Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 292
________________ पिपति स्फूर्तिमन्मूर्तिः कामं वामासुतः सताम् / प्रययुः स्वर्द्वमा दूरे यद्वदान्यत्वनिर्जिताः // 1 / 11 // धौरा ! धीराजमानं तं श्रयध्वं पार्श्वमीश्वरम् / कुरुते यत्प्रतापस्य नूनं नीराजनां रविः // 1 / 12 // पार्यो जयति यत्कीर्तेरुच्छिष्टमिव चन्द्रमाः / अत एव पतङ्गस्याऽऽपततो याति भक्ष्यताम् // 1 / 13 // पावो जयति गाम्भीर्यं गृहीतं येन वारिघेः / ततः शिष्टानि रत्नानि भीतोऽसौ किमधो दधौ // 1 / 14 // श्रिये पार्श्व: स. वो यस्य क्षमाभृत्त्वगुणोऽखिलः / लक्ष्मव्याजादतः शेषस्तल्लाभाय यमाश्रितः // 1 / 15 // मनः सरोवरेऽस्माकं पाश्वो नीलोत्पलायताम् / . यद्धैर्य-सख्यतो मेरुरुच्चैर्मूर्धानमादधे .. // 1 / 16 // मच्चित्तनन्दने पार्श्वः कल्पद्रुरिव नन्दतु / . हतं सप्तजगद्ध्वान्तं यदीयैः सप्तभिः फणैः . // 1 / 17 // वन्दारु-सुरकोटीररत्नांशु-स्नपितक्रमः / नेदीयसी जगद्वेदी कुर्यात् पार्श्वः शिवश्रियम् // 1 / 18 / / यः करोत्येव पापानां कलावपि बलात्ययम् / महानन्दाय तं श्रीमत्पाश्र्वं वन्दामहे वयम् . // 1 / 19 // तमीदृशोदारपवित्रचित्र-चरित्रसन्त्रासितशत्रुवर्गम् / अनर्गलस्वर्गसुखापवर्ग-निसर्गसंसर्ग-समर्थमग्र्यम् // 1 / 20 // सुद्धचिन्तामणिकामकुम्भस्वर्धेनुवर्गादधिकप्रभावम् / समुल्लसल्लब्धिसमृद्धिपूर्णं, सदा चिदानन्दमयस्वभावम् // 1 / 21 // जगद्दगाप्यायककान्तिकान्तं, संसेवितोपान्त्यममर्त्यवृन्दैः / / श्रीअश्वसेनान्वयपद्महंसं, श्रीपार्श्वनाथं प्रणिपत्य मूर्ना।। 1 / 22 // 283

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