Book Title: Shaddravya Vichar Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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Page #1 --------------------------------------------------------------------------  Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड़ द्रव्य विचार. -- - - राग द्वेप विजेतारम् ज्ञातारं विश्ववस्तुनः शाज्यं गिरामीशं तीर्थेशंस्मृति मानये १ *00K योजक, मुनि बुद्धिसागरजी -on.kछपावी प्रसिद्ध करनार, वकील मोहनलाल हीमचंदभाई. मु० पादरा. सने १९०३ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमदावाद. श्री जैन प्रिन्टिंग प्रेसमां शाह जेठालाल दलसुखभाइए छापी Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અનુક્રમણિકા. ૧ મંગળાચરણ -. .. ૨ પ દિવ્યનું સ્વરૂપ • ૩ સાત નય . •• ૪ સમ ભંગનું સ્વરૂપ પ ચાર ધ્યાન .. ૬ ચાર ભાવના ... - ૭ બાર ભાવના . . .... Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 ST PNY 111 novna Page #7 --------------------------------------------------------------------------  Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देश. श्री तीर्थकर महाराजाए समवसरणमां बेसी भव्य__ जीवोना हित भणी षड्व्व्य नुं स्वरूप कथन कयु. ते षड्द्रव्य स्वरूप एवं छे के ते जाणीने तेनी श्रद्धा करवाथी सम्यकत्वनी प्राप्ति थाय छे. जीवादि नव तत्वनो समावेश पण षड्द्रव्यमां थइ शके छे ए षड़द्रव्यविशेष स्वरूप सूत्रोमां छे. तेमाथी यत्किंचित् आ ग्रंथमां लखवामां आव्युं छे. श्री तीर्थकर महाराजाए, १ द्रव्यानुयोग २ गणितानुयोग ३ चरणकरणानुयोग अने ४ कथानु योग ए चार अनुयोग कथन कर्या छे. तेमां द्रव्यानु योग विशेषे करी आत्माने हितकारक छे. जेम जेम द्रव्यानुयोगर्नु विशेष विशेष स्वरूप जाणवामां आके के तेम तेम सम्यक्त्वनी शुद्धि थाय छे षड्व्य नो Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ द्रव्यानुयोगमा समावेश थाय छे। अने तेनुं स्वरूप वीतराग वचनानुसारे जाणवाथी अने तेनी श्रद्धा कस्वाथी आसन्न मोक्ष प्राप्त थाय छे। अने अन्य मत वादीओनां तत्व असत्य भासे छे. माटे तेनुं जाणपशुं करवानी आवश्यक्ता छे. आ ग्रंथ लखवानुं - मुख्य प्रयोजन. अछे जे हुं सुरतथी विहार करी पादरा गामे आव्यो त्यांना श्रावक वकील मोहनलाल हीमचदनो समागम थयो. तेओए मने कह्युं के पद्रव्यनुं कांइक स्वरूप समजावो, त्यारे तेमनी वीनंतिथी तेमना सारु में केटलाक ग्रंथोमांथी उद्धार करी ग्रंथोना अनुसारे आ षद्रव्य विचार प्रबंध लखी तेमने समजाव्यो, तेथी तेमने घणो हर्ष थयो, अने जैन तत्वो उपरनी श्रद्धा दृढ थइ, तेमने पोताने आ मंथथी घणो लाभ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थयो. तेम बीजा भव्य जीवोने थाय, एम जाणी औं ग्रंथ छपाक्वा तेओए अनुमति मागी ते योग्य लागवाथी आपी छे. क्षमापना. आ ग्रंथमां कोइ ठेकाणे मति दोषथी भूल थइ होय तो ते माटे पंडित पुरुषोए. मारा उपर क्षमा करी सुधारवी " शुभे यथाशक्ति यतनायं " ए न्यायने अनुसरी में आ प्रयास को छे, तेमां कांइ वीतराग वचनथी विरुद्ध लखायु. होय ते संबंधी मिच्छामि दु कडं दई छं. भलामण. आ ग्रंथनों विषय गहन होवार्थी गीतार्थ समक्ष समजीने दांचवाथी हितकर थशे माटे ते प्रमाणे वर्त आ ग्रंथनो लाभ लेवामां आवशे तो करेलो प्रयत्न साल थयो गणाशे. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशीर्वाद भन्य जीवो आ ग्रंथ वांची व्यवहार अने निश्चय पूर्वक आत्म साधन करी परमात्म पद ( मुक्तिपद) पामो एवी मारी आकांक्षा छे. तथास्तु. मु. कावीठा, माहा सुद १ सं. १९५९. ली. मुनि बुद्धिसागर. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट द्रव्य विचार. R नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सब्ध साणं एसोपंचनमुक्कारो सव्व पावणासणो मंगलाणं सब्दोसि पढमं हवइ मंगलम् ब्राह्मी भगवति भारती, प्रणमी तेहना पाय जीनवाणीना चार भेद, अनुयोगे करी थाय? गणित चरण करण कथा द्रव्य ए चार उदार द्रव्य ए चारमा सारछे, धरतां भवजल पार अति गहन द्रव्यानुयोग, उदाधि सम कहे जीन Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) पट् द्रव्य विचार. BIHAR तेनो लेश हुं वर्णद्, अति उत्कंठीत दीन ३ भाग्य दशा जो आकरी, सद् गुरु करूणा होय निर्मळ बुद्धयादिकथी, समजे विरली कोय ४ योग्य जीवने एहनो, लागे मनमा राग संमतिग्रंथे भाखीयुं, ते साधु महा भाग ५ उदासीनता संपजे, धरतां एहनुं ध्यान निर्मळ थावे आतमा, पामे केवळज्ञान ६ द्रव्य तणा षड् भेद छे, धर्मा धर्म विचार आकाश पुद्गल कालने, आतम ए मनोहार७ पंच धुरते हेय छे, आतम उपादेय गुण पर्याय छे तेहना, भविजन ने हे ज्ञेय ८ पूर्व प्रणीत ग्रंथो दवि, समत्यादिक सार नेहनो लेश लही करी, वचन वढं धरी प्यार पंडीतजन मुद्रष्टिथी, देखे जो आ ग्रंथ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट् द्रव्य विचार. (३) maduaayaamanaMIR U WAONOR A NILDREAMERIaLakhanawwa सार विचारी धारीने, पामे शिवपुर पंध १० दुष्ट दोष देखी करी, मनमां माने हर्ष । पंडीत जन करे पारखं, माने ते उत्कर्ष ११ ___आ चतुर्गति रुप संसार आत्मा अनादि काळथी परिभ्रमण करे छे, अने कर्मना योगे जन्म जरा मरणादि रुप दुराव भोगवे छे, कर्मना संयोगथी एकेंद्री बेरेंद्री तेरेंद्री चौरेंद्री पंचेंद्रीपणुं पामे छे, दश द्रष्टांते करी दुर्लभ मनुष्य जन्म पामीने पण श्रावककुल सद्गुरु समागम जीनवाणीनुं श्रवण तेनी सदहणा अने ते प्रमाणे वर्तयु ए आदि उत्तरोत्तर दुर्लभ छे. जीहां सुधी आत्मानु शुद्ध स्वरुप ओखातुं नथी तीहां सुधी शुद्ध सद्दणा थती नधी Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 8 ) पट् द्रव्य विचार. श्री जीनेश्वर कथीत वाणी सांभळवाथी आत्मानुं स्वरुप यथातथ्य समजाय छे, माटे ज्ञाननो घणो खप करतो. ज्ञान विना जीव अजीव आदि पदार्थतुं सम्यद ज्ञान तुं नही. आत्मा नित्य केवी रीतेछे अनित्य केवी वेळे उत्पाद व्यय अने ध्रुव शीवस्तु छे तेनुं जीहां सुधी ज्ञान नथी, वहां सुधी जीव सम्यक वस्तु जाणी शकतो नथी अने हेय ज्ञेय अने उपादेय पण जाणी शकतो नथी. सम्यक् वस्तुना ज्ञान थकी सम्यऋत्व प्राप्त थाय छे. माटे ज्ञाननी आवश्यकता छे. AAAAAA २ निश्चयज्ञान de modern Cal (age agai ज्ञानना पण वे भेद छे १ व्यवहारज्ञान Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट् द्रव्य विचार. (५) व्यवहारज्ञान-एटले अलंकार व्याकरण अन्य मतियोना ग्रंथ तथा गणितानुयोग कथानुयोग चरणकरणानुयोग तुं जाणपणु ए सर्व व्यवहार ज्ञान छे तथा उपयोग विना मूत्र सिद्धांतना अर्थ करवा ए पण व्यवहार झान छ हठ समाधि ते पण व्यवहार ज्ञानछे, एनायी मुक्ति मळती नथी पण आत्माना स्वरुपर्नु सम्यक जाणवू, षड् द्रव्यना गुण पिपिनु जागवू, उत्पाद व्यय अने ध्रुवर्नु नाग. ते थकी निश्चय ज्ञान थाय छे, पांच व्य त्याग करवा योग्य छे, एमां आत्मानी स्तु कंइ नथी, ए पांचमां पण पुद्गल द्रव्यना संयोग संबंधे करी आ आत्मा परवस्तु पोतानी मानी बेठो छे, पण वस्तुतः ते Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) पट् द्रव्य विचार. . . पोनानी नथी. ज्ञान वस्तु आत्मानी छे. अनंतज्ञान अनंत दर्शन अनंत चारीत्र अनंत वीर्यनो भोक्ता आ आत्मा अरुपी असंख्य प्रदेश मयी छे. तेनुं जे ध्यान तेने निश्चय ज्ञान कहे छे. ___आत्मा वस्तु अनादि अनंत छे, तेने कमनो संयोग थयो छे, तेथी दुःखी थाय छ, भवी साथै कर्मनो संबंध अनादि सांत भांगे छे. अभवी साथे कर्मनो संबंध अनादि अनंतमे भांगे छे. कर्मना आठ प्रकार छे-ज्ञानावरणी दशनावरणी, वेदनी, मोहनी, आयुष्य नाम, गोत्र, अने अंतराय एम आठ कर्म छे, तेनी उतर प्रकृति १५८ छे. ते कर्मरुप जड वस्तु. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट् द्रव्य विचार (७) नो प्रपंच विचित्र छ जेम ब्राह्मीरुप जड औ. षधिना भक्षण थकी बुद्धिरुप वस्तुनु स्फुरायमान पणु थाय छ, तेम की वस्तु जे जडरुपे छे, तेना संबंध थकी आत्मा विचित्र आकारे देखाय छे. अने जुदा जुदा प्रकारनां शरीरने धारण करे छे, तेम पांचइंद्री म न वचन अने कायरुप पुद्गल वस्तुने धार___ण करे छे, ए सर्व कर्मना प्रपंच छे, ए कर्म पुद्गलास्तिकाय छे. जड छे. सक्रिय छे, तेयां आत्मत्वपणु नथी, एम ज्यारे ज्ञान थाय छे त्यारे तेनाथी मोह उतरे छे, ते माटे षड् द्रव्यनुं ज्ञान थवाथी समकितनी प्राप्ति थाय छे ते षड् द्रव्य देखाडे छे. (१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय - Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) षट् द्रव्य विचार. (३) आकाशास्तिकाय (४) पुद्गलास्तिका. य (१) काळ (६) जीवास्तिकाय-ए छ द्रव्य शास्वतां छे. ए छ द्रव्यना अनुक्रमे गुण कहेछे. १ धर्मास्तिकायना गुण ४ (१) अरुपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) गतिसहाय २ अधर्मास्तिकायना गुण ४ (१) अरुपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) स्थितिसहाय ३ आकाशास्तिकायना गुण ४(१) अ रुपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) अव Sam । ४ पुद्गलास्तिकायना गुण४(१)अरुपी (२) अचेतन (३) सक्रिय (४) मिलण विखरणरुप पुरणगलन Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट् अव्य विचार. (९ ) ५ काळद्रव्यना गुण ४ (१) अरुपी (२) अचेतन (३) अक्रिय (४) नवापुराण वर्तना लक्षण ६ जीवद्रव्यना गुण ४ (१) अनंतज्ञान (२) अनंतदर्शन (३) अनंतचारित्र (४). अ. नंतवीर्य ए छ द्रव्यना गुण कह्या ते नित्य ध्रुव रुपे छे छ द्रव्यना अनुक्रमे चार चार पर्याय कहे छे. १ धर्मास्तिकायना (१)बंध (२) देश (३) प्रदेश (४) अगुरु लघु २ अधर्मास्तिकायना (१) खंध (२) देश ___ (३) प्रदेश (४) अगुरु लघु। ३ आकाशास्तिकायना(१) खंध (२) देश (३) प्रदेश (४) अगुरु लघु Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) षट् द्रव्य विचार. 12.IN.. ४ पुद्गल द्रव्यना (१) वर्ण (२) गंध (३) रस (४) स्पर्श ५ काळद्रव्यना (१)अतीत(२) अनागत (३)वर्तमान (४) अगुरु लघु ६ जीवद्रव्यना (१) अव्यावाध (२) अनवगाह (३) अमुतिक (४) अगुरु लघु ए छ द्रव्यना छ पर्याय कह्या. ___ हवे ए छ द्रव्यना गुण पर्यायर्नु साध ये कहे छे, _अगुरु लघु पर्याय छए द्रव्यमां सरखो छे, अरुपी गुणे करी पांच द्रव्यनु साधर्म्य छे एक पुद्गल द्रव्यमां अरुपी गुण नथी, कारण के पुद्गल द्रव्यरुपी छे. तथा अचेतन गुणे करी धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट द्रव्य विचार. (११) काश पुद्गल अने काल ए पांच द्रव्यनु साधर्भिपणु छे. जीवद्रव्यमा अचेतन गुण नथी, 'चेतनालक्षणोजीव इति वचनात्' सक्रियगुणे करी जीव तथा पुद्गल ए बे द्रव्यनुं व्यवहारथी साधर्म्य छे. कर्मः यकी रहीत सिद्ध जीवोमां सक्रिय गुण नथी, बाकीना चार द्रव्यमा सक्रिय गुण नथी; गती सहाय गुण एक धर्मास्तिकायमा छे. बाकीना पांच द्रव्यमां नथी, स्थिति सहाय गुण एक अधर्मास्तिकायनो छे. बीजा पांच द्रव्यमां नथी. तथा अवगाहना गुण ते एक आकाशास्तिकाय द्रव्यमां छे, बाकीना पांच द्रव्यमां नथी. वर्तना गुण एक काळ द्रव्यमा छे बीजा पांच द्रव्यमां नथी. मिलण विखरण गुण पु Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२) घट द्रव्य विचार. JARAM - .++ द्गल द्रव्यमांछे बाकीना पांच द्रव्यमा नथी, तथा ज्ञानचेतना गुण ते एक जीवद्रव्यमा छे. बाकीना पांच द्रव्यमा नथी. ए मुल गुण कोई द्रव्यना कोइ द्रव्यमां मळता नथी. _एक धमास्तिकाय वीजो अधमर्मास्तिकाय त्रीजो आकाश, ए त्रण द्रव्यना ऋण गुण तथा चार पर्याय सरखा छे, अने अरूपी अंचेतन अक्रीय ए त्रण गुणे करी काल द्रव्य पण ए समान छे. हवे ए ल द्रव्यना गुण पर्याय स्वरुप जाणवाने मूत्रपाठ गाथा कहे छे. परिणामि जीव मुत्ता सपएसा एग खित किरिआया। निश्चणिञ्च कारण कत्ता सव्वगय इयर अप्पवेसे ॥