Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 248
________________ प्रशुद्ध स्थानन्तरम् स्थान्तरम् दिशेषण विशेषण का का बुद्धय, पानि भेदानुग क फलानु नतदेवम् तिकमः शुद्धिशिका पृष्ठ/पंक्ति अशुद्ध / शुद्ध १०/पं. गर-मनने पा, मनालेघट 107/26 को बाहर ले जाने 116/12 पर मी.भवने | 120/1 53 सूचना-हिन्दी में जो (जाति में -) | 120/27 यह शिर्षक है वह द्वितीय पेरेग्राफ का | 26 समझना, प्रथम का नहीं 136/ 53/21-22 वृत्तितास्वा वृत्तितात्वाब 54/8 में ही रहता है का अभाव | 16 सत्ता में नहीं / 144/8 रहता है / 148/2 प्रवृत्ति घद / 146/6 56/2 गले हीतो जाति न स्तः' जातीन स्तः 152/6 बद्धि बुद्धि ज्ञान-साध्य ज्ञानसाध्य जन जन 154/30 एवं भूत मद्रया मुद्रौव घटभाव घटाभाव 164/17 भावेयत्रा भाव भावे यत्राऽभाव 168/20 सावधान नैयायिक को | 171/24 सावधान 174/11 नामास्ति मान्नास्ति 174/7 प्रतिप्रन्थि प्रतिपन्थि 83/8-11 भूतल ज्ञान भूतन्त्रज्ञान ज्ञान सामान्य ज्ञानसामान्य 174/12 84/10 'पारोप 'प्रारोप्य 86/18 का रूप कार्य रूप 178/4 63/3 तसत्त्व तत्सत्त्व 182/14 तत्कारगा तत्कारणं 64/3 अनन्तर अनन्तरं 185/1 नन्तर नन्तरं 10012 अप्यक्त अप्यक्त 104/24 कार्य कि कार्य की सत्ता में सत् में बवैशिष्ट स्वत्र शिष्ट्य निर्वाच निगेचन वद्धयादि बुद्धयादि कृत:? कुतः? समवित सम्भबित विकल्यों विकल्पों यु बुद्धच भेदानुमचक्षरादयः कार्मफलानु नैतदेवम् तिक्रम इस 'सोऽन्वयः' इस जनम जनन न्याय्य न्याय्य यह कि यह है कि अनिवाय अनिवार्य एक ही की एक ही वस्तु को गुरग और गुरण कारण होता है। फलतः योग्यविभुविशेष गुण और विभु सामान्य सामान्यतः घम धम याच्यम् वाच्यम् प्रमाण भाव प्रमाणाभाव प्रबमास अवभास ते नैवेदा तेनैवेदा पश्यती पश्यती होंने से न होने से अब मानस्य- मान - IM तब

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