Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ सार्धत्रयोदश-सुवर्ण-सुवर्णकोटीः, कोटीरहीररुचिरं जितदिग्गणास्ते। श्रेयांसधाम्नि ववृषुः प्रभुभक्तिशैलक्रीड़ातटीप्रतिभटीकृतसन्निवेशाः ऐक्षवं रसमिनाय ददानो, लब्धवान् यदसि काञ्चनसिद्धिम्। तत्त्वमेष विबुधो विबुधत्वं, नाम कोशनिहितार्थकथं नः // 133 // साधुदानविधिवेधसि जातैर्येन भूरियमशोभि यशोभिः / तोषितेन विभुना परितुष्यस्तुष्टुवुस्तमिति देवनिकायाः // 134 // विश्वेश्वरोऽपि विहरंस्तदुपज्ञज्ञानधर्मज्ञलोककृतसंयमगात्रयात्रः / दीक्षादिनाद्विगलिते शरदां सहस्रो, घातिक्षयाद् विमलकेवलमाससाद भविककमलोल्लासं कुर्वन्निरस्ततमोभरः, प्रसृमरदृशां मार्गामार्गप्रदर्शनतत्परः / अकलिततपस्तेजोराशिर्दिनेश इवोदितो, भुवनविजयस्फीतां भेजे ततः स यश:श्रियम् // 136 // . द्वितीयः सर्गः अथ साधुरिव स्वमानसं, भरतो भारतवर्षमन्वशात् / विभुकेवलसम्भवक्षणोऽवनमच्चक्रबलाज्जितक्षितिः // 1 // युधि योधयशःपयोव्रतोविलसत्कोशगृहाद् विनिर्गतः। प्रविशॆश्च पुरं परस्य यत्करवालोऽजनि योगसिद्धिमान् // 2 // गजकुम्भभवास्त्रपायिनः परतेजोवडवाग्निशोषिणः / अगमन् यदसेर्यथा भयं, जलराशेर्न तथारिभूभुजः यदसिभ्रमतोऽतिमूर्च्छिताः, पवनोद्धान्तलता[तां]वने द्विषाम् / / उपवीक्ष्य तरङ्गमङ्गना, जलधौ खड्गिविषाणमद्रिषु // 4 // भुवि जाग्रति चिन्तितार्पणाचतुरे यस्य करे ग्रहोदरे।।। सुरभूमिरुहाः स्म शेरते, गतचिन्ताः सुरशैलकन्दरे 238
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