१॥ ८ १० १२ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षट् द्रव्य विचार. ( १३ ) अर्थ. निश्चय नयेकरी छए द्रव्य परीणामी के कारण के धास्तिकाय पोतानामां निश्चय नये करी परिणमी रधुं छे, पण बीजा पांच द्रव्यमां परिणमतु नथी. बीजु अधर्मास्तिकाय द्रव्य पण निश्चय नये करी पोताना स्वरुपमां परीणमी रां ले, पण बीजा पांच द्रव्यमां पारणमतु नथी. आकाशास्तिकाय पण निश्चय नये करी पोताना स्वरुपमाज परिणमे छे. काल द्रव्य पण निश्चय नये करी पोताना स्वरुपमां परिणमी रथं छे, पण बीजा पांच द्रव्यमां निश्चय नये करी परिणमतुं नथी. जो निश्चय नये करी ર पर पुद्गल द्रव्यमां परिणमेतो जीव कोइकाले कर्म थकी रहीत थइ सिद्धि पद पामे • Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) षट् द्रव्य विचार. नही, अने व्यवहार नये करी जीवनाटकीयाना पेठे एकेंद्री बेरेंद्री तेरेंद्री चौरेंद्री देवता मनुष्य तीर्यच नारकी समुर्छिम पंचेंद्रिीरूप नवा नवा पुद्गलना वेष पेहेरी नवा नवा रुपी नवां नवां नाम धरावी आत्म भान मूल्यो छतो चार गतिरुप संसार नगरना चोराशीलाख चउटामा अनादिकालथी अनेक दुःख सहन करतो भमतो फरे छे. ए रीते आ जीव कर्मरूप पुद्गलमां परिणम्यो छतो भटक्या करे छे. परंतु निश्चय नये करी जीव सदा शाश्वतो ले, अने सत्ताए सिद्ध समान छे. व्यवहार नये कॅरी जीव अने पुद्गलए बे द्रव्य परिणामी छे तथा पुद्गला स्ति काय द्रव्यना पण निश्चय नये करी पर · Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घट् द्रव्य विचार. (१५ ) माणु आ सर्व पोताने स्वभाव रह्यो छे, अने व्यवहार नये करी पुद्गल परमाणु आ मली खंध थाय छे, पण जो निश्चय नये करी खंथातो होततो कोइकाले ए खंध विखराइ जात नहीं सदा कालखंध भावेज रहेत, परंतु तेमतो रहेता नथी, माटे व्यवहार नये करी पुदमलना परमाणुआ मळी खंध थाय छे, अने पाला खंध विखराइ पण जाय छे, निश्चय नये करी परमाणुआ पोतपोताने स्वभावे सदा शाश्वता छे,पण कोइकाले वधशे घटशे नही बाळ्या बळशे नही गाळ्या गळशे नही. एरीते ए छद्रव्य निश्चय नये करी तपोताने स्वभावे परिणामिक जाणवां तथा व्यवहार नये करी धर्म अधर्म आकाश अने Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) षट् द्रव्य विचार. काल ए चार द्रव्य अपरिणामी छे. अने जीव तथा पुद्गल ए बे द्रव्य परिणामी छे. केमके व्यवहार नयने मते जीव समये समये अनंतां कर्मरुप वर्गणानां दळीयां लीए छे, अने समये समये अनंता कर्मरुप वर्गणानां दळी खेरवे छे, पण जो निश्चय नये करी कर्मनुं ग्रहण जीव करतो होयतो कोइकाले कर्मथकी रहीत थाय नही. आत्माजेतेराग अने द्वषे करी परद्रव्यमा परिणमे छे, रागद्वेष रुप अज्ञाननी अशुद्धताए करी पुद्गल परमाणुआने ग्रहण करे छे, अने मनुष्य देवता नारकी अने तीर्यचना शरीर रुप खंध प्रते नीपजावे छे. ते खंध स्थिति प्रमाणे रहे छे, वळी पाछा खेरवे छे. वळी बीजा परमाणु Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Be00ADA Recen00000 षड् द्रव्य विचार. (१७) आओने ग्रहण करी नवा शरीर रुप बंधने नीपजावे छे, केटलाएक पुद्गल परमाणुआवळी ग्रहण करी पाछा खेरवे छे, एम व्यव: हार नये करी अनादि काळथी जीवपुद्गलने परिणमनपणानी घटमाल समये समये चाली रही छे. शुभ पुद्गलनो संबंध थवाथी जीव सुख माने छ, अने अशुभ पुद्गलनो संबंध थवाथी जीव दुःख माने छे, ते पुण्य पापरुपे जाण( पण ए स्ववस्तु नथी ए रीते व्यवहार नयथी जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य परिणामी छे. हबे छ द्रव्यमां जीव द्रव्य केटला अने अजीव द्रव्य केटला ते वतावे छे, नाणंचदंसगंचेव चरित्तच तवोतहा, वीरियंउबआगोत्र Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) षड् द्रव्य विचार. एअंजीअस्सलखणं ॥ १ ॥ अर्थ - ज्ञान, दर्शन, चारित्र. तप वीर्य अन उपयोग जेनामा होय तेने जीव कहे छे. अने बाकीनाने अजीव केहे छे. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अने काल, ए पांच द्रव्य अजीव छे, कारण के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप. वीर्य अने उपयोगरुप जीवनुं लक्षण तेमनामां नथी, जीव द्रव्य ते जीव छे. ' चेतनालक्षणोजीवः इतिवचनात् ' छए द्रव्यमां पुद्गल द्रव्य मूर्तिमंत छ. अने शेष पांच द्रव्य अ मूर्ति छे. धर्म, अधर्म, आकाश, अने काल, ए चार द्रव्य ते तो अमूर्ति छे, जीवद्रव्यना वे भेद छे. सिद्ध अने Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड द्रव्य विचार. ( १९ ) संसारी, तेमां सिद्धना जीव अमूर्तिमंत छ. अने संसारी जीवो कर्मोपाधिथी मूर्तिमंत छ. निश्चय नये करी तो जीव अरुपी माटे अमूर्ति कहीए, अने व्यवहार नये करी देवता मनुष्य तीर्येच अने नारकी रुप जीवना पांचसे त्रेसठ (५६३) भेद थाय छे, ते सर्वे मूर्तिरुपे जाणवा. पुद्गल द्रव्यनो व्यवहार नयने मते अनंता परमाणुआ मळी खंध बने छे, तेवारे नजरे दीठामां आवे छे, माटे एने मूर्त केहेवाय छे. छ द्रव्यना स्वरुपमां मूर्त अमूर्तनो विचार को. हवे सप्रदेशी अने अप्रदेशीना वीचार कहे छे, छ द्रव्यमां पांच द्रव्य समदेशी छे, अने Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०) षड् द्रव्य विचार. एक कालद्रव्य अप्रदेशी छे, धर्मास्ति असंख्यात प्रदेशमय छे. अधर्मास्तिकाय असंख्य प्रदेशमय छे आकाश द्रव्य अनंत प्रदेशी छे. जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी छे. जीव द्रव्य अनंता जाणवा. तथा पुदगल परमाणु आ अनंत प्रदेशी छे, अने एकेक परमाणुआमां अनंता पर्याय रह्या छे. परमाणुआ अनंत छे. ए रीते पांच द्रव्य समदेशी छे. अने कालद्रव्य अप्रदेशी छे, एनो गणित काल तो उत्पाद व्ययरुप पलटण स्वभावे अही द्वीप प्रमाणे जाणवो ए रीते षड् द्रव्यमां सप्रदेशी अने अप्रदेशी विचार कह्यो. षड द्रव्यमांत्रण द्रव्य एक, अने त्रण द्रव्य अनेक जाणवां. केमके धर्मास्तिकाय द्रव्य Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (२१) असंख्यात प्रदेशी लोकव्यापी एक जाणवु. तेमज अधर्मास्तिकाय द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोकव्यापी एक जाणवू. सेमज आकाशास्तिकाय द्रव्य पण अनंत प्रदेशी लोकालोकव्या. पी एक जाणवू, एटले ए त्रण द्रव्य ते एक कहींए, अने जीवद्रव्य छेते लोक व्यापी अनंतां जाणवां, ते एकेक जीवना असंख्याता प्रदेश छे, अने एकेक प्रदेशे अनंति कर्मनी वर्गणाना थोकडा लाग्या छे. तथा जीव थकी रहीत घटपट दंड प्रमुख बीजा पुद्गलना परमाणुआ छुटा पण अनंता छे, माटे जीव थकी पुद्गल द्रव्य अनंतगुणां जाणवां, अने एककी कर्म वर्गणामां अनंत पुद्गल परमागुआ रह्या छे ते परमाणुआ द्रव्यथकी स Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) षड् द्रव्य विचार. दाकाळ शाश्वता छ, माटे एकेक परमाणुआमां अनंता उत्पाद व्ययरुप कालना समय अतीतकाल व्यतीत थइ गया. तथा हजी पण अनंता समय आवतेकाले व्यतीत थाशे, अ. न परमाणुआतो तेना तेज सदाकाळ शाश्वता छे. माटे पुद्गल द्रव्यथकी पण काळद्रव्यना समय अनंता जाणवा, एरीते जीव पुद्गल अने काल ए त्रण अनेक कहीए. एरीते एक अनेकनो विचार षड् द्रव्यमां कह्यो. हो षड् द्रव्यमा क्षेत्र अने क्षेत्रीनो विचार दर्शावे छे. छ द्रव्यमां आकाश द्रव्य, क्षेत्र छे अने बाकीनां धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल, अने आत्मा, ए पांच द्रव्य आकाश क्षेत्रमा रहे छे, Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( २३ ) माटे क्षेत्री जाणवां. ते केवी रीते रह्यां छे ते बतावे छे. आंखनी पांपणना एक वाळ ग्रहण करीने तेना खंड ( भाग ) एवा करी एके एक खंडना बे खंड ना थाय, एवा सूक्ष्म खंड प्रमाणे आकाश क्षेत्र लइए, तेटलामां आका - शना असंख्यता प्रदेश रह्या छे. अने तेटलामां धर्मास्तिकायना असंख्यात प्रदेश छे. तथा अधर्मास्तिकायना पण असंख्यात प्रदेश छे. अने निगोदीया गोळापण असंख्याता रह्या छे, ते सर्व पडया मुकीने ते मांहेलो एक गोको लहीए ते एक गोळामां असंख्याती निगोद रही छे. ते असंख्याती निगोद पडती मुकीने ते मांहेथी एक लहीए, ते एक निगोदमां पण अनंता जीव रह्या छे, ते जीवनी Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) षड् द्रव्य विश्वार: गणत्री बतावे छे, एक अतीतकाल कहेतां एटले आगळ छेडा रहीत, अनंत काल गयो, तथा अनागत काल ते पण छेडा रहीत छे. ते सर्वेना जेटला समय थाय, तेनी साथे वर्त मान कालनो एक समय पण गणवो. एटले अतीत अनागत अने वर्तमान कालना जेटला समय थाय, ते सर्वने अनंतगुणा करीए एटला जीव एक निगोदमां रह्या छे. ते सर्व जीव पडया मुकीने ते मांहेथी मात्र एक जीव लइए ते एक जीवना असंख्याता प्रदेश छे. ते एकेका प्रदेशे अनंती कर्मनी वर्गणाओ लागी के. ते सर्व वर्गणाओ पडती मुकीने ते मांहेथी एक वर्गणा लहीए, ते एक वर्गणामां अनंता पुद्गल परमाणुआ रह्या छे. ते बतावे छे. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है २५) مسلسظعمت प्रथम परमाणुआना बे भेद छे एक छुटा परमाणु अने बीजा खंधना. वळी बे भेद छे. एक जीव सहीत खंध, अने बीजा जीव रहीत खंध, ते घटपट दंड प्रमुख अजीव खंध जाणवा. तीहां प्रथम जीव सहित खंधनो विचार लखीए छीए. बे परमाणुआ भेला थाय ते वारे इयणुक खंध कहेवाय छे. त्रण परमाणुआ भेला थाय तेवारे व्यणुक खंध कहेवाय छे, एम असंख्याता प्रमाणुआ भेळा थाय त्यारे असंख्याताणुक खंध कहेवाय रे, एटला परमाणुआनो खंध थाय तीहां सुधीना खंध ते सर्वे जीवने ग्रहण करवा योग्य थता मथी. एटला परमाणुआना खंधने कोइ जीव ग्र Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) षड् द्रव्य विचार. हण करी शकती नयी. परंतु अभव्य राशिना जीव चुम्मोत्तरमे बोले छे, ते थकी अनंत गुणाधिक परमाणुआ जेवारे भेला थाय. तेवारे औदारिक शरीरने लेवा योग्य वरगणा थाय. अने ते औदारिकनी वर्गणाथी अनंत गुणाधिक दलीआं जेवारे भेलां थाय तेबार वैक्रिय शरीरने लेवा योग्य वरगणा थायो, अने वैक्रियनी वर्गणाथी अनंत गुणाधिक दळीयां जेवारे भेळां थाय, तेवारे आहारक शरीरने लेवा योग्य वर्गणा थायळे अने आहारकनी वर्गणाथी अनंतगुणाधिक दळीगाँ जेवारे भेलां थाय तेवारे तैजस शरीरने लेवा योग्य वर्गणा थायछे. अने तैजसनी वर्गणाधी अनंतगुणाधिक दळीयां जेवारे भेळां थाय Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् अन्य विचार. (२७) तेवारे एक भापाने लेवा योग्य वर्गणा थाय छे तथा भाषानी वर्गणाथी अनंत गुणाधिकमय जेवारे दळीयां भेगां थाय, तेवारे एक श्वासोश्वासने लेवा योग्य वर्गणा थाय. ते श्वासोश्वासनी वर्गणाथी जेवारे अनंत गुणाधिकमय दळी भेगां थाय, तेवारे एक मनने लेवा योग्य वर्गणा थाय. ए सातमी मनोवर्गणाथकी पण आठमी कर्म वर्गणामां अनंतंगुणाधिक परमाणुआ जाणवा. एवा जीवने रागद्वेषनी अशुद्धताथी अनंत कर्मनी वर्गणाओ लागी छे. तेणे करी जीवना ज्ञानादिक गुणदबाई गया छे. माटे जीव थकी पुद्गल द्रव्य अनंत गुणा जाणवा. ते पुद्गलरुपी छे. अचेतन छे. सक्रिय छे. पूरणगलन छे. आ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) षड् द्रव्य विचारः जीवे अनंती पुदगल परमाणुआ रुपी अँठ ग्रहण वारंवार करी, तोपण तेथी तृप्ति पामतो नथी, पारकी वस्तु पोतानी मानी बेठो छ, अहो जीव द्रव्य अनंत शक्तिवालं तेने पुद्गल द्रव्ये पोताना कबजामां लीधुं छे, तेने संगे राच्यो माच्यो छे, माटे परवस्तु उपरथी मोह उतारवो, अने पुद्गल द्रव्यपर वस्तु जा___णी तेनाथी दूर रेहेवु ए सार छे. हवे वर्गणानु स्वरुप कहे छे. पूर्वे कहेली आठ वर्गणा जीवने अनादि काळथी लागी छे. औदारिक वैक्रिय आहारक तैजस ए चार वर्गणा बादर छे. तेमां पांच वर्ण, बे गंध, पांच रस, अने आठ स्पर्श ए वीश गुण जाणवा, बाकीनी चार वर्गणा Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (२९) सूक्ष्म छे. तेमां शोल गुण छे. तथा एक परमाणुआमां एक वर्ण, एक गंध, एक रस, अने वे स्पर्श मळी पांच गुण छ, ते परमाणुआ वधशे बटशे नहीं.