Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 230
________________ २१६ ] [ शा० वा० समुजय स्त० ४ श्लो० १२३ एवमप्यनन्वयाभ्युपगमो न युक्त इत्याह मूलं - तथापि तु तयोरेव तम्स्वभावस्वकल्पनम् । अन्यत्रापि समानत्वात् केवलं स्वान्ध्यसूचकम् ||१२२|| तथापि तु कार्यस्य तद्रूपशक्त्या दिवैकल्ये नातिप्रमङ्गनेऽपि स्वदर्शनानुरागेण तयोरेव अधिकृतहेतु-फलयोः, तत्स्वभावस्वकल्पनं तनज्जननस्वभावत्वसमर्थनम् अन्यत्रापि = अनभिप्रेतहेतुफलमावेऽपि समानत्वात् वाङ्मात्रेण सुत्रचत्वात् केवलं स्वान्ध्यसूचकं = वक्तुरज्ञानव्यञ्जकम् || १२२|| क्षणिकत्वे परेषामागमविरोधमप्याह मूलं किंचान्यत् क्षणिकत्वेव आर्षार्थोऽपि विरुध्यते । विरोधापादनं चास्य नारूपस्य तमसः फलम् ॥ १२३ ॥ श्रन्वय नहीं है उसी प्रकार घट में मो मिट्टी का प्रन्वय आपने नहीं माना और मिट्टी द्रव्य का मानस्तर्य मात्र तो जैसे घट प्रावि में है वैसे पटादि में भी है। अतः एव मिट्टी के प्रन्यय से निरपेक्ष मिट्टी का श्रानन्तयं मात्र पटादि वलक्षण्य का नियामक नहीं हो सकता । इसी प्रकार मिट्टी आदि रूप कारण से घटादि रूप कार्य के जनन का नियमन करने के लिये कोई व्यापार भी नहीं हो सकता । क्योंकि बौद्ध मल में सभी धर्म क्षणिक होते हैं प्रतः क्षणिक कारण का घटादि के उत्पावनार्थ कोई व्यापार नहीं बन सकता । इसी प्रकार घटाविरूप कार्य जब मिट्टी श्रादि में सर्वथा श्रसत् होगा तब उसे श्रपनी सत्ता को सिद्धि के लिये मृदाविरूप कारण की अपेक्षा भी नहीं बन सकेगी। क्योंकि मिट्टी प्रावि में जैसे घटादि असत् है उसी प्रकार पटादि भी असत् है । अतः 'मिट्टी आदि कारण से प्रसत् घटादि में ही सत्व का प्राधान हो और असत् पटादि में न हो' इस बात का कोई बीज नहीं हो सकता और जब मदादि कारणों में घटादि कार्यों की प्रविशिष्ट सता मानी जायगी तो मृदादि रूप कारणों से घटादिरूप कार्यों में विशिष्ट सला का प्राधान मानने में कोई आपत्ति न होगी क्योंकि अविशिष्ट सत् में कारण द्वारा विशिष्टता का आाधान लोक में दृष्ट है जैसे पाक के पूर्व रक्तत्व से अविशिष्ट घट में पाक से रक्तत्वविशिष्टता का प्रधान सर्वविदित है ।। १२१ ॥ १२२ वीं कारिका में कार्य में कारण के अनन्वयपक्ष को नियुक्तिकता एक और अन्य प्रकार से बताई गई हैं कार्य में कारणरूप शक्ति का प्रन्वय न मानने पर सभी कारणों से सभी कार्यों के जन्म का अतिप्रसंग होने पर भी यदि अपने दर्शन के प्रति विशेष प्रनुरागवश, कारणविशेष और कार्यविशेषके मध्य ही कारण में कार्यविशेष जननस्वभावस्य श्रौर कार्य में कारणविशेष जन्यस्वभावत्व के सम र्थन का श्राग्रह किया जायेगा तो जिन पदार्थों में कार्य काररणमाद नहीं है उनमें भी तज्जननस्वभाव आदि को कल्पनाको प्रसक्ति होगी क्योंकि कल्पना यदि नियुक्तिक वचन मात्र से ही करनी है बा ऐसा वचन जिन पदार्थों के बीच कार्यकारणभाव मान्य नहीं है उन पदार्थों में भी समान है । अतः इस प्रकार का समर्थन वक्ता के अज्ञानमात्र का ही सूचन कर सकता है, उसके प्रभिमत को सिद्धि उससे नहीं हो सकती ।। १३२ ।। १२३ वीं कारिका में क्षणिकत्व पक्ष में बौद्ध श्रागम के विशेष का भी प्रदर्शन किया है 1

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