Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 2 // 35 // // 2 / 36 // // 2 // 37 // // 2 // 38 // // 2 / 39 // दधते सुधियो लोका न यत्रासारसाहसम् / कुर्वते धुसदां दीना न यत्रासारसाहसम् यत्र व्ययो दिनस्यासीन वेत्यरुचिराजितः / यद्वने स्वर्जनो नासीनवेत्यरुचिराजितः तत्र त्रस्तकुरङ्गशावकदृशां नेत्राञ्चलैः पूरितस्मेराम्भोरुहतोरणस्पृहगृह-स्वेच्छापरैर्नागरैः / शोभाशालिनि सज्जनादृतलसच्छार्दूलविक्रीडितक्रीडासज्जकविप्रपञ्चितगुणे श्रीद्वीपसद्बन्दिरै भ्रमसंरम्भभृद्यानपात्रोपममुपाश्रयम् / समुद्रव्यवधि केतुमिवेष्टस्य बिभर्ति यत् संरक्ष्यन्ते स्वरेणैव यत्र लोका: कलिप्रियाः / . ऋषिस्थानमिदं मुख्यमित्येवाहुविशारदाः स्पर्धानुबन्धतो यत्र मल्लयुद्धविधित्सया / . आह्वयन्ति सुरावासानुत्पताकाकरा गृहाः / त्रिलोकीलोकसन्त्रासहरणायेव निर्मिता / यत्र चैत्यत्रयी भाति व्यक्तरत्नत्रयीमयी तस्मात् सिद्धपुरद्रङ्गाद्रामासङ्गोल्लसज्जनात् / आनन्दकन्दलोद्भेद-लसद्रोमाञ्चकञ्चुकः स्नेह-विस्मेरनयनो भक्तिसम्भ्रमभासुरः / / विनयादिगुणव्यासोल्लसत्सम्बन्धबन्धुरः तरणिप्रमितावर्तेरावतॆरभिवन्द्य च / विज्ञप्तिं कुरुते व्यक्तां नयादिविजयः शिशुः यथाकृत्यमिह प्राच्य-शैल-चूलावलम्बिनि / भानौ भगवतीसूत्र-स्वाध्यायार्थ-विवेचने . 285 || 2 / 40 // // 2 / 41 // // 2 / 42 // // 2 / 43 // // 2 / 44 // // 2 / 45 //
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