छे तेटलाने तेटला रहेवाना, पुद्गल परमाणुआथकी कालना समय अनंत गुणा जाणवा. एप्रकारे जीवनी तथा अजीवनी वेहेंचण करतां धारतां विचारतां समकितनी प्राप्ति थाय छे. हवे ए छ द्रव्यमा सक्रिय केटलां अने अक्रिय केटला ते बतावे छे. निश्चय नये करी छए द्रव्य सक्रिय छे. अने व्यवहार नये करी चार द्रव्य अक्रिय छे, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश द्रव्य, Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) षड् द्रव्य विचार. अने काल, ए चार अक्रिय छे. जीव, अने पुद्गल, ए बे द्रव्य सक्रिय व्यवहार नये करीछे धर्मास्तिकाय द्रव्य ते जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्यने पोतानी चलण सहायरूप क्रिया करतो जाय छे. तथा निश्चय नये करी अधर्मास्तिकाय पण जीव द्रव्य अने पुद्गलद्रव्यने पोतानी स्थिर सहाय गुणरुप क्रिया करतो जाय छे. तथा निश्चय नये करी आकाशास्तिकाय द्रव्य पण पोतानी अवगाहनारुप क्रिया जीव पुद्गलने करतो जाय छे. तथा निश्चय नये करी काल द्रव्य जे ते पण जीव अजीवरुप वस्तुमां पोतानी वर्तनारूप क्रिया करतो जाय है. तथा निश्चय नये करी तो जीव द्रव्य पण पोताना स्वरुपमां रमवारुप Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ३१ ) क्रिया करतो जाय छे, केमके जो निश्चय नये करी शुभाशुभ रुप विभाव दशामां रमण कस्वारुप क्रिया करतो होय तो कोइ काळे जीव मोक्ष पामेज नहीं. माटे निश्चय नये करीने तो जीव पोताना स्वरुपमां रमवा रुपज क्रिया करेछे. निश्चय नये करी पुद्गल परमाणुआ पण अनादि काळना पोतानी मळवा विखरनारूप क्रिया करता जाय छे. ए रीते छए द्रव्य निश्चय नये करी पोतपोतानी क्रिया करे छे माटे सक्रिय छे. व्यवहार नये करी धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ, ए चार द्रव्य अक्रिय जाणवा. तथा जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य सक्रिय जाणवां. कारण के व्यवहार नयने मते Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) षड् द्रष्य विचार. जीव, रागद्वेषरुप अशुद्धताए करीसमय समय अनंता पुद्गल परमाणुानु ग्रहणरुप क्रिया करे छे, अन पुद्गल परमाणुआने वळगवानो स्वभाब छे, माटे पुद्गल परमाणुआ वलगवारुप क्रिया करे छे, माटे अनादिका ना जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य म. ळवा विखरवारुप क्रिया करे छे माटे सक्रिय जाणवां. हवे ए छ द्रव्यमां नित्य केटलां द्रव्य अने अनित्य केटलां ते बतावे छे. निश्चय नये करी छए द्रव्य नित्य छे. अने निश्चय नये करी छए द्रव्य अनित्यपण छे. तथा व्यवहार नये करी तो चार द्रव्य नित्य जाणवां. अने वे द्रव्य अनित्य जाणवां. धर्मास्ति कायना अ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार.. ( ३३ ) रूपी, अचेतन, अक्रिय, अने चलण सहाय, ए चार गुण, अने पर्यायां धर्मास्तिकायनी एक खंध, ए पांच नित्य जाणवा. तथा देश, प्रदेश, अने अगुरु लघु, ए त्रण पर्याय अदित्य जाप्रणवा, अधर्मास्तिकायना पण अरुपी, अचेतन, अक्रिय, अने स्थिति सहाय, ए चार गुण तया पर्याय अस्तिकायनो खंध. ए पांच नित्य जाणवा अने देश, प्रदेश तथा अगुरु लघु, ए पर्याय अनित्य जाणवा. आकाशास्तिकायना अरुपी अचेतन अक्रिय अने चोथो अवगाहना, ए चारगुण तथा पर्यायां खंध, ए पांच नित्य जाणवा. तथा देश, प्रदेश, अने अगुरु लघु, ए त्रण पर्याय अनित्य जाणवा. काळ द्रव्यना अरुपी, अचेतन, अक्रिय, अने Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) षट् द्रव्य विचार. वर्तना लक्षण, ए चारगुण नित्य जाणवा.तथा अतीत, अनागत, अने वर्तमामान तथा अगुरु लघु ए चार पर्याय अनित्य जाणवा, पुदगल द्रव्यना रुपी अचेतन, सक्रिय, पुरण, गलन मीळन विखरण, ए चार गुण नित्य जाणवा. तथा वर्ण गंधरस अने स्पर्श अगुरु लघु सहीत ए चार पर्याय अनित्य जाणवा जीवद्रव्यना ज्ञान दर्शनचारित्र अने वीर्य ए चार गुण, अने अव्यावाध, अमौर्तिक अनवगाह, एम सात नित्य जाणवा. एक अगुरु लघु पर्याय जीवनो अनित्य जाणवो, ए रीते निश्चय नये करी छे द्रव्य नित्य पण कहीए, अने अनित्य पण काहीए. - - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रष्य विचार. (३५ ) हवे व्यवहार नये करी धर्म, अधर्म, आ. काश, अने काल, ए चार द्रव्य नित्य कहीए. तथा जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य अनित्य जाणवा. कारण के व्यवहार नये करी जीव चारगतिमां जन्म मरणे करी देवता, मनुष्य, तीर्यच, नारकीरुप नवा नवा भव धारण करे छे. माटे अनित्य कहीए. तथा व्यवहार नये करी पुद्गल द्रव्यना खंध पण सर्व अनित्य जाणवा. कारण के पुद्गल द्रव्यना खंध बने छे, अने पाछा विखरे छे. माटे अनित्य जा. णवा. अने वळी द्रव्यास्तिकायने मते जीव असंख्यात प्रदेशी नित्य सदाकाल शाश्वतो छे. अने अशुद्ध अनित्य पर्याय करी जीव अशाश्वतो जाणवो केमके अशुद्ध अनित्य प Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) षड् द्रव्य विचार. -00000000000000 याये करी जीव चार गतिरुप संसारमा उत्पाद व्ययरुप पलटण स्वभावे वर्ते छे. ते आवी रीते मनुष्य भवना पर्यायनो व्यय थयो अने देवताना भवना पर्यायनो उत्पाद थयो वळी तीर्यच भवना पर्यायनो व्यय थयो, अने मनु प्य भवना पर्यायनो उत्पाद थयो एम अशुद्ध अनित्य पर्याय करी जीव उत्पाद व्ययरुप पलटण स्वभावे चार गतिरुप संसारमां सदाकाल वर्ते छे. अने जीव एनो ए ध्रुवपणे साश्वतो छे, तथा जन्म मरण थाय छे ते सर्व उत्साद, व्यय, थाय छे. माटे द्रव्यास्तिक नये करी जीवने नित्य समजवो. अने पर्यायास्ति नये करी जीवने अनित्य केहेवामां आवे छे. ए रीते, षड् द्रव्यमां निश्चय Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (३०) व्यवहारे करी नित्या नित्यपणु जाणवू. षद् द्रव्यमां जीव द्रव्यने पांच द्रव्य कारण रुप जाणवां. अने जीव द्रव्य अकारण जाणवू. जेमके जीवकर्ता अने तेने धर्मास्तिकाय कारण मळ्यु, तेवारे जीवने चालवा हालवा रुप कार्य थयुं तेमज जीवकर्ता अने तेने अधर्मास्तिकाय रुप कारण मळ्यु, तेवारे जीवने स्थिर रहेबा रुप कार्य नीपन्युं तेमज जीवकर्ता अने तेने आकाशास्तिकाय कारण मळ्युं तेवारे जीवने आवगाहना रुप कार्य बन्यु. तेमज जीवकर्ता अने तेने पुद्गलास्ति काय उपकारण मन्यु तेवारे जीवने समय समय अनंता कर्मरुप परमाणुआ लेवा खेस्वपारुप कार्य नीपज्यु तेमज जीव द्रव्यकर्ता Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८) षड् द्रव्य विचार. अने तेने काल द्रव्य कारण मळ्युं तेवारे नवा पुराणा वर्तनारुप कार्य नीपन्यु ए रीते षड् द्रव्यमां जीवने पांचे द्रव्य कारण जाणवां. अने जीव पोते अकारण छे.. घणी प्रतिओमां संक्षेपे एटलं छे जे छ द्रव्यमां एक जीव द्रव्य कारण छे, बाकीनां धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल, ए पांच द्रव्य अकारण छे, ए वात पण घणी रीते मळती छ, माटे जे बहुश्रुत कहे ते खरं. आगम सार थकर्तानी ध्यानमां तो एम आवे छे के जीव द्रव्य कारण, अने पांच द्रव्य, अकारण एम संभवे छे. निश्चय नये करी छे ए द्रव्य पोते पो Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रव्य विचार. ( ३९ ) ताना स्वरुपना कर्ता छे. अने व्यवहार नये करी अनेक नयनी अपेक्षाए जोतां तो एक जीव द्रव्य कर्ता, अने पांच द्रव्य अकर्ता जाणवां. ते आदी रीते जे व्यवहार नयना छ भेद छे. तिहां प्रथम शुद्ध व्यवहार नये करी जीव शुद्ध निर्मळ कर्म थकी रहीत एव पोतानु स्वरूप नीपजावकुं तेनो कर्ता जाणवो, एटले जे जे ( चालु ) गुणठाणांनु छोडं, अने उपरनां गुणठाणांनु लेबुं, तेने शुद्ध व्यवहार नये कर्ता कहीए. एटले पहेले गुणठाणे अनंतानुबंधिआनी चोकडी हती ते खपावी बने चोथे गुणठाणे आव्यो ते वारे जीवने एक समकित गुण निरावरण थयो, अने अत्याखानीयानी बोकड़ी खपावी तेवारे पां Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ४० ) षड द्रव्य विचार. चमुं गुणठाणु प्राप्त करी देशविरति गुण प्रास कर्यो. तथा मत्याख्यानीयानी चोकडी खपावी तेवारे छठे सातमे गुणठाणे सवैर्विरति गुण पाम्यो. अगीआरमे बारमे गुणठाणे पहोंची रागद्वेष रूप मोहनीय कर्म खपावी बारमे गुणठाणे घातीकर्मनो क्षय करी तेरमे गुणठाणे केवळ ज्ञान पाम्यो. ए रीते जेम जेम पूर्वनां गुणठाणांत्रु छोडं, अने उपरनां गुणठाणांनु ग्र हण करं, तेने शुद्ध व्यवहार नय कहीए. जेम जेम जीव कर्मरूप अशुद्धताने टाळे, अने गुण रूप शुद्धताने नीपजावे, ते शुद्ध व्यवहार नय जाणवो. हवे वीजा अशुद्ध नय व्यवहारे जीव Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विश्वर ( ४१ ) मां अज्ञान रागदेष अनादिकाळना शत्रु थइ लाग्या छे. तेणे करी जीवमां अशुद्धपणु जाणj. ए अशुद्धता करी जीवने समय समय अनंतां कर्मरुप दलीआं सत्ताए लागे छे. ए अशुद्धता अनादिकालनी जागवी, ए अशुद्ध व्यवहार नये करी जीवकर्ता तेनु स्वरुप जामj. हवे त्रीजा शुभ व्यवहार नये करी जीव दानशील, तप भावना, पुजा, प्रभावना, शेवा, भक्ति, साहम्मी वत्सल विनय. वैया वच्च. उपकार करुणा, दया, यत्ना, मीठु मनोहर व न बोलवं. सर्व जीवनुं रुई चितवनुं. ए आदि अनेक प्रकारनी जीवने शुभ करणी जाणवी, ए शुभ व्यवहार नये करी जीवकर्ता 'कहीए. चोथा अशुभ व्यवहार नये करी जी Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) पह द्रव्य विचार. व क्रोध, मान, माया, लोभ, विषय, कषाय, हास्य, रति, अरतिभय, शोक, दुगंछा, निद्रा, चाडी, ममता, हिंसा, मृषा अदत्त, मैथुन, परिगह, ए आदि अनेक प्रकारनी जीवने अशुभ करणी कहीए. ए अशुभ व्यवहार नये करी जीवकर्ता जाणवो. हवे पांचमा उपचरित व्यवहार नये करी जीव, घरकुटुंब, परिवार, हाट वखार गामगरास, देश,चाकर,दास,दासी,वाणोतर, राज्यवाडी, वन, आरामकुवा, सरोवर, ए आदि अनेक प्रकारन वस्तु ते पोतानाथी प्रत्यक्ष पणे जुदी छे, तेने जीव अज्ञानपणे पोतानी करी जाणे छे. तेने माहरु माहरु करतो फरे छे, तेनी वृद्धि देखी खुशी थाय छे. ते Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड द्रव्य विचार. ( ५३ ) नो नाश देखी रडे छे, कुटे छे, शेक करेछे, अने तेने माटे पोताना प्राणनो पण नाश करे छे. अने तेने पोतानुं मानी ते पावनों अधि कारी पोते थाय छे, एरीते उपचरित व्यवहार नये जीवने कर्ता जाणवो. हवे छठ्ठा अनुपचारित व्यवहार नये करी जीव शरीरआदि, परवस्तु जे पोताना स्वरुपथी प्रत्यक्ष पणे जुड़ी छे, पण परिणामिक भावे लोली भृत पणे एकठी मली रही छे, तेने जीव पोतानी करी जाणे छे, पण एवां शरीर, आ जीव अनंतीचार पाम्यो, अने अनंतीवार ते शरीरोनो त्याग कर्यो, तोपण अज्ञानपणे आ जीव तेने पोतानु करी जाणेछे, नेने वास्ते अनेक प्रकारनी हिंसा करे छे, अ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) षड् द्रव्य विचार. सत्य वचन बोले छे, अदत ग्रहण करे छे, पण अंते वस्तु पोतानी थती नथी. पण पारकरी जीव भारे थाय छे ए रीते अनुपचरित व्यवहार नये करी जीवकर्ता जाणवो. ए रीते छ प्रकारे व्यवहार नयने मते जीवने कापणु देखाडयु. - सबगर इयर-कहेतां सर्वगत एटले सर्व व्यापी द्रव्य केटलां अने इयर कहेतां देश व्यापी द्रव्य, छ द्रव्यमा केटलां पामीए, ते कह छे. · षड् द्रव्यमा एक आकाश द्रव्य, सर्व लोकाठोक व्यापी