Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 235
________________ स्या० का टीका-हिन्दी विवेचना ] [२२१ तदीयक्षणिकत्वदेशनान्यथानुपपन्या तादृशी बुद्धविवक्षाऽनुमास्यत इत्यत्राहमूल-तद्देशना प्रमाणं चेन्न सान्यार्थी भविष्यति । अत्रापि कि प्रमाणं विदं पूर्वोक्तमार्षकम् ||१२८॥ तद्देशना 'क्षणिकाः सर्वसंस्काराः' इत्याद्या बुद्धदेशना प्रमाणं चेत् तादृशबुद्धवित्रक्षायाम् ? ननैवम् यतःसा उक्तदेशनाअन्यार्था=संसाराऽऽस्थानिवृत्यर्था भविष्यति । तथा च तस्यास्तात्पर्य प्रामाण्यम् न तु यथाश्रतार्थ इति भावः। तत्रापि तद्देशनाया अन्यार्थतायामपि किं प्रमाणम् ? इति चेत् ? इदं पूर्वोक्तम् 'इत एकनवते' [का. १२४] इत्यादिकम् आर्षम् । न घ 'मणिकत्वदेशनान्यथानुपपत्त्या उक्तदेशनाया अन्यार्थस्त्रम्, एतदन्यथानुपपत्या वा क्षणिकत्वदेशनाया, इत्यत्र विनिगमकाभावः, क्षणिकवपक्ष उक्तदोषोपनिपातस्य तद्देशनाया अन्यार्थत्वे विनिगमकत्वादिति भावः ॥१२८ आन्तिरविरोधमाह मूलं-तथान्यदपि यत्कल्पस्थायिनी पृथिवी क्वचित् । उक्ता भगवता भिक्षनामध्य स्वयमेव तु ।।१२९॥ तथा अन्यदपि विरुद्धम् यत् क्वचित सूत्रान्तरे भगवता बुद्धेन मिचूनामन्व्य स्वयमेव कल्पस्थायिनी पृथिव्युक्ता 'कप्पट्ठाइ पुहह भिक्खयो। इति वचनात् । पृथिवीसंततेः कल्प १२८ वीं कारिका में बौद्ध के इस कथन का कि भगवान ने जो भावमात्र को क्षणिकता का उपदेश किया है वह बुद्ध के उक्त वचन से उक्त अर्थ की विवक्षा न मानने पर अनुपपन्न होगी इसलिए इस प्रन्यथानुपपत्ति से ही बुद्ध की उक्त विवक्षा का अनुमान होगा' निराकरण किया गया है - बद को देशना कि 'सम्पूर्ण संस्कार भाव क्षणिक है, युद्ध के उक्त वचन के उक्त प्रर्थ की विवक्षा में प्रमाण है यह मान्य नहीं हो सकता क्योंकि उक्त देशना का प्रयोजन अन्य है और वह प्रयोजन है संसार से प्रास्था को नियत्ति यानी संसार में प्रासक्ति का परित्याग । बद्धको उक्तवेशना का यही तात्पर्य मानना उचित है । बुद्ध सम्पूर्ण संसार को क्षणिक बताकर मनुष्य को संसार में अनासक्त बनाना चाहते हैं इस प्रकार उक्त देशना बद्ध के इस तात्पर्य में प्रमाण है न कि अपने यथाश्रुत अर्थ मनी शब्द सुनने से प्रापाततः प्रतीयमान होने वाले अयं सम्पूर्ण मावों की क्षणिकता में । यदि इस प्रकार शंका की जाय कि उक्त देशना अन्यार्थ में अर्थात् उक्त तात्पर्य में प्रमाण है-इसमें क्या प्रमाण हैं ? तो इसका उत्तर यह है कि इसमें युद्ध का इत एकनवते' यह वचन ही प्रमाण हैं। यदि यह शका की जाय कि क्षणिकरव देशना की अन्यथा उपपत्ति न होने से उक्त देशना प्रन्यार्थक= सन्तानामिप्र अथवा उक्नबुद्ध वचन की अन्यथानुत्पत्ति से क्षणिकत्व देशना अन्यार्थकः= संसार के प्रति प्रास्थानित्यर्थक है इसमें कोई विनिगमक नहीं हैं तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि भावमात्र क्षणिकता पक्षमें पूर्वोक्त दोषों को प्रसक्ति ही क्षणिकस्वदेशना के अन्यार्थकत्व में विनिगमक है ॥१२॥ १२६ वो कारिका में बद्ध मत के अन्य पार्ष वचन का विरोध बताया गया हैकल्पस्थायिनी पृथीबी भिक्षवः !

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