Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 229
________________ स्या० क० टीका और हिन्दी विवेचना ] मूलं - तपशक्तिशून्यं नरकार्य कार्यान्तरं यथा । व्यापारोऽपि न तस्यापि नापेक्षाऽलस्यतः क्वचित् ॥ १२१ ॥ तदुपशक्तिशून्यं - मृदादिकारणरूपशक्तिशून्यम्, तत् - अधिकृतं घटादि कार्यम्, कार्यान्तरं पठादि यथा तथा विलक्षणं न स्थात्, मृदाद्यन्वयाभावेन तदानन्तर्यमात्र स्प पदादिसाधारण्येनाऽनियामकत्वात् । तथा व्यापारोऽपि न तस्यापि कारणस्यापि कार्य कश्चित् नियामकः, क्षणिकत्वेन निर्व्यापारत्वान् सर्वधर्माणाम् । तथा, स्वतोऽसच्चात् = तुच्छत्वात् कार्यस्य स्वमवप्रतिपत्तिं प्रति नापेक्षाऽपि क्वचित्- कारणे, 'काचिदेवशसति कारणेन सच्चाधानम्, नान्यत्र' इत्यत्र बीजाभावात् । अविशिष्टसत्वस्य विशिष्टता तु दृष्टत्वात् कारणादेया नानुपपन्नेति भावः ॥ १२१ ॥ 1 [ २१५ किन्तु यह शंका भी उचित नहीं हैं क्योंकि जैसे 'घटो नास्ति' अर्थात् भूतल में घटाभाव प्रतियोगिता ! यह बुद्धि प्रमाय अंश में घटत्वविशिष्ट घट के प्रतियोगित्वरूप वैशिष्ट्य का अवगाहन करतो हे और घटत्वविशिष्टवैशिष्टचावगाहित्व घटत्व के प्रयच्छिन्न प्रतियोगित्वरूप वैशिष्टच के अवगाहित्य के बिना प्रनुपपन्न होता है। क्योंकि विशिष्टवैशिष्टयावगाहो वही ज्ञान होता है जो विशेषरण और विशेषणतावच्छेदक दोनों के एक वैशिष्ट्य का प्रवगाहन करता है। इसलिये केवल घटरूप विशेषण के ही प्रतियोगिस्वरूप सम्बन्ध का अवगाहन करने से उक्त ज्ञान घटत्व विशिष्ट वैशिष्टच श्रवगाही नहीं हो सकता । तो जिस प्रकार अनुपपत्तिज्ञान रूप श्राक्षेप से उक्त ज्ञान में घटत्वावच्छ्रित्रप्रतियोगिता कथावगाहित्य सिद्ध होता है. उसीप्रकार 'मुद् घटजननस्वभावा' इस वाक्य से उत्पन्न बोधमें मिट्टी में घटामिनजननाभिस्वभावाभेद का भान होता है, किन्तु यह भान मिट्टी में घटाभेद के बिना प्रनुपपत्र है। इस अनुपपत्तिज्ञानरूप प्राक्षेप से उक्तबोध में भी मिट्टी में घटाभेदविषयकत्व सिद्ध होने से जबत बोध से मिट्टी में घट के प्रत्यय की सिद्धि में कोई बाधा नहीं हो सकती । यदि ऐसो कल्पना की जाय कि तत् तज्जननस्वभावम्' - मृद् घटजननस्वभावा' इस व्यवहार से उक्त योध नहीं होता । श्रपितु 'तत् के अनंतर यानी मिट्टी द्रव्य के बाद सद्भाव अर्थात् घट का अस्तित्व होता है' यह बोध होता है। छतः इस बोध के उत्तरकाल में भी मिट्टी द्रव्य में घटपरिणामित्व का बोध प्रर्थात् घटान्वय का बोध नहीं हो सकता।" तो यह कल्पना भी ठीक नहीं है क्योंकि उक्तव्यबहार से इस प्रकार का बोध मनुभवविरुद्ध है। दूसरी बात यह है कि कारण और कार्य में एकान्त भेद मानने पर कार्य में कारण के प्रानन्तर्य का निर्वाचन शक्य न होने से उक्त व्यवहारसे उक्त बोध मानना युक्तिविरुद्ध भी है ।। १२० १२१ वीं कारिका में उक्त विषय को हो प्रकारान्तर से स्फुट किया गया है[ कारखान्वय विना कार्य में वैलक्षण्य की प्रनुपपत्ति ] aft कार्य कारणरूप शक्ति से शून्य माना जायगा प्रर्थात् कार्य में कारण का प्रत्यय न माना जायगा तो मिट्टी आदि कारणों का घटादिरूप कार्य उसी प्रकार का कार्य हो जाएगा जेसे पटाव कार्य होता है अर्थात् घटादि कार्य पहादि से विलक्षण न हो सकेगा क्योंकि जैसे पटादि में मिट्टी का

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