Book Title: Shantinath Charitram
Author(s): Hargovinddas
Publisher: Jain Vividh Sahitya Shastramala

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Page 140
________________ चतुर्थः सर्गः । बलीयसां राजिरमुष्य दन्तिनाम् । पिपासुराक्रान्तिपदाद् दिवा दिवा पुरस्य साम्यं सरसोऽधिनाऽवदत् ॥ ६१ ॥ जलान्तसद्भिन्नमदान्धसिन्धुर रदाननं तोरगपुच्छसच्छवीन् । निरीक्ष्य मेने नगरीं नु भोगिनां समापतन्तीं जिनसेवया जनः ||६२ || जिनेशितुर्दर्शनलालसाऽलसा भुजङ्गकन्या हसितोन्मुखश्रियः । जलार्धरुद्धस्य तटान्तभूभिदः पदात् पयोजन्मवनस्य रेजिरे ||६३ || वशीकृते तत्सरसाप्सरोजने Sवतारमा प्रतिविम्बितोडुभिः । सरोरुहे सौरभचौरबन्धनं मृणालजालस्य मिषाद् बभार यः ॥ ६४ ॥ तटान्तविश्रान्ततुरङ्गमच्छटा १ दिवा = स्वर्गेण | & १२ल

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