Book Title: Shant Sudharas Part 01 Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana View full book textPage 6
________________ मेरी ओर से - शान्तसुधारस ! महोपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराज की अद्भुत और अनुपम रचना ! इस ग्रंथ के प्रति मेरा खिंचाव, मेरे दीक्षा-जीवन के आरंभिक बरसों से बना रहा है ! पूरा ग्रंथ कंठस्थ करके उसे गाने में – गुनगुनाने में निजानंद की अनुभूति का हल्का-सा अहसास पाया है... देखा है... महसूस किया है ! __ अनेक बार इस ग्रंथ की भावनाओं पर... गाथाओं पर प्रवचन किये हैं ! बड़ेबड़े विशाल जनसमूह के बीच और जिज्ञासुओं के छोटे वर्तुल में भी ! इस ग्रंथ को गाने में... इस पर प्रवचन करने में विशेष आग्रहभरा योगदान रहा है वयोवृद्ध स्वर्गीय गांधीवादी श्री शांतिभाई साठंबाकर (अहमदाबाद) का ! सन् १९६६ के मार्च-अप्रैल महीने में हुए उनके प्रथम परिचय से लेकर सन् १९९२ में उनके पार्थिव शरीर का निधन होने तक के बरसों में जब जब भी शांतिभाई से मिलना हुआ है... तब-तब शान्तसुधारस' का गान... उसका रसपान... उस पर विवेचन... उसमें छुपे हुए रहस्यों का, जीवनमूल्यों का प्रगटीकरण दिल खोलकर किया है... करवाया है ! शांतिभाई तो जैसे कि शान्तसुधारस के आशिक थे । मस्त गायक थे... और बड़े प्रशंसक थे। उनके प्राणों के प्रत्येक स्पंदन में शांतसुधारस भलीभाँति रचापचा होगा... इसीलिए तो उनकी जीवन-संध्या की क्षितिज पर शांतसुधारस और विशेष रूप से माध्यस्थ्य भावना के रंग खिल उठे थे । उनके भतीजे और ख्यातिप्राप्त डॉ. वाडीभाई शाह (भरुचवाले) भी शांतसुधारस के तृषातुर अभिलाषक है... उनके लिए भी मैंने इन भावनाओं को गाया है। इस शान्तसुधारस ग्रंथ को - इसकी भावनाओं को, इसके श्लोकों को शास्त्रीय रागों में श्रुतिमधुर ढंग से स्वरबद्ध करने के और स्वरांकित शांतसुधारस को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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