Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 257
________________ मदनो वदनोरुकालिमा भवति ब्रह्मभटेऽस्य जाग्रति। न हि पञ्चशरेण जीयते समरेऽसौ नवगुप्तिशक्तिभृत् // 114 // भवंसिन्धुमपि स्वसेवकान् गतपारं स सुखेन तारयेत् / सुदती कियती तदग्रतः कृशमध्या शुचिगोत्रया नदी * // 115 // घटयत्यमुना कृतापटुं हृदि दृग् दृश्यपृथक्त्वधारणा। निहतं परशक्तिमायया न विशल्येव किमाशु लक्ष्मणम् // 116 / विदधाति कुविद्यया यया विवशं मोहनृपो जगज्जनम् / प्रतिहन्ति नचैव तामसौ प्रियबीजान्सरयुक्तिलाघवः . // 117 समुपैति विवेकवारणश्छलयाशेऽपि परेण पाप्मिनः / स्वयमेव तदीयमण्डलं सहसा संस्मृतबोधजन्मभूः // 118 सुविकल्पतुरङ्गमाः सुखं कुविकल्पानसुहृत्तुरङ्गमान् / दलयन्ति किलास्य दुर्मदान् मृगनागानिव भद्रदन्तिनः // 119 इति मोहनृपस्मयक्षयक्षममाश्रित्य चरित्रभूपतिम् / कृततद्विजया. भजन्तु भोः सुखमध्यात्मपुरप्रभुत्वजम् // 120 लभते यदमर्त्यनायको मणिसिंहासनमाश्रितो दिवि / अपि शर्म वने तृणस्थितो मुनिरध्यात्मरतिस्ततोऽधिकम् // 121 मुनये वितरन्ति यां मुदं सहजाध्यात्मरसस्य विपुषः / लहरी न चरीकरीति तामपि पीयूषसमुद्रसम्भवा // 122 धनिनामभिमानमात्रजं सुखमध्यात्मविदां तु तात्त्विकम् / अनयोरियदन्तरं पुनर्भवपल्ली शबरैर्न लक्ष्यते // 123 जननी धृतिरुद्यमः पिता भगिनी सत्यरतिः सदा हिता। सहजः सविधे च बन्धवः स्थिरता तुष्टि-कृपा-क्षमादयः // 124 मुदिता जननी स्वसा सुतो व्रतरङ्गः समता च गेहिनी। अनतिक्रमवृत्तिता स्नुषा भववैरस्य विभावना सुता // 125 248

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