद् अमणिकत्वादिममागेपाद् श क्षणिकत्वाद्यनुभवेऽपि न निमः, अनिश्च पर पानक हमलोपातिपन्थित्वात् । तदुक्तम्उत्पन्न करते हैं वे ज्ञानविषयमूत पदावि के स्मरण के हेतु होते हैं 1 बौद्ध की ओर से इस प्रकार का समाधान नहीं किया जा सकता कि निर्विकल्पक प्रत्यक्षात्मक अनुभव निरंश होता है इसलिये यह कल्पना नहीं को जा सकती कि वह अमुक अंश से विकल्प का जनक है और अमुक अंश से विकल्प का प्रजनक है। तथा अंशभेद के बिना विकल्पजनकत्व और विकल्पाजनकत्व ये दो परस्पर विरोधी स्वभाव नहीं उपपन्न हो सकते । अथवा अमुक अंश में विकल्प के जनन की शक्ति है और अमुक अंश में विकल्प के जनन की शक्ति नहीं है, अथवा अमुक अंश में विकल्प उत्पादन में पटुता है और प्रमुक अंश में विकल्प उत्पावन में नहीं है-ऐसा नहीं कह सकते इसी प्रकार यह भी नहीं कहा जा सकता कि उक्त अनुभव अपने विषयभूत अमुकअंश के विकल्प का जनक है और अमुक अंश के विकल्प का प्रजनक है । (सहकारी के सानिध्य और प्रसांनिध्य का कथन व्यर्थ है। यदि यह कहा जाय कि '-उक्त अनुभव निरंश एक व्यक्ति रूप होने पर भी सहकारी के सानिध्य से विषय के विकल्प की जनकता और सहकारी सानिध्य के प्रभाव में अन्य विषय के विकल्प की प्रजनकता होती है"-तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर स्थिर भाव में भी सहकारी के सान्निध्य और प्रसानिध्य से कार्यजनकरन और कार्याजनकत्व का अम्युपगम प्रसक्त * तत्फलसाधात् : विषयबोधक पद से विषयी का बोध अनेकत्र अभियुक्तों को सम्मत है उसके अनसार उक्त पद में साधर्म्य' शब्द का अर्थ है साधम्य ज्ञान और तत्फल शब्द का अर्थ है मणिकत्व का फलज्ञान प्रऔर ज्ञान को विषयता विषयाोन होने से उसे विषय का फल कहा जाता है और विशेषण में विद्यमान धर्म का विशिष्ट में व्यवहृत होना भी अभियुक्तसम्मत है इसलिये तत्फल शब्द का अर्थ है क्षणिक त्व का फलभूताऽक्षरिणकरकप्रकारक निर्णय विषयीभूत अर्थ-निरगीतक्षणिक । तत्फल शब्द के अर्थ से प्रन्धित साधर्म्य शब्दार्थ का तत्पद के पूर्व में श्रत ना पदार्थ-अभाव के साथ मन्वय होन से उक्त पद का अर्थ है क्षणिकत्वरूप से निर्णीत अर्थ के साधर्म्यज्ञान का अभाव।

Loading...

Page Navigation
1 ... 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248