Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ दूतं ततो भूपुरुहूत हूतिकलाकुहूतन्द्रितभूपचन्द्रम् / निस्तन्द्रधीः प्रेषय पुण्यपूतं कार्यं तदाकूतमवेत्य कुर्याः // 117 / / इति सचिववचोभिर्बाढमुच्चाटितायां, कलितविविधतन्त्रैः स्निग्धतायां सपत्न्याम् / अनुजमनु धनुर्ध्यारोपकोपं वितेने, : भरतहृदि पदं द्रागाददाना जिगीषा ... // 118 // सकलभरतभर्तुर्मानसं सूर्यरत्नं सचिवतरणिवाक्याभीशुयोगेन वह्निम्। यमुदगिरदमर्षं तेन दग्धं तदानीं चिरपरिचयजातं सोदरस्नेहखण्डम् // 119 // गुणकमलहिमानी स्नेहपानीयपङ्को, व्यसनविपुलखानी राजसीराजधानी। अहह विषयतृष्णा सर्वतोऽप्युग्रवीर्या, , . यदजनि जिननाथज्येष्ठपुत्रोऽनुजारिः // 120 // विधुविशदयशः श्री: स्वामिभक्तं सुवृत्तं, नयनिपुणमदम्भं निर्भयं सत्यवाचम् / द्रुतमनुबहलीशं प्रेषयामास राजा, विजितपवनवेगं सोऽथ दूतं सुवेगम् . // 121 // चतुर्थः सर्गः ऐन्द्रस्तोमनतायाग्रेप्रत्यूहव्यूहनाशिने / नमः श्री पार्श्वनाथाय, श्री शोश्वरमौलये // प्रस्थितं प्रभुगिरागतपक्षं, वेगतः शकुनमेव सुवेगम्। . भाविभावगतिवीक्षणदक्षा, तं न्यवारयदथाऽशकुनाली // 1 // तस्य दैवमतिसौहृदपात्रे वैरिदौत्यवहनादिव सद्यः। . शंसितुं विपदि यत्परिणामं स्पन्दते स्म नयनं पथि वामम् // 2 // 260
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