छे, अने पांच द्रव्य देश व्यापी जागवां, कारण के धर्मास्तिकाय असंख्यात प्रदेशो लोक व्यापी जाणवं. अधर्मा Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ حمدمعتسحتصصصصصصصهمممم षड् द्रव्य विचार. (५) स्तिकाय द्रव्य पण असंख्यात प्रदेशी लोक व्यापी जाणवू. तथा कालद्रव्य गणितकाल ते अहीदीप व्यापी जाणवू. तथा जीवद्रव्य पण लोकव्यापी जाणवू, तथा पुद्गल द्रव्य पण एकेक जीवने, सत्ताए अनंता कर्मरुप पुद्गल परमाणुआ लाग्या छे. तथा ते थकी वीजा छुटा लोक व्यापी पुद्गल परमाणु अनंता छे. ते सर्व लोकव्यापी छे. एरीते ए पांच द्रव्य देशव्यापी जाणवां अने एक आकाशास्तिकाथ द्रव्य, अनंत प्रदेशी, सर्वव्यापी जाणचं. एरीते छ द्रव्यमां सर्वव्यापी तथा देशव्यापीन स्वरुप जाणवू. छ ए द्रव्य अप्पवेसा अप्रवेशी एटले कोइ द्रव्य वीजा द्रव्यमा प्रवेश करी भली Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) षड् द्रव्य विचार. जतुं नथी. अने एक बीजार्नु कोइकोइनु काम पण करतां नथी. जेम कोइ दुकान उपर पांच वाणोतर रहेता होय ते सर्व पोतपोतानु काम फरमाव्यां मुजब कर्या करे. अने सहु सहुना मर्यादामा चाले तेम अहीआं छ द्रव्य भेळां रह्यां छे. अने पोतपोतानी मर्यादामा वर्ते छ, पण निश्चय नये कोइपण बीजामां माहे मांहे भळतां नथीमाटे अप्रदेशी जाणवां, एरीते षड् द्रव्यनु स्वरुप वार भांगे करी भन्य जीवोए जाणवू. हवे एकेका द्रव्यमां आठ पक्ष कहेछे. आठ पक्षनां नाम-एक नित्य, बीजो अनित्य, त्रीजा एक, चोथो अनेक, पांचमो सत्, छठो असत्, सातमो वक्तव्य, आठमो Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंह द्रव्य विचार. ( ७) अवक्तव्यः ____ धर्मास्तिकायना चारगुण नित्यछे. तथा पर्यायमा धर्मास्तिकायनो एक खंध नित्यछे. बाकीना देश, प्रदेश, अने अगुरु लघु, ए त्रण पर्याय अनित्य छे. अधर्मास्तिकायना चार गुण, तथा एक लोकप्रमाण खंध नित्य छे, वाकीना त्रण पर्याय अनित्य छे. आकाशास्तिकायना चार गुण, तथा लोकालोक प्रमाण खंघ नित्य छे, अने देश, प्रदेश, तथा अगुरु लघु, ए त्रण पर्याय अनित्य छे. काळद्रव्यना चारगुण नित्य छे अने चार पर्याय अनित्य छे. पुद्गल द्रव्यना चार गुण नित्य छे, अने चार पर्याय अनित्य छे. जीव द्रव्यना चार गुण, अने त्रण पर्याय नित्य छे. अ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) षड् द्रव्य विचार. Rampannddowanal ने एक अगुरु लघु पर्याय, अनित्य छे. एरीते नित्यानित्य पक्ष कह्यो. हवे एक अनेक पक्ष षड् द्रव्यमां बतावेछे. एक धर्मास्तिकाय, बीजो अर्धास्तिकाय, एबे द्रव्यना खंध लोकाकाश प्रमाणे एक छे अने गुण अनंता छे. आकाश द्रव्यनो लोकाकाश प्रमाण खंध एक छे. अने गुणअनंता छे. पर्याय अनंता छे, प्रदेश अनंता छ, माटे अनेक छे. काल द्रव्यना वर्त वर्तनारुप गुण एक छ, अने बीजा गुण अनंता छे, पर्याय अनंता छ, समय अनंता छ, केमके अतीतकाले अनंता समय गया, अने अनागत काल अनंता समय आवशे, तथा वर्तमानकाले समय एक छे माटे अनेक पक्ष छे. पुद् Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (४९) णु छे. अने सर्व परमाणुमा पुद्गलपणुं ते एकज छे. माटे एक छे. जीव द्रव्य अनंता छ, एकेका जीवमा प्रदेश असंख्याता छे. तथा गुण अनंता छे पर्याय अनंता छे, ते अनेक पणुं छे, पण जीवीतव्य सर्व जीबोमां एक सरखो छ, माटे एकपणुं छे. इहां शिष्य पुछे छे जे-सर्व जीव एक सरीखा छे तो मोक्षना जीव सिद्ध परमानंद मयी देखाय छे, अने संसारी जीव कर्मवश पडया दुःखी देखाय छे, अने ते सर्व जुदा जुदा देखाय छे, तेनु केम ? तेहने उत्तर आपे छ के-निश्चय नये तो सर्व जीव सिद्ध सगान छे, माटेज सर्व जीव कर्म खपावी सिद्ध थाय छे, तेथी सर्व जीवनी सत्ता एक छे व Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) षड् द्रव्य विचार. की शिष्य पुछे छे के जो सर्व जीव सिद्ध स मान कहो छो तो अभव्य जीव पण सिद्ध स__मान छ एम ठर्यु, अने तेतो मोक्ष जाता न थी, तेनु केम? तेने उत्तर आपे छे जे-अभव्य ने कर्म चीकणां छे, अने अभव्यमा परावर्त धर्म नथी, तेथी सिद्ध थता नथी. अभव्य ने कर्मनो संबंध अनादि अनंतमे भागे छे, तेथी कोइ काले ते मोक्ष जशे नही. अने भव्य जीवमां परावर्त धर्म छे माटे कारण सामग्री मीले पलटण पामे गुण श्रेणी चढीने सिद्ध थाय छे. पण आत्माना आठ रुचक प्रदेश निश्चय नयथी भव्य तथा अभव्य सर्वना सिद्ध समान छे, माटे सर्व जीवनी सत्ता एक सरखी छे कारण के ए आठ रुचक प्र Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधित्रो देश ने कर्म बीलकुल लागतां नथा त आचारांगसूत्रना लोक विजय अध्ययनमां कर्तुं छे. हवे सत् तथा असत् पक्ष कहे छ. एछ द्रव्यं स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, अने स्वभाव, पणे सत् एटले छता छे. अने परद्रव्य परक्षेत्र, परकाल, अने परभावपणे असत् एटले असता छे. तेनी रीत बताववाने माटे ए षट् द्रव्यनो द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव, कहीए छीए. धर्मास्तिकायनो मूलगुण चलण सहाय पण ते स्वद्रव्य, अधर्मास्तिकायनो मूलगुण स्थिति सहायपणो ते स्वद्रव्य जाणवो. आकाशास्ति कायनो मूलगुण अवगाहपणो ते स्वद्रव्य, कालद्रव्यनो मूलगुण वर्तना लक्षण Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) षड् द्रव्य विचार. पणो ते स्वद्रव्य जाणवो. तथा पुद्गल द्रव्यनो मूलगुग पूरण गलनपणो ते स्वद्रव्य जाणयो. अने जीव द्रव्यनो मूल गुण ज्ञानादि कचेतना लक्षणपणो ते स्वद्रव्य, ए छ द्रव्यनो स्बद्रव्यपणो कह्यो. हवे षड् द्रव्य स्वक्षेत्र कहे छे-धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकायनो स्वक्षेत्र असंख्यात मदेशमय जाणवो. अने आकाश द्रव्य नो स्वक्षेत्र अनंत प्रदेशमय जाणवो. काल द्रव्यनो स्वक्षेत्र समयरुप छे. पुद्गल द्रव्यनो स्वक्षेत्र एक परमाणु छे. अने परमाणु आ अनंता छे, जीव द्रव्यनो स्वक्षेत्र एक जीवना असंख्याता प्रदेश छे. हवे स्वकाल ते षड् द्रव्यमा अगुरु लघु Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ५३ ) नो छे, अने छए द्रव्यना पोत पोताना गुण पर्याय ते सर्व द्रव्यनो स्वभाव जाणवो, एटले धर्मास्तिकायमा पोतानाज द्रव्य, क्षेत्र, का ल, भाव छे, पण बीजा पांच द्रव्यना नधी, तथा अधर्मास्ति कामां पण पोतानाज स्वद्रव्य, क्षेत्रकाल, भाव छे, बीजा पांच द्रव्यना नथी. एमज आकाशास्ति कायने विषे आकाशनाज स्वद्रव्यादिक चार छे, पण बीजा पांच द्रव्यना नथी. तथा काल द्रव्यमां कालना स्वद्रव्यादिक चार छे, पण वीजा पांच द्रव्यना नथी. अने पुद्गल द्रव्यना स्वद्रव्या दि चार पुद्गल द्रव्यमां छे, वीजा पांचव्यना नथी. तथा जीव द्रव्यना स्वद्रव्यादि क चार जीव द्रव्यमां पण बीजा पांच द्रव्य Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५४ ) षड् द्रव्य विचार. ना नथी. जे द्रव्य ते गुण पर्यायवंत द्रव्यथी अभेद पर्याय होय ते द्रव्य कहीए. तथा स्व धर्मनो आधारवंतपणो ते क्षेत्र कहीए, अने उत्पाद व्ययनी वर्तना ते काल कहीए, तथा विशेष गुण परिणति स्वभाव परिणति पर्याय प्रमुख ते स्वभाव कहीए. ___अहीआं एक-भेद स्वभाव वीजो-अभेद स्वभाव त्रीजो-भव्य स्वभाव चोथोअभव्य स्वभाव अने पांचमा-परम स्वभाव, ए पांच स्वभाव जाणवा. तेमां द्रव्यना सर्व धर्मने पोतपोताना स्व स्व कार्य करवे करी भेद स्वभाव छे. अने अवस्थानपणे अभेद स्व भाव छे. अणपलटण स्वभावे अभव्य स्वभाव छे. तथा पलटण स्वभाव भव्य स्वभाव Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ५१ ) छे. अने द्रव्यना सर्व धर्म ते विशेष धर्मने अनुयायीज परिणमे ते माटे ते परम स्वभाव कहीए. ए सामान्य स्वभाव जाणवा. ए रीते छए द्रव्य स्वगुणे सत् छे अने परगुणे असत् छे. हवे छ द्रव्यमां वक्तव्य तथा अवक्तव्य पक्ष कहे छे. एछ द्रव्यमां अनंता गुण पर्याय ते व क्तव्य एटले वचन कहेवा योग्य छे, अने अ नंता गुण पर्याय ते अवक्तव्य एटले वचने करी कही शकाय नही एवा छे. तीहां केवळ ज्ञानी माहाराजे ज्ञाने करी समस्त भाव दीठा तेने अनंतमे भागे जे वक्तव्य एटले कहेवा योग्य हता ते कह्या वळी तेनो पण अनंतमो Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A COCCCCCC0206520RAA ( ५६ ) षड् द्रव्य विचार. भाग श्री गणधर देवे सूत्रमा गुंथ्यो, ते सू. त्रमा गुंथ्यो तेने असंख्यातमे भागे हमणां आगम रह्यां छे. ए छ द्रव्यमांआठ पक्ष कह्या. हवे नित्य तथा अनित्य पक्षथी चतुर्भगी उपनी ते बतावे छे. जेनी आदि नथी अने अंत नथी ते अनादि अनंत पहेलो भागो जाणवो. तथा जेनी आदि नथी पण अंत छे, ते अनादि सांत बीजो भागो जाणवो. तथा जेनी आदि पण छे अने अंत पण छे, ते सा दि सांत त्रीजो भागो जाणवो. वळी जेनी आदि छे, पण अंत नया, ते सादि अनंत नामे चोथो भागो जाणवो. हवे ए चार भांगा छे ते द्रव्यने केवी रीते लागे छे, ते बतावे छे. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ५७ ) ते अना जीव द्रव्यमां ज्ञानादिक गुण दि अनंत ले. नित्य छे. पण भव्य जीवने कर्म साथै संबंध अनादि छे. पण सिद्ध थाय ते ते वारे अंत आवे छे. तथा ए अनादि सांत बीजा भांगो जाणवा. अने देवता मनुष्य ती यैच, नारकी प्रमुखना भव करवा, ते सादि सांत भांगो ले. अने जे जीव कर्म खपावी मो क्षे गया तेनी मोक्षपणे आदी छे. अने पाछु संसारमां कोइ वखत आवकुं नथी माटे अंत नथी, तेथी ए सादि अनंत भांगो छे. अभ व्य जीव साथे कर्मनो संबंध अनादि अनंत छे. जीव द्रव्यना चार गुण अनादि अनंत ले. जीवने कर्म साधे संयोग ते अनादि सांत छे, पण अभव्यने नही. अभव्यने कर्म संयोग Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५८ ) अनादि अनंत छे. हवे धर्मास्तिकायां चार गुण अने पांम खंध ते अनादि अनंत छे. अने अनादिसांत भांगो नथी. तेथी देश प्रदेश अगुरु लघु ते सादि सात भांगो छे. तथा सिद्धना जीव धर्मास्तिकायना जे प्रदेशे रह्या छे. ते प्रदेश आश्रीने सादि अनंत भांगो छे. एवीज रीते अधर्मास्तिकायमां पण चो भंगी जाणवी. षड् द्रव्य विचार. आकाश द्रव्यमां गुण तथा खंध अनादि अनंत छे. बीजो भांगो नथी. अने देश प्रदेश, तथा अगुरु लघु, सादि सांत छे. तथा सिद्धना जीवनी साथे जे संबंध ते सादि अनंत छे. पुद्गल द्रव्यमां गुण अनादि अनंत Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (५९) छे.जीव पुदगलनोसंबंध अभव्यने अनादि अनंत छे. भव्य जीवने अनादि सांत छे. पुदगलना खंध सर्व सादि सांत छ. जे खंधबंधाया ते स्थिति प्रमाणे रही खीरे छे, वळी नवा बंधाय छे. माटे सादी अनंत भांगो पुद्गल द्रव्यमां नथी. __काल द्रव्यमां गुण चार अनादि अनंत छे. पर्यायमां अतीत काल अनादि सांत छे. अने वर्तमानकाळ सादि सांत छे. अनागत काळ सादि अनंत छ. ए कालर्नु स्वरुप सर्व उपचारथी छे. एवी रीतेकाल द्रव्यमां चो भंगी जाणवी. हवे द्रव्य क्षेत्र काल तथा भावमांचो भं गी कहे छे. