Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ अग्रतः कटु रराट निविष्टः शुष्ककण्टकितरौ करटोऽस्य। लक्षयन् स्फुटममङ्गलबाणाघर्षिशाणघनघर्घरघोषम् // 15 // स्थाष्णु[स्नु] रस्य पथि दक्षिणहस्ते रासभोऽपि विरसं रसति स्म। सत्वरोद्भवदुपद्रवनाट्येऽदत्तभोजनमृदङ्गसमानः // 16 // तादृशैरशकुनैरपि जानन्नात्यजत् प्रचलनव्यवसायम् / नाधिकं प्रभुनिदेशविलम्बात् स स्म वेद बलवन्तमपायम् // 17 // त्यक्तसौवविषयावधिरेष प्राप बाहुबलिमण्डलमिद्धम् / शर्मणाऽतिशयिना परिपूर्ण द्राग्महोदयमिवोत्तमसाधुः // 18 // तन्न तेन वनमैक्ष्यत यस्मिन् यन्न चारुतरुराजिविराजि / सा च काचिदपि नैव शुकैर्या न स्तुतर्षभयशोभिरशोभि // 19 // घोषितर्षभगुणा उपरिस्था यद्वनीतरुषु तद्वदधःस्थाः / सारिकाः स किल गोपगणानां दारिकाश्च परिवीक्ष्य जहर्ष // 20 // यद्वनद्रुमगणे सुरवृक्षैर्निर्गतैः क्वचन कालनियोगात् / साक्षिभूतमुखरभ्रमरौघे न्यस्तमेव सरसं हृदि मेने . // 21 // भृङ्गसङ्गतलताकरताली दानरङ्गरसिका शशिशुभैः / तेन यत्र कुसुमै सुरवाटी हासकृन्न कलिता नवनाली // 22 // यत्र वृक्षतलसुप्तमगुप्तस्वर्णभूषणगणं पथिकौघम् / निश्चिकाय परिवीक्ष्य स गोमुर्धामकाममभिराममगुप्तम् // 23 // यत्र तेन ददृशे कणहन्तृव्यन्तरव्रजपलायनलीला। क्षेत्रपालपरिदर्शितमन्युत्रासितोप्लुतविसङ्गमदम्भात् // 24 // तस्य यत्र गगनोपगताग्रा ग्रामधामनिचिताः कणपुञ्जाः। . पर्वता इव करालकुकालव्यालमूर्ध्नि पतिताः प्रतिभाताः // 25 // क्षेत्रमैक्षत स यत्र पवित्रं मण्डितं बहुभिरैक्षवदण्डैः। . उच्छ्रितैः प्रतिपदं धृतगर्वग्रन्थिभिर्नवसुधारसजैत्रैः / // 26 // 262
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