Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

Previous | Next

Page 270
________________ // 7 // आदितः स्ववशमप्यवशः सन्नब्जयोनिरचनानुचरत्वात् / गन्धसिन्धुरमवेक्षितुकामः स क्रमेलकममेलयदक्ष्णा // 3 // चाषमीक्षितुमनाः स शुभार्थी वायसं कटु रटन्तमपश्यत् / रोहणेऽपि मणिमाशु जिघृक्षुः काचखण्डमिव भाग्यविहीनः // 4 // पापकेतुततपुच्छमिवोग्रं जङ्गमं भयतरोरिव पादम् / अर्गलामिव समीहितसिद्धेर्दन्दशूकमयमैक्षत मार्गे // 5 // सन्ततं दहनमण्डलमध्यात् तस्य रोगवियुजो रविनाडी। तापकारणमिमं व्यवसायं सर्वतोऽपि हि विवक्षुरुवाह व्यात्तमास्यमिव विघ्नमृगारे: कुप्रवृत्तितटिनीतटगस्य / रिक्तकुम्भमयमैक्षत सद्यो मस्तके विधवया धृतमुच्चैः भूरिबन्धवृतमावृतिहीनं प्रार्थनाविषयमप्युपनभ्रम्।। काष्ठभारमकरोदयमक्ष्णोः कष्टभारमतिथिं किमु मूर्तम् // 8 // मित्रवन्नवदवानलमुक्तञ्चालजालजटिलं प्रतियान्तम् / . मक्षु तं क्षुतमपि प्रतिषेध्य प्रस्थितेरसकृदाप न दोषम् // 9 // शिक्षिताश्ववरसारथियुक्तोऽप्यस्खलत्पथि रथश्च तदीयः / निश्चितामनुहरन्निव चेष्टां तन्मनोरथपरिस्खलनस्य // 10 // चस्कले रसनयाऽस्य तदानीं जल्पकल्पकतयापि किलोक्तौ।। लक्षयक्षनततक्षशिलेशक्लेशवारकपराहतयेव . // 11 // वारितोऽपि पथि सादिसमूहैस्तस्य वामदिशि दक्षिणहस्तात् / सारमेयतरुणः परिसर्पन सारमेयगतमेवमवादीत् // 12 // वाममेव हरिणा हरिणाशुप्रेरिताः परिययुः पथि तस्य / स्वीयजातिमृगभिद्गृहवाम्यं दर्शयन्त इव स्वोत्प्लुतिदम्भात् // 13 // पापयोरपथदर्शनदोषान्नेत्रयोः प्रविकिरन् बहुधूलीम् / तं न्यवर्तयदिव प्रतिकूलो मारुतोऽप्यधिकृतव्यवसायात् // 14 // 261

Loading...

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322