Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 296
________________ // 358 // // 3 / 59 // // 360 // // 3 // 61 // / / 3 / 62 // // 3 // 63 // उत्सूत्राब्धि-पतज्जन्तु-जाताभ्युद्धरणक्षमा देशना नौरभूद्यस्यं तं गुरुं समुपास्महे सिद्धान्तनीतिजाह्नव्यां यो हंस इव खेलति / गुरौ दोषा न लक्ष्यन्ते तत्र खे लतिका इव सूत्रस्थितिर्मनो यस्य जागुलीवाधितिष्ठति / पराभवितुमेनं न प्रभवन्ति रिपूरगाः वान्तमोहविषस्वान्त-कान्तशान्तरसस्थितिः / हताघध्वान्तसिद्धान्त-नीतिभृज्जयताद् गुरुः न्यायारामसुधाकुल्याः कुनीतिविपिनप्लुषः / देशनाः क्लेशनाशाय सद्गुरोर्गुणशालिनः ब्रह्माण्डभाण्डे तेजोऽग्नि-तप्ते यस्य यश: पयः / . उत्फेनायितमेतस्य बुबुदास्तारका बभुः कर्तुं कः शक्नुयाद् यस्योकेशवंशस्य वर्णनम् / ... समुद्रवदमुद्र श्रीरगाधः श्रूयते च यः योऽतिस्वच्छस्य गच्छस्य महापदमशिश्रियत् / अदृष्टशुभसन्तान-प्रथमानमहोभरः लक्ष्यन्ते कुशलोदर्का यस्य स्वान्तमनोरथाः / गिरामपीह सम्पर्कास्तर्का एवं न साक्षिणः / यत्सुदर्शनभृत्ख्याते रसेनानुमिमीमहे। . कलिपाथोधिमग्नाया उद्दिधीर्षा भुवो ध्रुवम् रत्नानीव पयोराशेवियतस्तारका इव / गणनायां समायान्ति गुणा यस्य न कहिचित् हृदयं ज्ञानगम्भीरं वपुर्लावण्य-पावनम् / गजितेनोर्जिता वाणी यस्य किं विस्मयाय न // 364 // // 3 / 65 // // 3 // 66 // // 3 / 67 // // 3268 // // 3 / 69 // 287

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