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षट् द्रव्य विचार.
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व्यवहारज्ञान-एटले अलंकार व्याकरण अन्य मतियोना ग्रंथ तथा गणितानुयोग कथानुयोग चरणकरणानुयोग तुं जाणपणु ए सर्व व्यवहार ज्ञान छे तथा उपयोग विना मूत्र सिद्धांतना अर्थ करवा ए पण व्यवहार झान छ हठ समाधि ते पण व्यवहार ज्ञानछे, एनायी मुक्ति मळती नथी पण आत्माना स्वरुपर्नु सम्यक जाणवू, षड् द्रव्यना गुण पिपिनु जागवू, उत्पाद व्यय अने ध्रुवर्नु नाग. ते थकी निश्चय ज्ञान थाय छे, पांच व्य त्याग करवा योग्य छे, एमां आत्मानी स्तु कंइ नथी, ए पांचमां पण पुद्गल द्रव्यना संयोग संबंधे करी आ आत्मा परवस्तु पोतानी मानी बेठो छे, पण वस्तुतः ते