Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 199
________________ स्या०० टीका-हिन्दीषिवैचना ] [ १६५ तत्तदनन्तरमाविकार्योत्पादकत्वम् , ते ने वेदानीतनसुगतज्ञानोत्पादकन्वे प्राक पश्चाद् दैतदुत्पाद. प्रसङ्गात् , समनन्तरप्रत्ययस्येदानीमेव हेतुत्वे चोभयहेतुस्वभावविप्रतिषेधात् तदनुत्पत्तिप्रसङ्गात् । अथान्येन स्वभावेन, तर्हि साशं तत् प्रसज्यते, इति तद्ग्राहिणोऽपि ज्ञानस्य सशिकवस्तु. ग्राहकत्वेन सविकल्पताप्रमक्तेः । दृष्टविपरीता च चिरातीतादीनां जनकत्वकल्पना, अन्यथाऽव्या. पारेऽपि धनप्राप्तर्विश्वमदरिद्रं स्यात् । जस्मा बुद्धशामा जिल्लाभवत्यापि वैशयम विरुद्रम् 1 उसका प्रभाव नहीं है-और बुखज्ञान में घिरपूर्व विनष्ट और भावि विषय भी हेतु है, प्रत एवं उसमें प्रर्थप्रभवत्व प्रयुक्त हो वंशय है । प्रतः वंशय में अर्थप्रमवत्य को ध्याप्ति मानने में कोई बाधा नहीं है-किन्तु यह टोक नहीं है। क्योंकि चिरातीत और भावि विषयों को यदि उसी स्वभाव से बुद्धज्ञान का कारण माना जायगा जिस स्वभाव से वह अपने उत्तर काल भावि ज्ञान का उत्पादक होता है तो एक निश्चितकाल में होने वाले सुगत ज्ञान की उस काल से पूर्व और पश्चात् भी उत्पत्ति का प्रसंग होगा। क्योंकि चिरातीत और भावि विषय प्रविद्यमान होते हुए भी यक्षिकालविशेष में बुद्धज्ञान को उत्पन्न कर सकते हैं-उस काल के पूर्व और पश्चात् मो बुद्धजान को उत्पन्न करने में कोई बाधा नहीं हो सकती। इस प्रसंग में परिहार रूप में यह भी नहीं कहा जा सकता कि-'घद्धज्ञान का समनन्तर प्रत्यय यानी अव्यवहितपूर्वत्तिज्ञानरूप कारण काल विशेष में ही बुद्धज्ञान का हेतु है और वह उस कालविशेष के पूर्व प्रथवा पश्चात् हेतु नहीं है, अत एव चिरातीत और मावि विषयों के बुद्धज्ञानोत्पावक स्वभाव अनुवर्तमान होने पर मी निश्चितकाल के पूर्व प्रौर पश्चात् बद्धज्ञान का प्रसंग नहीं हो सकता'-क्योंकि ऐसा मानने पर समनन्तर प्रत्यय और उक्त विषय इन दोनों हेतुनों के स्वभाव में विरोध होने से सुगत ज्ञान की अनुत्पत्ति का प्रसंग होगा। अभिप्राय यह है कि यदि समनन्तर प्रत्यय को सामान्यत: वर्तमानकालीन सुगतज्ञान का ही हेतु माना जायगा तो प्रन्यकालीन सुगत ज्ञान के प्रति वह जनक न होगा। फलतः समनंतर प्रत्ययरूप कारण के प्रमाय में विरातीत-भावि विषयों से अन्य कालीन सुगतज्ञान की अनुत्पत्ति होगी और यदि वर्तमान कालीन सुगतज्ञान के उत्पावक समनन्तर प्रत्ययविशेष को हो वतमानकालीन सुगतज्ञान का कारण माना जायगा तो तन्मात्र से हो वर्तमानकालीन सुगतज्ञान का सम्भव होने से वर्तमानकालोन सुगतान की चिरातीत मावि विषयों से अनुत्पत्ति का प्रसंग होगा। अर्थात् वर्तमानकालीन ज्ञान विरातीत-मावि विषय प्राधीनोत्पत्तिक न होगा । फलतः वर्तमान कालीन सुगत ज्ञान में वैशद्य अर्थप्रभवत्व का व्यभिचारी हो जायगा। यदि यह कहा जाय कि-'चिरातीत-मावि विषय अन्य स्वभाव से वर्तमान कालीन सगत ज्ञान का उत्पावक है, और जिस स्वभाव से वह वर्तमानकालोन ज्ञान का उत्पादक है उस स्वभाव से वह कार्यान्तर का उत्पादक नहीं है किन्तु भिन्न मिन्न स्वभाव से कार्यान्तर का उत्पादक है । प्रतः न तो चिरातोत भावि विषयों से अन्य कालीन सुगत मान को अनुत्पत्ति का प्रसंग होगा और न वर्तमान कालीन सुगत ज्ञान को ही उन विषयों से अनुत्पत्ति का प्रसंग होगा । प्रत सम्पूर्ण सुगत ज्ञान में चिरातीत-माधिविषयहेतुकाव होने से सुगत ज्ञान में वैशय अर्थप्रमवश्व का मिचारो नहीं हो सकता'-तो यह भी ठीक नहीं है कि ऐसा मानने पर तो घिरातीत और भावि विषयवृन्द सांश

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