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) षड् द्रव्य विचार. जीव द्रव्यमा स्वद्रव्यथी ज्ञानादिक गुण ते अनादि अनंत छे. स्वक्षेत्रे जीवना प्रदेश असंख्याता छे. ते सादि सांत छे. तत द्वर्तनापणे फरे छे. ए हेतुथी अथवा अवगाहना माटे सादि सांत छे, पण छतिपणे तो अनादि अनंत छे. स्वकाल अगुरु लघुनो गुणे अनादि अनंत छे. अने अगुरु लघु गुणनो उपजवो, तथा वीण सवो ते सादि सांत छे. तथा स्वभाव गुण पर्याय ते अनादि अनंत छे अने भेदांतरे अगुरु लघु ते सादि सांत छ. धर्मास्ति कायमां स्वद्रव्य जे चलण सहाय गुण ते अनादि अ नंत छे. अने स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेश लोक प्रमाण छे. ते अवगाहना पणे सादि सांत छे Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___घड द्रव्य विचार (६१) maanemaram स्वकाल ते अगुरु लघु गुणे करी अनादि अ नंत छ. अने उत्पाद व्यय ते सादि सांत छे. तेम ज अधमास्ति कायना पण चार भांगा जाणवा, तथा आकाशास्ति कायमा स्वद्रव्य अवगाहना दानगुण ते अनादि अनंत छे. अ ने स्वक्षेत्र लोकालोक प्रमाण अनंत प्रदेश मय ते अनादि अनंत के. स्वकाल ते अगुरु लघु गुण ते सर्वथापणे अनादि अनंत छे. अ ने उपजवे तथा वीणसवे करी सादि सांत छे. स्वभाव ते चार गुण, तथा खंध अने अ गुरु लघु ते अनादि अनंत छे, तथा देश प्रदेश ते सादि सांत छे. ते आकाश द्रव्यना बे भेद छे, एक चौदराज लोकनो खंध लोकाकाश प्रमाण ने सादि सांत छे, अने वी Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22.00 (६२) षड् द्रव्य विचार. जो अलोकाकाशनो खंध ते सादि अनंत छे. काल द्रव्यमां स्वद्रव्य जे नवा पुराणवर्तना गुण ते अनादि अनंत छे. स्वक्षेत्र समय काल ते सादि सांत छे. केमके वर्तमान समय एक छे माटे तथा स्वकाल ते अनादि अनंत छे, स्व भाव ते गुणचार अने अगुरु लघु अनादि अनंत छे. अतीतकाल अनादि सांत छे. वर्तमान काल सादि सांत छे. अनागत काल सादि अनंत छे. पुद्गल द्रव्यमा स्वद्रव्य ते द्रव्यपणे जे पूरण गलन धर्म ते अनादि अनंत छे. अने स्वक्षेत्र परमाणु ते सादि सांत छे. स्वकाल स्थिति अगुरु लघु ते अनादि अनंत छे. अगुरु लघुनो उपजवो वीणसवो ते सादी सांत Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (६३) छे. स्वभाव ते गुण चार अनादि अनंत छे. वर्णादि पर्याय चार वर्ण गंध रस अने स्पर्श ते सादि सांत छ. ए द्रव्यादि चारना पुद्गल द्रव्यमां चौभंगी जाणवी. हवे छ द्रव्यना संबंध आश्रयीने चौभंगी देखाडे छे. तीहां प्रथम आकाश द्रव्य छे. तेमां अलोकाकाशमां पांच द्रव्यमांनु कोइ पण द्रव्य नथी, एटले धर्मास्तिकाय अधमोस्तिकाय पुद्गलास्तिकाय काल अने जीव आ पांचद्रव्य अलोकमां नथी. लोकाकाशमां स्व सहीत छ द्रव्य छ, लोकाकाश द्रव्य तथा धर्मास्तिकाय द्रव्य अने आकाशास्तिकाय ए त्रण द्रव्य ते अनादि Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) षड् द्रव्य विचार. अनंत छे. जे लोकाकाशना एकेक प्रदेशमां धर्म द्रव्य तथा अधर्म द्रव्यनो अकेक प्रदेश रह्यो छे. ते कोइ काले बिछडशे नही. माटे अ नादि अनंत जाणवो. आकाश क्षेत्र लोक सर्व अने जीव द्रव्यनो अनादि अनंत संबंध जा वो. अने संसारी जीव कर्म सहीत तथा लोकना प्रदेशनो सादिसांत संबंध छे. लोकां त सिद्धक्षेत्रना सिद्ध जीवानो आकाश प्रदे साथे सादि अनंत संबंध छे. लोकाकाश अने पुद्गल द्रव्यनो अनादिअनंत संबंध जाणवो. आकाश प्रदेशनी साथै पुद्गल परमाणुनो सादिसांत संबंध जाणवो. एम आकाश द्र व्यनी पेठे धर्मा स्तिकाय तथा अधर्मा स्ति काय द्रव्यनो पण संबंध जाणवो. तथा नि Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (६५ ) श्चय नये करी छए द्रव्य स्वस्वभावे परीणमी रह्या छे ते परीणामी पणो सदा शाश्वतो छ ते माटे अनादि अनंत छे. जीव द्रव्य तथा पुद्गल द्रव्य बने मळी संबंधपणाने पामे छे, ते परपरिणामी पणे छे. ते परपरिणामीपणु अभव्य जीवने अनादि अनंत छे. अने भव्य जीवने अनादि सांत छे अने पुद्गलनो परिणामीपणो ते सत्ताए अ. नादि अनंत छे. अने पुद्गलनु मळवू विखर ते सादिसांत भांगे जाणवू. जीव द्रव्य पुद्गल साथे मिल्यो सक्रिय छे. अने पुद्गल द्रव्यथी रहीत थाय ते वारे जीव द्रव्य अक्रिय छे. अने पुद्गल द्रव्य सदा सक्रिय छे. हवे एक अनेक पक्षथी निश्चय ज्ञान क Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६६. हेवाने भाव कहे छे. सर्व द्रव्यमा भोक स्व. भव छे. तापमय काया जाय नहीं माटे मांहो मांहे नये करी संक्षेपपणे कहे छे. मुळ नयना बे भेद छे एक द्रव्यार्थिक अने बीजो पर्यायाथिक. तेमां उत्पाद व्यय पर्यायना गौण पणे अने प्रधानपणे द्रव्यनो गुण सत्ताने आहे ते द्रव्यार्थिक नय कहीए तेना दश भेद छे. १ सर्व द्रव्य नित्य छे ते नित्य द्रव्यार्थिक. २ अगुरु लघु अने क्षेत्रनी अपेक्षा न करे मुळ गुणने पिंडपणे ग्रहे एक ते द्रव्यार्थिक ३ ज्ञानादिक गुणे सर्व जीव एक सरीखा छ माटे सर्व जीवने एक कहे स्वद्न्यादिकने अहे ते सत् द्रव्यार्थिक जेम सत् लक्षणं द्रव्यं Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ षड् द्रव्य विचार. (६७) ४ द्रव्यमा केहेवा योग्य गुण अंगीकार करे ते वक्तव्य द्रव्यार्थिक. ५ आत्माने अज्ञानी कही बोलाववो ते अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय ६ सर्व द्रव्य गुण पर्याय सहीत छे एम क हेवू ते अन्वय द्रव्यार्थिक ___७ सर्व जीवनी मुल सत्ता एक छे ते परम द्रव्यार्थक नय जाणवो. ८ सर्व जीवना आठ रुचक प्रदेश निर्मळ छे ते शुद्ध द्रव्यार्थिक नय ९ सर्व जीवना असंख्याता प्रदेश एक सरीखा छे ते सत्ता द्रव्यार्थिक नय - १० गुण गुणी एक छे ते परमभाव ग्राहक द्रव्यार्थिक नय जेम आत्माज्ञान रुप छे. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६८) षड् द्रव्य विचार. इत्यादिक द्रव्यार्थिक नयना दश भेद क ह्या हवे पर्यायार्थिक नयना छ भेद कहे छे. जे पर्यायने ग्रह तेने पर्यायार्थिक नय कहे छे तेना छ भेद एक द्रव्य पर्याय, बीजो द्रव्य व्यंजन पर्याय, त्रीनो गुणपर्याय, चोथो गुण व्यंजन पर्याय, पांचमो स्वभाव पर्याय, छटो विभाग पर्याय ए छ छे. १ जीवने भव्यपणुं तथा सिद्धपणु क__ हेवु ते द्रव्य पर्याय २ जे द्रव्यमा प्रदेशनुमान ते द्रव्य व्यंजन पर्याय ३ एक गुणथी अनेकता थाय ओम धमी धर्मादि द्रव्य पोताना चलण सहकारादि Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् अव्य विचार. ( ६९ ) . .. .. . . . .. गुणथी अनेक जीव तथा पुद्गलने सहाय करे तेने गुण पर्याय नय कहे छे. ... ४ एक गुणना घणा भेद ते गुण व्यंजन पर्याय कहीए ५ स्वभाव पर्याय ते अगरु लघु पोय थी जाणवो ए पांच पर्याय सर्व द्रव्यमां छे. ६ विभाव पर्याय ते जीव पुद्गल ए वे द्रव्यमां छे. तीहां जीव जे चार गतिना नवा नवा भव करे ते जीवमां विभाव पर्याय तथा पुद्गलमां खंधपणु ते विभाव पर्याय जाणवो. हवे पर्यायना बीजा छ भेद कहे छे-एक अनादि नित्य पर्याय ते जेम पुद्गल द्रव्यनो मेरु प्रमुख. बीजो सादि नित्य पर्याय ते जीव द्रव्यनी सिद्धावस्था सिद्धावगाहनादिक ते सादि नित्य पर्याय छे. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AA (७०) षड् द्रव्य विचार. त्रीजो अनित्य पर्याय ते समय समयमां द्रव्य उपजे वीणसे छे ते. सादि सांत पर्याया भव शरीराध्यव मायादयः इति नय चक्रे. चोथो अशुद्ध अनित्य पर्याय तेः जन्म मरण थाय छे, तेणे करी कहेवु. पांचमो उपाधि पर्याय ते कर्म सबंध. छटो शुद्ध पर्याय जे मूल पर्याय सर्व द्रव्यना एक सरीखा छे ते ए पर्यायार्थिकनु स्वरुप का. नय चक्र तथा आगमसार कोना मते बीजा पयायना छ भेदमां तफावत पडे छे. तत्त्व केवली गम्यम्, हवे सात नय केहे छे. सातनय. १. नैगम २ संग्रह ३ व्यवहार ४ रुजु Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ द्रव्य विचार. ( ७१ ) सूत्र ५ शब्द ६ समभिरुढ ७ एवंभूत ए सात नय नांना जाणवां. (१) नथी एक गमो ते जेनो तेने नैगम नय केहे छे, गुणनो एक अंश उपन्यो होय तो नैगम नय कहीए, जेम कोइ मनुष्यने चार आनी लाववानुं मन थंयुं तेवारे बगडामां लाकडां लेवा चाल्यो, तैने रस्तामां बीजो कोइ माणस भेगो थयो तेणे पुछयु के, तुं कयां जाय छे तेवारे तेणे कयुं के हुं, पावली लेवा जाउछु. ते पावली तो हजु घडी नथी पण मनने विषे चितव्यं ते थइ एम गंण्युं. तेम नैगम नय सर्व जीवने सिद्ध समान कहे ले. कारण के सर्व जीवोना आठ रुचक प्रदेश निर्मळ सिद्ध रुप छे, तेथी एक अंशे शिद्ध छे, Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44MARA ( ७२ ) षड् द्रव्य विचार. ते माटे सिद्ध समान सर्व जीव कह्या. ते नैगम नयना त्रण भेद छे. अतीत नैगम, अनागत नैगम, अने वर्तमान नैगम आ प्रमाणे आगमसार ग्रंथ को कहे छे. नय चक्र बालावबोध कर्ताए नैगम नयना त्रण भेद कह्या छे. १आरोप, २अंश ३संकल्प, तथा विशेषावश्यकमां चोथो भेद पण उपचार पणे कहे छे. नथी एकगमो कहेतां अभिप्राय ते जेनो ते नैगम नय कहीए. एटले नैगम नय अनेक आशयी छे, ते नैगम नयना चार भेद छे. ते मध्ये आरोपना चार प्रकार छे. १ गव्यारोप २ गुणारोप ३ कालारोप ४ कारणाद्यारोप. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रव्य विचार. (७३ ) Latin- t hemsarmpanामारी १ गुणादिकने विषे द्रव्यपणो मानवो ते द्रव्यारोप. जेम वर्तना परिणाम ते पंचास्तिकायनो परिणमन धर्म छ. तेने काल द्रव्य कहीने बोलाव्यो. ए काल ते भिन्न पिंड रुप द्रव्य नथी. पण आरोपे द्रव्य कह्यो छे. माटे द्रव्यारोप जाणवो. द्रव्यने विषे गुणनो आरोप ते जेम ज्ञान गुण छे. पण ज्ञानी तेज आस्मा एम ज्ञानने आत्मा कह्यो, ते गुणारोप जाणवो. तथा जेम श्री महावीर स्वामीनुं निवाण थयां घणो काल गयो छे. पण आज दीवालीना दीवसे वीर निर्वाण छे. एम में कहेवू ते वर्तमान कालमां अतीत कालनो आरोप को. तथा आज श्री पद्मनाभ प्रभुनो निर्वाण छ एम जे कहे, ते वर्तमान काळमां Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) षड् द्रव्य विचार. अनागतकालनो आरोप. एवी रीत अतातना वे भेद छ. तथा अनागतना बे भेद छे तथा वर्तमानना पण बे भेद छे ते सर्व मळी काला रोपना छ भेद जाणवा. चोथो वळी कारणने विष कार्यनो आरोप करवो ते कारणाद्या. सेप कहीए. ते कारण चार छ १ उपादान कारण. २ निमित कारण. ३ असाधारण कारण.४ अपेक्षा कारण तेमां बाह्यद्रव्य क्रिया ते साध्य सापेक्षवाळाने धर्मनुं निमित्त कारण छे तोपण एने धर्म कारण कहीए तेमज श्री तीर्थकर मोक्षनु कारण छे, तेथी तेमणे 'तारयाण' कह्या ते कारणने विषे कापणानो आरोप कर्यो एम आरोपता अनेक प्रकारे छे ते का Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार (७५) --0000RANCo n रणाद्यारोप. वळी संकल्प नैगमना बे भेद छे १ स्वपरिणामरुप जे वीर्य चेतनानो जे नवो नवो क्षयोपशम लेवो ते. २ कार्यातराये नवे नवे का. ये नवो नवो उपयोग थाय ते. ए बे भेद थया. तथा अंश नैगमना पण वे भेद छे. १ भिन्नांशते जुदो अंश, स्कंधादिकनो, बीजो अभिन्नांश ते जे आत्माना प्रदेश तथा गुणना अविभाग इत्यादिक ए सर्व नैगम नयना भेद जाणवा. (२) हवे संग्रह नये कहेछे. सामान्य वस्तु सत्ता संग्राहकः संग्रह स द्वि विधः सामान्य संग्रहः विशेष संग्रहश्च सामान्य संग्रहो द्विविधः मूलतऊत्तरश्च मूलतो Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६ ) षड् द्रव्य विचार. - - स्तित्वादि भेदतः पड्विधः उत्तरतो जाति समुदाय भेद रुपः जातितः गवि गोत्वं घटे घटत्वं वनस्पतै वनस्पतित्वं समुदय तो सहकारात्मके वने सहकारवनं, मनुष्य समूहे म. न्युष्य द्वंद, इत्यादि समुदायरुपः अथवा द्रव्यनिति सामान्य संग्रहः जीव इति विशेष संग्रहः ____ अर्थ. सामान्ये करी मुल सर्व द्रव्य व्यापक नित्यत्वादिक सतापणे रह्या जे धर्म तेनो जे संग्रह करे तेने संग्रह नय कहे छे. तेना वे भेद छे. एक सामान्य संग्रह बी. जो विशेष संग्रह. वळी सामान्य संग्रहना बे भेद छे, १ मुल सामान्य संग्रह २ उत्तर सामान्य संग्रह Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रव्य विचार. (७७) वळी मुळ सामान्यना अस्तित्वादिक छ भेद छे तथा उतर सामान्यना वे भेद छे. १ जाति सामान्य २ समुदाय सामान्य. तीहां गायना समुहमां गोत्वरुप जाति छे तथा घट समुदायमां घटत्व पणो अने वनस्पतिमां वनस्पति पणो ते जाति सामान्य कह्यो. अने आंबाना समुहने विषे अंब वन कहे, तथा मनुष्यना समुहमा मनुष्य ग्रहण थाय ते समुदाय सामान्य. ए उत्तर सामान्य ते चक्षुदर्शन तथा अ चक्षुदर्शनने ग्राही छे, अने मूल सामान्य ते अवधि दर्शन तथा केवळ दर्शनथी ग्रहवाय छे. अथवा छ द्रव्यना समुदायने द्रव्य केहेवु, ए सामान्य संग्रह, अने जीवने जीव द्र Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) षड् द्रव्य विचार. व्य कही अजीव द्रव्य थकी जुदो पाडवो, ते विशेष संग्रह. विशेषावश्यकमां संग्रह नयना चार भेद कह्या छे १ संग्रहीत संग्रह २ पिंडित संग्रह ३ अनुगम संग्रह ४ व्यतिरेक संग्रह. १ सामान्यपणे वहेंचण विना ग्रहण थाय एवो जे उपयोग अथवा एवं जे वचन अथवा एवो धर्म कोईपण वस्तुने विष होय तेने संग्रहित संग्रह कहीए. २ एक जाति माटे एक पणो मानीने ते एक मधे सर्वनो ग्रहण थाय जेम एगे आया एगे पुग्गले इत्यादि वस्तु अनंति छे पण जाति एक माटे ग्रहण थाय छे ते बीजो पिंडित संग्रह नय कहीए. