Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 289
________________ नलिनं मलिनं किलालिना, रजनीशोऽपि कलङ्कपङ्किलः।। इदमीयमुखे निषेदुषी, सुषमाऽऽस्ते कथमेतयोस्ततः // 50 // इदमास्यतुलाभिलाषितातम एव द्विजराजि लाञ्छनम्। .. भवमौलिसुरापगाजलैनिरयाद्यज्जलधेस्तु कर्दमः // 51 // अतिकान्तमिदं मुखं सृजन्, किमु दृग्दोषमजाकृते विधिः। .. बलियोग्यकरम्भपिण्डकं, विधुरूपं स वियत्युदक्षिपत् // 52 // विधुमेव सुरापगाम्बुजं, चितमन्तधृतलाञ्छनालि सत् / इदमाननचन्द्रतर्जितं, कलयामः किल हीनकान्तिकम् // 53 // पुरतो न तदाननस्य किं, विधुरिङ्गाल इवावलोक्यते। . उचितं त्विदमन्यथा कुतो, मितकान्तिस्तमसस्तमश्नतः // 54 // इदमीयमुखाम्बुजोल्लसत्, सुषमाडम्बरपश्यतोहरः।। ." विधिना विधुरेष ही कुहूमुखदंष्ट्रामयचक्रचूर्णितः // 55 // किमगोचरितः कुहूनिशि, प्रयतो मन्त्रमसावपीपठत् / यदवाप तदाननोपमां, विधुरुंच्चैरिह तत्प्रसादतः . // 56 // त्रिजगद्रुचिरातिशायि तद्, विधुनावापि तदानमं पदम् / सुकृताय तमोमदाङ्कुरक्रकचच्छिन्नतेनुर्ममार यत् // 57 // शुचितद्वदनात्तवैभवो, द्विजराजोऽपि स हीनवैभवः / उचितां ननु कान्तिभिक्षुकः किमटन् माधुकरीमचीचरत् // 58 // धुरि कान्तिमतां तदाननं, विदितं क्वानुकरोतु चन्द्रमाः / मिहिरादिह जातदीधितिः, स कुहूपर्वणि भैक्षदायिनः // 59 // इदमाननपुष्टये विधिः, कणशं कान्तिमयं पचेलिमम्। . स लुलाव विधुं पृथक्कृतप्रपतच्छीर्णकणोरुतारकम् // 60 // इदमाननकान्तिचौर्यतस्त्रपमाणेव जनापवादतः। जननीव विधुं सुरेन्द्रदिग्, रविभित्त्यैव जनाय निद्भुते // 61 // 280

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