Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 44 // यत्र वल्गनपरैर्विदधद्भिः शास्त्रविद्भिरितरेतरमूहम् / सोऽन्वमन्यत गिरो भगवत्याः कौतुकाय गजयुद्धमुदीतम् // 39 // यत्र शाब्दिकमठेषु गुरूणामुल्लिलेख स कराभिनयेन। तर्जनाममरशिष्यसमूहव्याकुलैकगुरुकधुसभायाः // 40 // अङ्कसङ्कलनया खटिकानां खण्डनं कलयतां गणकानाम् / / पाशातपाता पतिपेदे यत्र तेन भगणोद्भवलोपव्यग्रधातृसमता प्रतिपेदे.. // 1 // कापिलीयमिव बुद्ध्यविलेपाद्गौणभोगमखिलेषु पुरेषु / तत्र सौवकरणैः स परार्थैरात्मसिद्धिपरमैक्षत लोकम् // 42 // पूर्णतावदगजध्वजतर्का यत्र वैभवमहालयविद्याः। स व्यलोकयदलौकिकपद्मावाप्तविभ्रमरसा नगरेषु // 43 // वासरान्न तिमिरेण विभक्तं ग्रामकर्बटपुरादिषु नक्तम् / यत्र तेन ददृशे हसितेषु स्फाटिकार्हतगृहांशुसमूहै: तं स्म सस्मयवशा इव चैत्यस्तम्भलग्नवपुषः सुखयन्ति। पुत्रिकाः कलितलक्षकटाक्षा यत्र सेय॑मितरेतरपश्याः // 45 // इन्द्रनीलमणिकुट्टिमहेमस्तम्भशालिजिनराजगृहेषु / यत्र सोऽर्णवविलोलनलोलस्वर्णशैलशतविभ्रममूहे // 46 // यज्जिनेन्द्रगृहदण्डनिविष्टे लाम्बनालिभृति पार्वणचन्द्रे / विस्मयाकुलमनास्ततनालव्योमपङ्कजधिया स बभूव // 47 // तत्र कस्त्वमिति पृच्छति लोके शंसिते भरतदूत इतीमम् / मौलमर्थमनवेत्य निनिन्दुः कल्पितान्यविषयाः पथि वध्वः // 48 // बुध्यते न भरतः किमु नेतेत्याक्षिपन्तममुमुत्करतालम् / ता जगुर्न परमेनमवेमः कञ्चुकीयरचनैकविशेषात् // 49 // पूजितो जयति स क्षितिपालैः सार्वभौम इति जल्पति तस्मिन् / तज्जना जगुरसौ न सुनन्दानन्दनात् किल परोऽस्ति पृथिव्याम्॥ 50 // 24
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