Book Title: Shant Sudharas Part 01 Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana View full book textPage 7
________________ जनसमूह के बीच प्रवाहित करने का श्रेय घाटकोपर - मुम्बई के संगोई परिवार के केतन - कौशिक - कल्पना इन तीनों भाई-बहन की त्रिवेणी को जाता है। उसमें भी गोवालिया टेन्क जैन संघ में सन् १९९१ का जो मेरा चातुर्मास हुआ... और चातुर्मास के दौरान १६ दिवसीय शान्तसुधारस गान-महोत्सव के दौरान जो प्रवचन हुए... वे प्रवचन सुश्री कल्पना संगोई ने अक्षरांकित कर लिये थे... इन प्रस्तुत प्रवचनों को करने में – लिखने में वह सब प्रबल निमित्त बन गया। __ मद्रास की सुश्री पूनम एस. मेहता ने मेरी मनोभावना और इच्छा के मुताबिक अपने अंग्रेजीभाषी शोधप्रबंध के विषय के रूप में शान्तसुधारस' ग्रंथ की पसंदगी की... कड़ी मेहनत... धैर्य और लगन के साथ अध्ययन-मनन करके मेरे मार्गदर्शन तले ही उसने अपना शोधप्रबंध-महानिबंध लिखा और मद्रास विश्वविद्यालय से दिसंबर १९९५ में यशस्वी रूप से Ph.D. की पदवी भी प्राप्त की। शान्तसुधारस को इस तरह विविध रूप में प्रचारित-प्रसारित करने में मुझे जो भीतरी तृप्ति... आंतरिक आनंद का अहसास प्राप्त हुआ है, लगता है वह उपाध्यायश्री विनयविजयजी महाराज के प्रति किसी जन्मजन्मांतर का ऋणानबंध ही होगा ! १६ भावनाओं पर कुछ ७२ प्रवचन लिखने का इरादा है । उसमें से २४ प्रवचनों के संकलन रूप में प्रथम भाग प्रकाशित हो रहा है । अन्य प्रवचन तैयार होने पर यथा समय प्रकाशित होंगे। एक बात है... मेरी लेखन-सर्जनयात्रा अब पहले जैसी अस्खलित - अनवरत नहीं रही है... शरीर का कमजोर पड़ रहा स्वास्थ्य अब सातत्यभरा सहयोग देने से मुकर रहा है । तब ज्होन आदम्स' नामक एक विदेशी सर्जक ने अपने आप के बारे में की हुई नुक्ताचीनी (एक मित्र ने तबीयत का हाल पूछा तो उसके जवाब में ज्होन आदम्स ने लिखा था) याद आ रही है । हवा के सख्त थपेड़ों से घिरे हुए, तूफान से टूटे-फटे एक कमजोर.. जर्जरित और गिरने के बहाने खड़े रहे हुए मकान में फिलहाल मैं रहता हूँ और मुझे अच्छी तरह मालूम है कि मकानमालिक को अब इस घर को दुरस्त करवाने में ज्यादा रुचि नहीं है... न उसका इरादा है ! हालाँकि जहाँ-जब-जितना शरीर साथ दे... तो मेरी इच्छा है सर्जनयात्रा चलती रहे... सर्जन की यात्रा में ही विसर्जन वह तो प्रभु महावीर के निर्वाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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