Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 78 // // 82 // सकला स्वजलाशयोदकच्छलतो येन हृता दिवः सुधा। तदघक्षतये मरुत्पथेऽनुशयानेन कृता विधुप्रपा प्रथमानरसप्रवाहिनी, कठिनानामपि हृद्विभेदिनी / समतामयते विनिर्गता, कविवक्त्राच्च यतः सरस्वती // 79 // विवदन्त इवान्तराकृतद्विजराजोत्तमस(ख्य)भ्यशोभिताः / शिखरेषु समच्छविच्छटा, निशि यत्रौषधयश्च तारकाः // 80 // गुणवान् रहसि प्रकाशयेत् स्वगुणं न ध्वनयेत्तु डिण्डिमम् / इति यत्र रहस्यवेदिभिर्निशि दीपायितमौषधिवजैः // 81 // दमनादमनागनाहतध्वनिपूर्णामृतपायिनो हृदः / शिखराणि तपोगिरेलयं मुनयो यच्छिखरेषु तन्वते अमलायतदृष्ट्यशच्युतैः फलमूलैर्विहितस्ववृत्तयः। .. दधते चकिता यदाश्रिता मुनयः केऽपि मृगाश्च तुल्यताम् // 83 // स्मरति स्वतनुच्छविं न यच्छिरसीन्दुर्मणिचक्रचुम्बितः / कुपिताद्रिसुतांहिताडनप्रसृतालक्तकशम्भुभालजाम् // 84 // सकलौषधिसारसम्भृतं नगराजत्वधिया वृषध्वजः / यमपावयदादिमः प्रभुः स्वयमङ्गीकृतसर्वमङ्गलः // 85 // वहति क्षितिभृत्सु राजतां विहितस्वर्णकिरीटविभ्रमम् / भरताभिभवं व्यजिज्ञपम् भगवन्तं प्रणिपत्य तत्र ते // 86 // भगवानपि तन्मनोगिरिं ज्वलितं प्रेक्ष्य कषायवह्निना। नवमेघ इव प्रचकमे परिनिर्वापयितुं वचोऽमृतैः किमियं विमनस्कतोदिता बलवत् सा भवतां श्रियः कृते / न कृतेऽपि नियन्त्रणाशते कुटिलेयं स्ववशाऽवतिष्ठते चलतां लहरीभ्य एव या वडवाग्नेः परितापकारिताम् / अधिसागरमध्यगीष्ट तां श्रियमिष्टां गणयेत् कथं बुधः // 89 // 245 // 87 // // 88 //
Page Navigation
1 ... 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322