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (७९) ३ जे अनेक जीवरुप अनेक व्यक्ति छे ते सर्वमां पामीए, जेम सत् चित्मयो आत्मा एटले सर्व जीव तथा सर्व प्रदेश अने सर्व गुण ते जीवनां लक्षण छे ते अनुगम संग्रह नय कहीए. जेना ना कहेवाथी तेनाथी ईतरनो सर्व संग्रहपणे ज्ञान थाय ते जेम अजीव छे तेवारे जे जीव नही ते, अजीव कहीए एटले कोइक जीच छे एम व्यतिरेक वचने ठयों तथा उपयोगे जीवनो संग्रह थाय छे, ते व्यतिरेक सं. ग्रह कहीए. एक नाम लीधाथी सर्व गुण पर्याय परिवार सहीत आवे ते संग्रह नय जाणवो. द्रष्टांत-जेम कोईक मन्युष्ये प्रभाते दा Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) षड् द्रव्य विचार. तण करवाने अर्थे पोतानो घरना वारणे वेशीने चाकरने कह के दातण लेइ आवो, ते वारे चाकर पुरुष पाणीनो लोटो रुमाल दा. तण एम सर्व चीज लइ आव्यो. हवे. शेठे तो एक दातण नाम लइने मंगाव्युं हतुं पण सर्वनो संयह करी चाकर लइ आव्यो ते रीते संग्रह नय जाणवो. (३) व्यवहार नय __ संग्रह ग्रहीत वस्तु भेदांतरेण विभजनं व्यवहरणं, प्रवर्तनं वा व्यवहारः सद्वि विधः शुद्धोऽशुद्धश्वः संग्रहनये ग्रहीत जे वस्तु तेने भेदांतरे वेहेच. तने व्यवहार नय कहे छे. ओम द्रव्य एनु सामान्य नाम कर्दा. तेमां वली वेहेंचण Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (८१ ) करीए जे द्रव्यना वे भेद छे, एक जीव द्रव्य, तथा बीजुं अजीव द्रव्य, वळी तेमां पण वहेचण करीए जे जीवना वे भेद छे एक संसारी, बीजा सिद्ध, वळी तेमां पण संसारीना बे भेद एक स्थावर वीजो त्रस तेमां स्थावर ना पांच भेद, पृथ्वीकाय, अप्काय, ते उकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, वळी त्रसना चार भेद छे वेरेंद्री, तेरेंद्री, चौरेंद्री, पंचेंद्री, वळी पंचेंद्रीना चार भेद. देवता, मनुष्य, तीर्यच अने नारकी एम उतरोतर जीवना ५६३ भेदनी वेहेचण इत्यादिक सर्व व्यवहार नयनो स्वभाव जाणवो. अथवा व्यवहरणं कहेतां प्रवर्तन तेना बे भेद छे १ शुद्ध व्यवहार २ अशुद्ध व्यवहार. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) षड् द्रव्य विचार. सर्व द्रव्यनी स्वरुप शुद्ध प्रवृत्ति-जेम धर्मास्तिकायनी चलण सहायता तथा अध. मास्तिकायनी स्थिति सहायता तथा जीवनी ज्ञायकता इत्यादिकने वस्तुगत शुद्ध व्यवहार कहीए. द्रव्यनो उत्सर्ग नीपजवा माटे जे रत्न त्रयीनी शुद्धता गुणस्थाने श्रेणी आरोहणरुप ते साधन शुद्ध व्यवहार कहीए. __अशुद्ध व्यवहारना बे भेद छ १ सद्भूत व्यवहार २ असदभूत व्यवहार तेमां जे क्षेत्रे अवस्थाने अभेद संबंध रह्या जे ज्ञानादिगुण तेने परस्पर भेदे कहेवा ते सद्भूत व्यवहार. तथा हुँ क्रोधी छु. मानीर्छ अथवा देवतार्छ मनुष्यछु. इत्यादि देवतापणे ते हेतुपणे परि Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ८३ ) मतां ग्रह्मा जे देवगति विपाकी कर्म तेने उदयरूप परभाव छे ते पण यथार्थ ज्ञान विना भेद ज्ञान शून्य जीब ले एक करी माने छे ते असद् अशुद्ध व्यवहार कहीए तेना वळी वे भेद छे. १ आ शरीर मारु छे हुं शरीरी छु इत्यादि केहेवं तेने संश्लेषित असद् भूत व्यवहार कहीए. २ आ पुत्र मारो आ स्त्री कुटुंब धनधान्यादिक नवविध परिग्रह मारो छे एम जे कहेवं ते असंश्लेषित असद्भूत व्यवहार नय कहीए. ते असंश्लेषित असद्भूत अशुद्ध व्यबहारना वे भेद छे. एक उपचरीत अने बीजो अनुपचरीत एम वे भेद जाणवा. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (68) षड् द्रव्य विचार. विशेषावश्यक महाभाष्यमां व्यवहार न यना मुल बे भेद छे. १ वहेचणरुप व्यवहार. २ प्रवृतिरूप व्यवहार. प्रवृति व्यवहारना त्रण भेद छे, वस्तु प्रवृत्ति, साधनप्रवृत्ति, लौकीक प्रवृत्ति तेमां वळी साधन प्रवृतिना त्रण भेद छे, जे अरिहंतनी आज्ञाये शुद्ध साधन मार्गे इह लोक संसार पुद्गल भोग आ संसादि दोष रहीत जे रत्न त्रयीनी परिणति परभव त्याग सहीत ते लोकोत्तर साधन प्र वृत्ति नामे पेहेलो भेद जाणवो. 14 २ स्याद्वाद विना मिथ्याभि निवेष सहीत साधन प्रवृति ते दुमावचनिक- साधन Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ८५ ) प्रवृत्ति. ३ लोकना स्व स्वदेश कुलनी चाले प्रवृति ते लोक व्यवहार प्रवृति एत्रण प्रवृत्ति कहीए. वाह्य स्वरूप देखीने भेदनी वेहेंचण करे अने जे बाहीर देखाता गुणनेज माने पण अंतरंग सत्तान माने तेने व्यवहार कहे छे, आ नयमां आचार क्रिया मुख्य छे. व्यवहार नये करी जीवनी अवस्था अनेक प्रकारे छे. वळी व्यवहार नयना छ भेद छे. १ शुद्ध व्यवहार. ते आगला गुण ठाणानो छोडको अने उपरना गुण ठाणानुं ग्र हण करकुं. तेने शुद्ध व्यवहार नय कहे छे. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) षड् द्रव्य विचार. अथवा ज्ञान दर्शन चारित्र गुण ते निश्चय नय एक रुप छे पण ते शिष्यने समजाववाने जुदा जुदा भेद कहेवा ते शुद्ध व्यवहार नय जाणवो. २ जीवमां अज्ञान रागद्वेष लाग्या छे ते अशुद्ध पणोछे माटे अशुद्ध व्यवहार जाणवो. - ३ पुण्यनी क्रिया करवी ते शुभ व्यवहार ४ पापनी क्रिया करवी ते अशुभ व्यवहार. ५ धन कुटुंब प्रत्यक्षपणे आपणाथी जुद। छे पण जीव आपणा करी जाण्या छे ते उप चरित व्यवहार. ६ शरीर लेश्या योग इंद्रि इत्यादि व___ स्तु आत्मा थकी जुदी छे तेने आपणी करी Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ८७) जीव माने छे ते अनुप चरित व्यवहार नय जाणवो. इत्यादि व्यवहार नयनुं स्वरुप जाणवुं. (४) हवे चोथे रुजु सूत्र भय कहे छे. ४ रुजुसूत्रनय. रुजु कहेतां सरल छे श्रुत कहेतां बोध ते जेनो ते रुजु सूत्र नय कहेवाय छे रुजु शब्दे - अवक्र एटले समो छे श्रुत ते जेने ते रुजु सूत्र नय कहीए अथवा रुजु - अवत्रपणे वस्तु ने जाणे, कहे, तेने रुजू सूत्र नय कहे छे. जे अतीतकाल अने अनागत कालनी अपेक्षा न करे पण वर्तमान काल जे वस्तु जेवागुणे परिणमे वर्ते ते वस्तुने तेवाज परीणामे माने तेने ऋजुसूत्र नय कहे छे. ए नय Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Annar ( ८८) षड् द्रव्य विचार. परीणाम ग्राही छे. जेम कोइ जीव ब्रहस्थ छे. पण अंतरंग साधुसमान परीणाम छे. तो ते जीवने साधु कहे. अथवा कोइक जीव साधुने वेषे छे. पण मनना परीणाम विषयाभिलाषा सहीत छे. तो ते जीव अव्रती छे. एम ऋजुसूत्र नयनो मानवो छे. ते ऋजुसूत्र नयना बे भेद छे. एक सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय, अने बीजो स्थूल ऋजुसूत्र नय एम बे भेद छे.. सदाकाल सर्व वस्तुमा एक वर्तमान समय वर्ते छे. एटले जे जीव अतीतकालने विषे अज्ञानी हतो. अने अनागत काले अज्ञाती थशे एम बे कालनी अपेक्षा राख्या विना वर्तमान समये जे जैवा होय. तेने तेवो कहे. तेने सूक्ष्म ऋजुमूत्र नय कहे छे. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ محمد مشتت षड् द्रव्य विचार. (८९) माटो बाह्य परीणामने जे आहे. तेने स्थूल ऋजुमूत्र नय कहे छे. ए ऋजु मूत्रना बे भेद दिगंबर कहे छे. __ऋजुमूत्रं वर्तमान ग्राहकं तद् वर्तमानं नामादि चतुष्पकारं ग्राह्य-नय चक्र कर्ता ऋजुसूत्र नयमां नाम, स्थापना, द्रव्य, अने भाव ए चार निक्षेपा ग्रहण करे छे. ५ शब्दनय स्वरुपं. जे वरतु गुणवंत. तथा निर्गुणवंत होय. तेने नाम कही बोलावीए जे भाषा वर्गणाथी शब्दपणे गोचर थाय. ते शब्द नय. जे का. रणथी अरुपी द्रव्य वचनथी ग्रह्या जाय नहीं. पण वचनथी कहेवा ते शब्दनय कहीए. अहीं जे शब्दनो अर्थ ते पणो जे वस्तुमा वस्तुपणे Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) षड् द्रव्य विचार. पाभीए. तेवारे ते वस्तु शब्द नये कहीए. जेम घटनी चेष्टाने करतो होय ते घट कहेवाय. ए शब्द नयमांव्याकरणथी नीपन्या. अने बीजा पण सर्व शब्द लीधा. आगमसार ग्रंथ कर्ता शब्दनयमां चार निक्षेपा ग्रहण करे छे. १ पहेलो नाम निक्षे पोते आकार तथा गुणरहीत वस्तुने नाम कही बोलावे. तेने नाम निक्षेपो कहे छे. जेम एक लाकडीने लेइने कोइए तेने जीव एवं नाम का. ते नाम जीव जाणवो. एवी रीते नाम तप, अथवा नाम सिद्ध. जेम वड प्रमुखने सिद्धवड एम कही बोलावे छे. ते नाम निक्षेपो कहीए. जेम कोइ वस्तुमां कोइ वस्तुनो आकार देखीने तेहने ते वस्तु कहे. जेम. चित्रामण Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार ( ९१ ) अथवा काष्ठ पाषाण प्रमुखनी मूर्ति तेने घोडा हाथी केहेवाय ते स्थापना निक्षेपो जाणवो. ए स्थापना निक्षेपो नाम निक्षेपास होत होय. जेम स्थापना सिद्ध जिनप्रतिमा प्रमुख ते ससद्भाव स्थापना पण होय, अने अ सद्भाव स्थापना पण होय अकृत्रिम जीन प्रतिमा ते नंदीश्वर द्वीप प्रमुखने विषे अने अने जे इहांनी प्रतिमा ते कृत्रिम ते सर्व स्थापना जाणवी. जेम चित्रामणनी स्त्री जहां होय तीहां साधु रहे नही. कारण के स्थापना स्त्री छे ते स्त्री तुल्य जाणवी तेमज जिन प्रतिमा जिन सरीखी जाणवी. काली दोरीने सापनी बुद्धिथी हणतां सापनी हिंसा लागे छे: तेम जीन प्रतिमाने जीननी बुद्धिए करी पुजतां मानतां Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९२ ) षड् द्रव्य विचार. आत्महित जाणवु. ... चित्रामनी मुर्तिने हिंसाना परीणाम थ. की फाडे तेने हिंसा लागे छे तेमज जीनवर ध्यान जिन प्रतिमा पूजतां लाभ थाय छे. ____ जेनुं नाम पण होय तथा आकार स्थापना गुण पण होय अने लक्षण पण होय पण आत्मानो उपयोग मळे नहीं तेने द्रव्य निक्षेपो जाणवो, अज्ञानी जीव ते जीव स्वरूपना उपयोग वीना द्रव्य जीव छे. अणुवऊ गोदव्वं इति अनुयोग द्वार वचनात् वळी. सयुं छे जे सिद्धांत वांचतां पुछतां पद अक्षर मात्रा शुद्ध अर्थ करे छे. अने गुरु मुखे सदहे छे ते पण शुद्ध निश्चय नये पोतानी सत्ता ओलख्या विना सर्व द्रव्य निक्षेपामां छे. जे भाव Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ९३ ) विना द्रव्यपणुं छे, ते पुण्य बंधनु कारण छे पण मोक्षनुं कारण नथी एटले जे धर्म करणीरूप कट तपस्या करे छ, अने जीव अजीव पदार्थनी सत्ता ओळखी नथी. तेने भगवति सूत्रमां अबती तथा अपच्चखाणी कया छे. आ कथन जे बाह्य भावमां राचे छे अने आत्मस्वरूप जाणवा खप करता नथी तेने फटका तरीके छे. एकांत जिनवचन नथी. दान. पूजा. तप. क्रिया, सापेक्ष बुद्धिथी मोक्षनुं का रण छे. कारणे कार्य नीपजे इति. आत्मानुं स्वरूप ओळखवाने बहु उद्यम करवो. मुनिपणुं आत्माना स्वरुप जाणवा वडे करी थाय छे जेम जेम आत्मानु स्वरुप जाणे छे, तेम तेम परभावनो त्याग थाय छे Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) षड् द्रव्य विचार. श्री उत्तराध्ययन सूत्रमा कह्यु छ के नमुणी. रनवासेणं जंगलमां वसवाथी कंइ मुनिपर्यु प्राप्त थतुं नथी पण नाणेणय मुणी होइ-आत्मा स्वरुपर्नु जे ज्ञान ते थकी मुनि कहेवाय छे. इत्यादि द्रव्य निक्षेपार्नु स्वरुप जाणवू. विशेष गुरु गमथकी तत्व जीज्ञासुओए जाणवू. आ वात एकांत समजवी नहिं. गुरु गमताए विशेष अधिकार जाणवो. नाम. स्थापना, द्रव्य, ए त्रण निक्षेपा भाव विना अशुद्ध छे. नाम तथा आकार लक्षण गुण सहीत वस्तु ते भाव निक्षेपो जाणवो उपओगोभावइतिवचनात् पूजादान शी. लतप, क्रिया, ज्ञान, ए सर्व भाव निक्षेपा सहीत लाभनु कारण छे. इहां कोइ कहेशे जे Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (९५) मनना परीणाम द्रढ करीने जे करीए तेने भाव कहीए. पण एम कहेवू ते योग्य नथी ए प्रमाणे तो सुखनी वांछाए मिथ्यान्वी पण घ. णा करे छे, पण सूत्रनी साखे वीतरागनी आज्ञाए हेय, तथा उपादेयनी परीक्षा करवी, अजीवतत्व, तथा आश्रवतत्व तथा बंधतत्व उपर त्याग भाव, अने जीवना स्वगुण जे संवर निर्जरा मोक्ष तत्व उपरे उपादेय परी. णाम, तेने भाव कहीए, ए चार नीक्षेपा कह्या. शब्द नयमां भावनी मुख्यता छ एम पण छे. ६ समभिरुढनय. (६) समभिरुढ नय-जे वस्तुना केटलाक गुण प्रगटया छे अने केटलाक गुण प्र. