Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // विजयोल्लास-महाकाव्यम् // -: प्रथमः सर्गः :ऐङ्कारसारस्मृतिसम्प्रवृत्तै-वृत्तैः सुवृत्तैः पटुगीतकीर्तिः। मदन्तरायव्ययसावधानः, श्रियेऽस्तु शर्केश्वरपार्श्वनाथः // 1 // ऐन्द्रं प्रकाशं कुरुतां ममोद्यन्महारयादेव सरस्वतीयम् / सदा हितानां तनुते हितं या, पुंसां पवित्रा सकलाधिकारम् // 2 // ऐङ्कारमाराधयतां जनानां, येषां प्रसादः परमोपकारी। तेषां गुरूणां चरणारविन्दरजः परां सम्पदमातनोतु // 3 // न्यूनाधिकाभ्यां शशिभानुमद्भयां याभ्यामुभाभ्यां किल कुण्डलाभ्याम् / शोभानुरूपेत्यपरं जगत्यै, योग्यं मह: कुण्डलमर्पयन्तम् // 4 // सुधांशुनाम्नैव मुधा जनोऽयं, कलङ्किनं कञ्चन बह्वमंस्त / इतीव मत्वा तमपहनुवानैाँ द्योतयन्तं विशदैर्यशोभिः // 5 // निदर्शनत्वं बहुरूपभाजामनङ्गसङ्गं कथमङ्गतीति / रूपप्रकर्षप्रथितं जनानां, भाग्येन भूमीमनुकम्पयन्तम् लावण्यलक्ष्मीपरिभोगलुभ्यत्पुलोमजानेत्रचकोरपेयाः / मादृग्जनध्यानसमुद्रवृद्धिक्षमा दधानं वदनेन्दुभासः. // 7 // तारामिषात्सन्ततगण्यमानै, रेखाभिराभिः खटिकामयीभिः / पूर्णं गुणौघैरधुनापि धात्रा, लाभादविभ्रान्तवतैव सीम्नः // 8 // कुकाल-पातालतलावमज्जद् वसुन्धरोद्धारधुराधुरीणम् / / सूरीश्वरश्रीविजयादिदेवपट्टैकपूर्वाचलभानुमन्तम् // 9 // नाम्नैव धाम्नामनुरूपरूपं, सङ्क्रान्तमन्तर्गुणमावहन्तम् / सूरीश्वरं श्रीविजयादिसिंह, स्तोतुं प्रवर्ते विजयाभिकाङ्क्षी // 10 // भूपो भुनक्ति स्म विशालधामाऽयं मारुदेविर्मरुदेवनामा। तस्यैव नाम्ना प्रथितः पृथिव्यां, सद्धर्मकर्मव्यसनी स नीवृत् // 11 // . 257 // 6 //
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