Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 272
________________ वेधसः स्फुटमबुद्ध स यत्र स्वर्णरत्नरजताकरदर्शी / मेरुरोहणहराचलकोटी सर्गयोग्यदललाभसुभिक्षम् // 27 // यत्र भर्तरि स रागमगुप्तं सुभ्रवः स्म न भुवः किमवैति / सर्वतः प्रकटरत्नखनीभ्यः पाटलांशुपटलैः प्रसरद्भिः // 28 // किं तरक्षुहरिचित्रकचक्रं मक्षु दृप्तमपि यत्र जनेन / वीक्ष्य बाहुबलिपौरुषगानात् खञ्जितं च मदकारि न तेन // 29 // यत्र गर्जितपराः स्वविषाणोत्खातसिन्धुतटपातितगर्ताः / चक्रिरे परिणताभ्रमुकान्तस्पर्द्धिनोऽस्य वृषभा हृदि मोदम् // 30 // कूपकुक्षिमुपभिद्य घटीभिर्जीवनान्यपि हठेन हरन्तः / तस्य चित्तमहरन्नरघट्टा यत्र पूत्कृतिकृतः शठभट्टाः दुष्ट दूत इति यत्र विलोलैः षट्पदैर्धकुटिभङ्गकरालम् / पल्वलैर्मुकुलितामलपद्मछद्मलोचनशतैः स निरैक्षि // 32 // त्यक्तगोवधघटोद्भवभीतक्षीरसागरपयः कलशोध्यः / किं विभज्य जगृहुर्जनगव्यो वीक्ष्य ता इति स यत्र शशङ्के // 33 // धान्यमैक्षि कृषिकैः सकृदुतं लूनमप्यसकृदुद्गतरोहम्। तेन यत्र पृथुधीभिरधीताध्यापितं मनसि शास्त्रमिवोच्चैः // 34 // छायया कवलिताध्वसु यस्मिन् भूयसी क्षितिरुहामतिकान्ता। सञ्चरद्रथमणिधुतिदम्भात् तेन सौररुगचिन्त्यत वान्ता // 35 / / ग्रामराजिषु कृतान्तरमानस्ताम्रचूडतरुणोड्डयनेन / सन्तुतोष न तु यत्र स सीम्नां क्षेत्रपङ्क्तिभिरनन्तरवेदी // 36 // स प्रपाः पथि विनिर्मितगङ्गापत्रपाः परिपपौ जलपूर्णाः / यत्र च प्रतिपदं कणहट्टान् लोचनेन जनदैन्यघरट्टान् // 37 // यत्र काम्यवरणाय पुरेषु स्थूललक्षपटहे ध्वनति द्राग् / स व्यचिन्तयदगादिषु लीनां दीनतां प्रति वे न रुदित्वा // 38 // 263

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