Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

Previous | Next

Page 248
________________ // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // तरलान् युधि वारियाचकानपि कुर्वनहितान् सुधापिबान् / मनुजाधिपतिर्न चिन्तिताधिकद: कैर्मनुजैरचिन्ति यः अभिधावति यस्य चातुरी, विनतायास्तनये महानये / अलभन्त न पन्नगाः पदं, भुवि पाटच्चरपारदारिकाः करवालकरालताधरो, मुखमाधुर्यवशीकृतावनिः / द्विषतां सुहृदां च योऽभवद्, विषपीयूषपयोमहोदधिः अभवत् तपनाशुसंज्वरक्षुच्च भयशोकविह्वला / यदरिप्रमदावियोगिनी, धृतपञ्चाग्नितपोव्रता वने अहरन् रजतादि यद्विषां सदनेषु प्रकटं वनेचराः / न तु गौञ्जगणभ्रमान्महामणिवातायनमौक्तिकस्रजः असुहृत्प्रमदाश्रुवारिभिर्ववृधे यस्य यशोलतोचितम्। यददीप्यत तैर्महोऽनलः, प्रबलस्तत्तु चमत्क्रियास्पदम् अधिकं स्म विदन्ति नारयो, ज्वलनं यत्प्रबलप्रतापतः / दववह्निघने ततो भिया, प्रविशेयुः कथमन्यथा वने - लघुतूलवदिन्दुमण्डलं, यशसो यस्य पुरः प्रतीयते / इति युक्तिमदम्बराङ्गणभ्रमणं तस्य मरुत्प्रचारतः विधुरङ्गति पीनफेनतां, प्रचलद्वारिकणन्ति तारकाः। तरणिस्तरुणोऽपि यद्यशोजलधौ विद्रुमकन्दवृन्दति गलितैर्निजदृग्गलन्तिकासलिलैस्तापवतो वियोगतः / यदविजसुभ्रुवामभूत्, कुचशम्भोः स्नपनं निरन्तरम् यदिभैर्निजदानवारिणा, सतता सिक्तकरैः सुलक्षणैः / क्षितिभृन्महिमासहिष्णुभिर्विधृता किं न निजानुकारिता अमिता वयमत्र सप्त ते, गगनार्द्धादिति संहृतक्रमैः / रविसप्तिजयादुदासितैस्तुरगैर्यस्य दिशो ललधिरे // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // 239

Loading...

Page Navigation
1 ... 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322