Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 288
________________ व्यलसन् दशनास्तदानने, व्यधिकास्त्रिंशदहो महोज्ज्वलाः / शशिनो द्विगुणां श्रियं निजां, किमु संसूचयितुं धृताः कलाः // 38 // किमु तद्वदनस्य नो विधौ, पुरतोऽयुज्यत भस्मगोलता। गलनालबिलात् किलाचिरात्, तमसां रूक्षतयाऽशितोज्झिते // 39 // द्रुहिणेन तदास्यसृष्टये, हृतसर्वस्वतया सुधाम्बुधौ / उदभूदिह पङ्कसङ्करः, शशिनि श्यामललाञ्छनच्छलात् // 40 // अदसीयमुखं विधित्सुना, विधुतःसारमकर्षि वेधसा। लघुभूत इवेति सोऽन्वहं, भ्रमति व्योम्नि चिराय तूलवत् // 41 / / द्विजराजकलङ्किनो जयादकलङ्केन तदाननेन ते / उचितैव न खेदवेदना, स्थितिरेषा हि पुरातनी श्रुता // 42 // विधुरङ्कमृजाकृतेऽन्वहं, किमु तक्ष्णोति तनूमहो निजाम् / न तदाननतुल्यताऽस्य ही, भवितादर्शनमेवमास्यतः // 43 // इदमीयमुखं हि वस्तुतो, द्विजराजो विधुरेष चेतरः / तदमुष्य हठेन तच्छ्रियं, हरतः स्तैन्यकृतं हि नायशः य इहाश्रययोः परस्परामसमावेशनिदेशपेशलः / व्यगलत् स कलिस्तदाननं, विधुमासाद्य सरस्वतीश्रियोः // 45 // सकलोऽपि स पाप एव तद्वदनस्पर्धनलोलुपो विधुः। इति साधु विमृश्यते बुधैर्वितथानुग्रहविद् व्यवस्थितिः // 46 // स विधिः शुचिपूर्वपक्षताभ्रमतः पूरयति स्म किं विधुम् / किमयं न समाप्स्यति स्वयं, स्मृतसिद्धान्ततदाननाद् गलन् // 47 // मदनस्य तनोस्तदा श्रियं, भवभालाग्निहुतेः फलं विदन् / इदमास्यपदाय चन्द्रमा, रविवावजुहोत् तनूं निजाम् इदमास्यमवेक्ष्य वेधसा, शशभृद्यत्र विलुप्यते क्रुधा। शुचि पक्षमुपैति तं न हाऽशुचिमन्यञ्च विशेषदर्शन: // 49 // . . . 270 // 44 // // 48 //

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