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९) षड् द्रव्य विचार. गटया नथी प्रण अवश्य पगटशे एहवी वस्तुने वस्तु कहे, ते वस्तुना नामांतरः एक करी जाणे जेम जीव चेतन आत्मा एनो एक अर्थ करी सईहे, तेने समभिरुढ नय कहे छे ए नय एक नय ओछी वस्तुने पुरेपुरी कहे. जेम तेरमे गुणठाणे वर्तता केवळीने सिद्ध कहे. (७) एवं भूतनय-जे वस्तु पोताने गुणे संपुर्ण छे अने पोतानी क्रिया करे छे तेने ते वस्तु करी बोलावे. जेम मोक्ष स्थानकमां जे जीव पहोच्या तेने सिद्ध कहे. जेम पाणीथी भरेलो स्त्रीना माथा उपर आवतो जल धरण क्रिया करतो तेने घट कहे. ते एवं भूत नय जाणवो. हवे प्रमाण बतावे छे.-प्रमाणना बे भेद Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विधार ( ९७ ) छे ( १ ) प्रत्यक्ष प्रमाण (२) परोक्ष प्रमाण. जे जीव पोताना उपयोगथी द्रव्यने जाणे, तेने प्रत्यक्ष प्रमाण कहे छे जेम केवळी छ द्रव्य प्रत्यक्षपणे जाणे छे. तथा देखे छे. ते मा केवल ज्ञान सर्वथी प्रत्यक्ष ज्ञान छे. मनः पर्यव ज्ञान ते मनो वर्गणा प्रत्यक्ष जाणे. तथा अवधिज्ञान ते पुद्गल द्रव्यने प्रत्यक्ष जाणे. माटे ए वे ज्ञान देश प्रत्यक्ष के. २ यति ज्ञान अने श्रुत ज्ञाननो उपयोग ते परोक्ष प्रमाण छे. परोक्ष प्रमाणना त्रण भेद छे. १ अनुमान प्रमाण २ आगम प्रमाण ३ उपमान प्रमाण. १ कोइक सहीजाण देखीने जे ज्ञान था Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९८ ) पडू द्रव्य विचार. य. जेम यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र अग्निः जेजे ठेकाणे धूम होय ते ते ठेकाणे अग्नि होय एटले घूमने देखीने जे अनुिं अनुमान थयुं ते अनुमान प्रमाण. २ शास्त्री साक्षीथी जे वात जाणीए. जेम देवलोक, नरक, निगोद विगेरेनो विचार आगमथी जाणीए छोए ते आगम प्रमाण छे. ३ कोइक बस्तुनो दृष्टांत आपीने वस्तुने ओळखाववी ते उपमान प्रमाण जाणवुं. सप्तभंगीनुं स्वरुप. १ स्यात् कहेतां अने कांतपणे सर्व अपेक्षा लेइने जीव द्रव्यमां आपणो द्रव्य, आपणो क्षेत्र, आपणो काल, तथा आपणो भाव, Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ९९ ) एम स्वगुण पर्याये जीव छे तेम सर्व द्रव्य आपणे गुण पर्याय छे ते स्यात् अस्ति नामनो पहेलो भांगो जाणवो. २ जे जीव द्रव्यमां बीजा पांच द्रव्यना द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, ते पर द्रव्यना गुण पर्याय जीव द्रव्यमां नथी, एटले पर द्रव्यना गुनो नास्तिपणो जीव द्रव्यमां छे ए स्यात् नास्ति नामे बीजो भांगो थयो. ३ द्रव्य स्वगुणे अस्ति अने परगुणे नास्ति ए वे भांगा एक समये द्रव्यमां छे. जे समयमां शुद्ध स्वगुणनी अस्ति छे तेज समयमां परगुणनी नास्ति पण छे यस्मिन् समये शुद्ध स्वगुण स्य अस्तिता आत्मनि तस्मिन् समये एव परगुणस्य नास्तिता आत्मनि बोध्या. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAA" مخصص (१०.) पद द्रव्य विचार. माटे अस्ति नास्ती ए बे भांगा एक समयमा भेला छे ते स्यात् अस्ति नास्ति त्रीज़ो भांगो थयो. ४ अस्ति अने नास्ति ए बेड मांगाएक समयमा छ, तो वचने करी अस्ति एटलं बोलतां असंख्यामा समय लाने, तेथी नास्ति भांगो तेच वरन ते कडेवाय नहीं, भने जोनास्ति मांगो को लो अक्लिपमा नाच्यो, माटे হল কাদির জন্য অন্য কিন্তু ২मये अन्दयां छे, ते कहेवाणो नहीं, पाटे नृपा बाद लागे. लेमज नास्ति कहेतां अस्तिलो मूपावाद लागे, पाटे बचने करी अगोचर छे. एक समयमां बे भांगा वचने करी कहा जाय नही. केमके एक अक्षर बोलतां असंख्याता Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ द्रव्य विचार. (...) - समय लागे छे. माटे वचनथी अगोचर छे ते स्यात् अवतव्य चोथो भांगो जाणवो. ५ अव तव्य पणो वस्तुमां अस्तित्वनो पण छे: माटे स्यात अस्ति अवक्तव्य ए पांचमो भागो जाणवो. ६ नास्तित्वनो अवकतव्य पणो वस्तु मध्ये छे माटे स्यात् नास्ति अवक्तव्य ए छठो भांगो जाणवो. ७ अस्तित्व तथा नास्तित्व एटले अस्तिपणु तथा नास्तिपणुं एम बे धर्म एक संमये वस्तुमा छे. पण वचन थकी कह्या जा य नही, माटे अस्ति नास्ति अवक्तव्य ए स__तमो भांगो जाणवो. ए सात भांगा नित्य तथा अनित्यपणा Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) षड् द्रव्य विचार. مجتمعححححححححححححححمممممممممممممممم मां पण लागे छे. १ स्यात् नित्यम् २ स्यात् अनित्यम् ३ स्यात नित्यानित्यं ४ स्यात् अवक्तव्यं ५ स्या व नित्यं अवक्तव्यं ६ स्यात् अनित्यं अवक्तव्यं ७ स्यात् नित्यानित्यं युगपत् अवक्तव्यं ए सात भांगा जाणवा. तेमज एक अनेकना सात भांगा जाणवा तथा गुण पर्यायमां पण कहेवा केमके सिद्ध मध्ये नयनथी तोपण सप्तभंगी तोछे. ए सप्तभंगीमां आद्य त्रण भांग सकला देशी छे अने बाकीना चार भांगा विकला देशी छे. त्रण दशा बतावे छे १ बाधक २ साधक ३ सिद्ध. १ मिथ्यात्व दशा ते बाधक दशा जा Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १०३) णवी. २ समकित गुणठाणाथी मांडीने अयोगी केवळी गुणठाणा सुधी साधक दशा जाणवी. ३ सर्व कर्मभी रहीत दशा ते सिद्ध दशा जाणवी. (१) ज्ञाननो जाणपणो ते जीवनो गुण जाणवो (२) तेनो ज्ञाता जीव (३) ज्ञेय ते सर्व द्रव्य. (१) ध्यान ते जीवना स्वरुपनु (२) ध्या ननो ध्याता जीव (३) ध्येय ते आत्मानुं स्वरुप आत्माना त्रण भेद छे १ बहिरात्मा २ अंतरात्मा ३ परमात्मा. १ शरीर मन लश्या इंद्रि आदि वस्तुने अज्ञानी जीव आत्म बुद्धिए करी माने ते पहेलो बहिरात्मा जाणवो. दुहा. पुद्गल मे रा Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११०४) षड् अग्ध विचार. ची रहे. पुद्गल सुखनिधान, तस लाभे लोभ्यो रहे. बहिरातम अभिधान ॥१॥ पुद्गल से न्यारो नही आतम एवी बुद्धि, बहिरातम सुख क्युं लहे, प्रगटे नहीं स्व शुद्धि ॥२॥ २ जे देह सहीत जीव छे पण निश्चय सत्ता गुण सिद्ध समान छे एटल पोतानाजी बने सिद्ध करी ध्याचे ते अंतरात्मा जागयो. एटले पुद्गल वस्तु आत्मानी नथी, आत्मा. थी शरीर इंद्रिय लेश्या विगेरे भिन्न छ, आ स्मा अरुपी छे, पुदगल (कर्मरुप) रुपी छे, आत्मा चेतना सहीत छे, कर्म जड छे, आत्माने चार गतिमां भटकवा कारण कर्म छे. ते मारी वस्तु नथी. पण पर वस्तु छ अरे हुँ ए पर वस्तुने पोतानी मानी बेठो छु. अने ते Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार ( १०५ ) थी हुं दुःखी थाउ . हे चेतन तु अरुपी अ नंत गुणनो भोकता छे. आठ कर्मना नाशथी तुं परमात्मा ( एटले) कर्म रहीत शुद्ध आत्मा स्वरूपे थइश. कर्म रहीत जेवा सिद्धना जीवो छे, तेवोतुं पणछे. कर्मना आवरणथी तारा गुण दबाइ गया छे. इत्यादी पोताना आत्माने सि द्ध समान करी ध्याववो से अंतरात्मा कहीए. ३ सर्व कर्म खपावी केवळ ज्ञान पाम्या ते अरिहंत तथा सिद्ध सर्व परमात्मा जाणवा एषे द्रव्य मध्ये छ सामान्य गुण कहे छे १ अस्तित्व ते छ द्रव्य आपणा गुण पयीय प्रदेश करी अस्ति के तेमां धर्म अधर्म आकाश अने जीव ए चार द्रव्यना असंख्या ता प्रदेश मळे खंध धाय छे अने पुद्गलमां Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६) षड् द्रव्य विचार. खंध थवानी शक्ति छे माटे ए पांच द्रव्य अ. स्तिकाय छे अने छठो काळ द्रव्यनो समय छे ते कोइ कोइथी मळतो नथी केमके एक समय विणश्या पछी वीजो समय आवे छे माटे काल अस्तिकाय नथी ए द्रव्यमां अस्तित्व पणो कयो. २ वस्तुत्व एटले छ द्रव्यमा वस्तु पणो कई छ. ते द्रव्य एकठा एक क्षेत्र मध्ये रहा छे एक आकाश प्रदेशमा धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश रह्यो छे. तथा अधर्मास्तिकायनो पण एक प्रदेश रह्यो छे, आगमसारमांजीव अनंताना अनंत प्रदेश रह्याचे एम लख्यु छे.पुद्गल परमाणुआ अनंता रया छे. ते सर्व पोतानी सत्ता ली. धाथका रह्या छे. पण कोइ द्रव्य कोइ द्रव्य Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १०७) साथे मळी जता नथी. ते वस्तुपणुं जाणवुं. ३ द्रव्यत्व - कहेतां द्रव्यपणो ते सर्व द्रव्य पोत पोतानी क्रिया करे छे. धर्मास्तिकायमां चलन सहाय गुण ते सर्व प्रदेश मध्ये छे. सदा पुद्गल तथा जीवने चलण स्वभाव रुप क्रिया करे छे. प्रश्न - लोकांतसिद्ध क्षेत्रमां धर्मास्तिकाय छे. ते सिद्धना जीवोने चलावचापणो करता नथी तेनुं केम. उत्तर - सिद्धना जीवो अक्रिय छे. माटे चालता नथी. पण ते क्षेत्रमां सूक्ष्म निगोद ना जीव तथा पुद्गल छे. तेने धर्मास्तिकाय. चलन सहाय गुण आपे छे. पण सिद्धना जीवो अक्रिय छे. तेथी तेमने चलण सहाय Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) षड् द्रव्य विचार. गुण धर्मास्तिकाय आपतो नथी. पुद्गल सक्रिय छे. पण पुद्गल संग त्यागी जे सिद्ध थया ते तो अक्रिय छे अने अक्रिय एवा सिद्धना जीवो चाली शकता नथी. जे वस्तु सक्रिय होय छे. गति करी शकेले. तेने धर्मास्तिकाय चालवामां सहाय आपे छे. पण अक्रिय एवा सिद्धना जीनों गति करता नथी. तथा तेमने चालवामां सहाय गुण धर्मास्तिकाय आपी शकतो नथी. सिद्धात्माओ अक्रिय छे. माटे धर्मास्तिकाय चलण सहाय गुण आपतो नथी. तेथी सिद्धना जीवो नि. थल स्वस्वरुपी छे. _अधर्मास्तिकाय जीव तथा पुद्गलने स्थीर राखवानी क्रिया करे ले. तथा आका Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ سس تتشتشنجتجد षड् मध्य विचार. (१.९,' श द्रव्य ते सर्व द्रव्यने अवगाहना गुण रुप दान आपे छे. प्रश्न-होकाकाशमां बीजं कोई द्रव्य नथी तो अलोकाकाश कोण द्रव्यने अवगाहना दान आणे छे. उत्तर-अलोकाकासमां अवगाहना दान देवानी शक्ति ला लोकाकाश जेबीज छे. पण त्यां अवगाहना दान लेनार कोइ द्रव्य नथी, नाटे अवगाहना दान करतुं नथी. पुद्गल गव्य मिलवा बिखरबारुप त्रिया कर्या करे छे. तेथी कालद्रव्य वर्तनारुप क्रिया कर्या कर छे. अने जीव द्रव्य ज्ञानलक्षण उपयोग रुप किया करे छे. ए. द्रव्य प. जो कह्यो. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (...) षड् द्रव्य विचार. ४ प्रमेयत्व-एटले प्रमेयपणो छ द्रव्यमा छे. तेनो प्रमाण केवली पोताना ज्ञानथी करे छे. धर्मास्तिकाय. अधर्मास्तिकाय. अने आकाश ए एकेक द्रव्य छे. अने जीव द्रव्य अनंता छे. तेहनी गणतरी बतावे छे. संजी मनुष्य संख्याता छे. असंही मनुष्य असंख्याता छे. नारकी असंख्याता छे. देवता अ सख्याता छे. तिर्यंच पंचेंद्री असंख्याता के. बेरेंद्री असंख्याता . तेरेंद्री असंख्याता छे. चौरेंद्री असंख्याता छे. ते थकी पृथ्वीकाय असंख्याता छे. अपकाय असंख्याता. ते उकाय असंख्याता. वायुकाय असंख्याता. प्रत्येक वनस्पति जीव असंख्याता. ते थकी सिद्धना जीव अनंता. ते थकी बादर निगो Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAD00000 . षड् द्रव्य विचार. (111) दना जीव अनंतगुणा बादर निगोद ते. कंद मूळ. आदु. सूरण शकरीयां मुळा. प्रमुख. एहना मुइना अप्रभाग जेटला भागमां अनंता जीव रह्या छे. ते सिद्धना जीवथी अनंत गुणा छे. अने सूक्ष्म निगोद जीव सर्वथी अनंत गुणा छे. ए सूक्ष्म निगोदनो विचार कहे छे. लोकाकाशना जेटला प्रदेश छे. तेटला गोला छे. ते एकेक गोलामां असंख्याती निगोदछे. अनंता जीवोनुं पिंडभूत एक शरीर तेने निगोद कहेछे अने तेमांथी एकनिगोदमांअनंता जीव रह्या छे अतीत काळना सर्व समय तथा वर्तमानकाळना एक समय तथा अनागतकालना सर्व समय. ते सर्वनें भेला करीए.अने Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २) षड् द्रव्य विचार. Commanmadarmanorammacaraccommoomy तेने अनंत गुणा करीए तेदला एक निगोद मां जीव रह्या के एटले एक निगोदमां अनंता जीव रह्या छे. तेमांथी एक जीव ग्रहण करीए. तेना प्रदेश असंख्याता छ अने एक__ का प्रदेशे अनंति कर्मनी वर्गणा लागी छे. ते एकेक वर्गणा मध्ये अनंता पुद्गल परमाणु आ छे. एम अनंता परमाणु जीव सार्थ लाग्या छे. ते थकी अनंतगुणा हुद्गल परमाणु जीवी रहीत छूटा छै. गाथा गोलाय असंखिना असंख निगोए ह. वइ गोलो, इकिकमिनिगोए अणंता जीवा गुयचा. ॥१॥ अर्थ-लोकमांहे असंख्याता गोळा छे. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् मन्य विचार. ( ३) एकेका गोळा मध्ये असंख्याती निगोद छे. अने एकेक निगोहमा अनंता जीव छे. . गाथा . सत्तरस समहिआ, किरइगाणु पाणामि हुति खुड्डभवा, सगतिससयति हुत्तर, पाणुं पुइस मुहुत्तंमि. अर्थ-निगोदीया जीव मनुष्यना एक श्वासोश्वासमां सत्तर भव झाझेरा करे छे. एक मुहूर्तमा ३७७३ त्रण हजार सातसो तो तेर श्वासो श्वास थाय छे. तेटलामा निगोदी या जीव केटला भव करे ते बतावे छे. पणसहिसहस्सपणसय छत्तिस्सा इग मुहुत्त खुड्डभवा, श्रावलियाणं दोसय, छप्पन्ना एगखुड्डभवे. Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४) षड् द्रव्य विचार. अर्थ-एक मुहूर्तमा निगोदना जीव ६५५३६ भवकरे. अने निगोदनो एक मात्र २५६ आवलीनो छे. क्षुल्लक भवनो ए प्र. माण छे. गाथा-अध्यि अणंताजीवा जेहिंनयत्तो. तसाइ परिणामो उववज्जति चयंतिय, पुणोवि तथ्यतथ्थेव-निगोदमां अनंताजीव एहवा छके जे जीव सपणो कोइ वखते पाम्या नथी. अनंतोकाल पूर्वे गयो. अने अनंतोकाल जाशे पण ते जीव वारंवार तीहांज उपजे छे. अने चवे छे. एम एकनिगोदमां अनंताजीव छे. ते निगोदना बे भेद छे. १ एक व्यवहार राशिनिगोद, अने बीजो अव्यवहार राशिनिगोद, तेमां जे वादर एकद्रीपणो भा. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रव्य विचार. ( ११५ ) वे सपणो पामीने पाछा निगोदमां जाइपडया छे. ते निगोदिया जीवने व्यवहार राशिया कहीए. अने जे जीव कोइपण काळे निगोदमांथी नीकळ्या नथी. ते जीव अव्यबहार राशिया कहीए. इहां मनुष्यपणामांथी जेटला जीव कर्म खपावीने मोक्षे जाय छे. तेटला जीव तेज समये अव्यवहार सारी सूक्ष्म निगोदमांथी नीकळीने उचा आवे छे. जो दशजीव मो जाय तो दशजीव नीकळे. कोइक वेळाए भ व्यजीव ओछा नीकळे तो एक वे अभव्य नीकळे पण व्यवहार राशिमां कोइ जीव व घटे नहीं. एवा निगोदना असंख्याता गोलालोक मांहे छे. + Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARMAANARANGanananamannaamaa (2) पड् द्रव्य विचार, . छदिशिना आव्या पुद्गलने आहारपणे जे लेछे, ते सफलगोला कहेवाय छे. अने लोकांतना प्रदेश जे निगोदना गोला रह्या छे, तेने त्रण दिशिना आहारनी स्पर्शना छे मादे ते विकल गोला कहेवाय छे. ए सूक्ष्म निगो. दमां अनंतु दुःख छे. तेनु उदाहरण बतावे छे. सातमी नरकनु आउखु तेत्रीस सागरोपमनुं छे. अने ते तेत्रीश सागरोपमना जेटला समय थाय तेटला वखत सातमी नरकमां तेत्रीस सागरोपमने आउखे कोइ जीव उपजे तेटला भवमा तेजीवने जेटल छेदन भेदन- दुःख थाय ते सर्व एकळु करीए तेथी अनंतगुण दुःख निगोदीया जीवने एक समयमां थाय छे. जेम कोइ देवता Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (११७ ) साडाँत्रणक्रोड लोढानी सोयो तपावीने एक दम कोइ मनुष्यना शरीरे चोपे तेथी तेने जे वेदना थांय तेथी अनंतगुणी वेदना निगोदीया जीवने एक समयमां छे. भव्य जीवने निगोद प्राप्त थवानुं कारण अज्ञान छे. माटे तेहनो त्याग करवो ए सर्व प्रमेयनो प्रमाता आत्मा ते पोताना ज्ञान गुणे करी प्रमेयनो प्रमाण करे छे. ए प्रमेयत्वपणो कह्यो. ५. सत्व कहेतां सत्वपणो ते छ ए द्रव्य एक समयमा उपजे छे, वीणसे छे, अने स्थिरपणे छे. उत्पादव्यय, अने ध्रुवपणो तेही ज सत्पणो छे. उत्पाद, व्यय, ध्रुव युक्त-सत् इति तत्वार्थ वचनात् तेने विस्तारथी वतावे छे. धर्मास्तिकायना असंख्याता प्रदेश के Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८). पड् दव्य विचार. तीहां एक प्रदेशमा अगुरु लघु असंख्यातो छे, अने वीजा प्रदेशमां अगुरु लघु अनंता छ. त्रीजा प्रदेशमा संख्या तो अगुरु लघु छे एम असंख्याता प्रदेशमा अगुरु लय पर्याय घटतो वधतो रहे छे, ते अगुरु लघु पयायच. ल छे. ते जे प्रदेशमा असंख्यानो छ तेज प्रदेशमां अनंतो थाय छे अने अनंनाने ठेकाणे असंख्यातो थाय छे. अने असंख्यानाने ठे... काणे संख्यातो अगुरु लघु पयाय धाय है. एम लोक प्रमाण असंख्यात प्रदेशमा सरी खो समकाले अगुरु लघु. पर्याय फर छे. जे प्रदेशमां असंख्यातो फरीने अनंतो थाय छे. ते प्रदेशमां असंख्यातापणानो किनाश छे. अने अनंताषणानो उपजवा एटले Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( ११ ) उत्पाद छे. अने अगुरु लघुपणे गुण धुवछे. एम उपजवो. विणसवो. अने ध्रुव ए ऋण परिणाम छे. तेने उत्पाद, व्यय, अने श्रुव कहे छे. अधर्मास्तिकामां उत्पाद, व्यय, अने ध्रुवरुप त्रणे परिणाम असंख्याता प्रदेशे सदा समय समयमां परिणमी रह्या छे. तेमां पण उपजे वीणसे अने स्थिर रहे छे. आकाशना प्रदेशमां पण एक समय त्रण परिमाण परिणमी रह्या छे अने जीवना असंख्याता प्रदेश छे. तेमां पण उत्पाद, व्यय, अने ध्रुव, ए त्रण परिणाम परिणमे छे तथा पुद्गल परमाणुआमां पण सदा समय समय, उत्पाद, व्यय, अने ध्रुव, ए त्रण प Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) षड् द्रव्य विचार. रिणाम परिणमी रह्या छे कालनो वर्तमान समय मटीने अतीतकाल थाय छे, तो ते समयमां बर्तमानपणानो. विनाश छे, अने अतीतपणानो उपजवो छ, तथा काळपणे ध्रुव छे, ए स्थूल थकी उत्पाद व्यय अने ध्रुवाणो कह्यो अने वस्तुपणे मुलपणे ज्ञेयने पलटवे ज्ञाननो पण ते भासनपणे परिणमवो थाय. ते पूर्वपर्यायना भासननोव्यय, अने अभिनवज्ञेय पर्यायना भासननो उत्पाद, तथा ज्ञानपणानो ध्रुव, ए रीते सर्वगुणना धर्मनी प्रवृत्तिरुप पर्यायनो उत्पाद. व्यय श्री सिद्ध भगवंतमां पण थइ रह्यो छे. एमज धर्मास्तिकायना प्रदेशे क्षेत्रगत असंख्याता पुद्गल तथा जीवने पहेले सयये Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (१२) wanaanaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaatacancy चलण सहायीपणो परिणमतो हतो. अने वीजे समय अनंतपरमाणु तथा अनंतजीव प्रदेशने चलणसहायीं थयो. तेवारे असंख्याता चलणसहायनो व्यय, अने अनंता चलणसहायनो उपजवो, अने गुणपणे ध्रुव, एम धर्म द्रव्यमध्ये उत्पाद, व्यय, अने ध्रुवपणो थइ रह्यो छे. ते प्रमाण अधर्म आकाशादि द्रव्यने विष जाणवू तथा वली कार्य कारणपणे उत्पाद. व्यय तथा अगुरु लघुना चलननों उत्पाद, व्यय, पंचास्तिकायने विषे कहेवो तथा कालद्रव्यने उपचारथी द्रव्य छे. तेनुं सवे स्वरुप उपचारथीन कहे. एरीते सर्व द्रव्यमा सत्पणो छे. जो अगुरु लघुनो भेद न थाय तो प्रदेशोनो माहोमांहे भेद कहेको थाय? Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) षड़ द्रव्य विचार. ते नाटे अगुरु लघुना भेद सर्वमां छे. अगुरु लघुपको कहे छ. जे द्रव्यनो अगर ला पर्याय छे. ते छ प्रकारनी हानि वृद्धि करे छे. १ अनंतभाग वृद्धि. २ असंख्यातभाग वृद्धि ३ संख्यातभाग वृद्धि. ४ संख्यातगुण वृद्धि. ५ असंख्यातगुण वृद्धि. ६ अनंतगुण वृद्धि . ए छ प्रकारनी वृद्धि कही हवे छ प्रकारनी हानि वतावे छे. १ अनंतभाग हानि.२ असंख्यातभाग हानि. ३ संख्यातभाग हानि. ४ संख्यातगु. ण हानि. ५ असंखयातमुण हानि. ६ अनं. गुण हानि, Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ द्रव्य विचार. (१२३ ) ए छ प्रकारनी हानि समजवी. ए छ प्रकारनी हानि तथा वृद्धि. सर्व द्रव्यमां सदा समय समये थइ रही छे. वृदि. कहेता उपजवो ( उत्पाद ) अने हानि कहेतां ( व्यय ) कहीर. ए अगुरु लघुत्व का. अगुरु लघु गुणने गोत्रकर्म रोके छे. ए अ. गुरु लघु स्वभाव सदा समय समय सर्व द्रव्यमां छे. छ ए द्रव्यमा जेटला सरखा गुण ले. तेने सामान्य गुण कहें छे. जे गुण एक द्रव्यमा छे. ते गुण वीजा द्रव्यमां नथी. तेने विशेष गुण कहे छे. जे गुण कोइक द्रव्यमां छे, अने कोइक द्रव्यमा नथी. तेने साधारण असाधारण ग Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४ ) पड़ द्रव्य विचार. ण कहे छे. ___छ ए द्रव्यमां अनंतगुण, अनंतपर्याय, अने अनंतस्वभाव सदा शाश्वता छे. जेवी रीते श्री केवली महाराजे प्ररुप्या. ते सर्व जे रीते छे ते रीते शुद्ध सद्दहणापूर्वक यथार्थ उपयोगथी श्रुतज्ञानादिकथी यथार्थपणे जाणवा. सदहवा ए निश्चयज्ञान ते मोक्षप्राप्तिनुं कारणीभूत छे. जे जीव ज्ञान पाम्यो. ते जीव विरति करे छे. ते चारित्र जाणवू. ज्ञाननुं फळ विरतिपणुं छे. ते मोक्षनुं कारण छे, ४ चारध्यान. १ आर्तध्यान २ रौद्रध्यान ३ धर्मध्यान ४ शुक्लध्यान. १ आर्तध्यान अने २ रौद्रध्यान ए वे ३ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. NAN पद द्रव्य विचार ( १२५ ) दुर्गतिहेतुभूत छे. ए वे ध्यान अशुभ ३. भ. व्य प्राणीयोने ए चे ध्यान त्याग करवा योग्य छे. धर्मध्यान अने शुकलध्यान ए बे शुद्र उपास्य छे. मनमा आहट्ट दोहट्टना परिणाम ते आतध्यान कहीए आतध्यानना चार पाया छे. ___आतध्यानना ४ पायाः १ इष्टवियोग २ अनिष्टसंयोग ३ रोगचिंता ४ अग्रशौच. १ इष्टवियोग-पौद्गलिक वस्तु जे मनने आल्हादकारी तेनो पोताथी वियोग थबाथी जेजे आहट्ट दोहट्टना परिणाम ते इष्टवियोगनाम आर्तध्यान कहीए, भाइ, मित्र, सज्जन, माता, पीता, स्त्री, पुत्र, धन, प्रमुख इष्ट वस्तुना वियोग थवाथी विलाप करे. Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) पड् द्रव्य विचार. ते इन वियोगनुं लक्षण ले. २ अनि संयोग - अनिष्ट एटले दुःखनां कारणभूत, शत्रु दरिद्विपणुं तथा, कुभार्या, कुभोजन, कुपुत्र, आदिनो संयोग एकले सं वंव थवो ते थकी मनमां जे दुःख चिंता उपजे ते अनिष्टं संयोग नाम बीजो पायो आ र्तध्याननो जणवो. • ३ रोगचिंता - शरीरमां अनेक प्रकारना रोगो रह्या छे. मनुष्यना शरीरमां साडा त्रणकोड राम राजा के एकेका रोममां पोणा वबे रोग रह्या छे. तेमांथी केटलाक रोगो उदये आवे . चिंता करे. हाय, हाय, हवे शी रीते जीवी शकश. अरे माराथी आवुं दुःख खमातुं नथी- अरे हुं मरी जाऊ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रव्य, विचार ( १२७ ) हूं. अरे जो पहेलांथी मे दवाओ करावी राखी होततो आ वखते खावाथी मारो रोग मी जात. अरे हुं हवे दुःख सहन कर्या करतां मेरी जाऊतो सारं. अरे कोइ सारावैद्यने बोलावी नारा रोगनी शांति थाय. तेम करूं. आवा प्रकारनी रोग संबंधयी जे चिंता करवी. ते रोगचिंता नामनो कीजो पायो अध्याननो जाणवो. ४ अग्रशौच - अग्र एटले आगल भवि व्यकाल संबंधी शौच - एटले विचार, चिंतवन, शोच करतो ते अग्रशौच कहीए. जोआ वर्षमां अमुक काम करशुं तो आजता वर्षमां अमुक लाभ थशे. दान, शीयल, तप विगेरेनुं फल मागे के जे से तप, दान, शी Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२८) बद् हव्य विचार. यल पाल्यु होय तो आवता भवमां देवता थाऊ, वा अमुक थाउ, चक्रवर्तिथाउ, राजाथाउ, अमुकनो नाश करनार थाऊ, एवी आगला भवनी जे वांछा. ते अग्रशोच क हीए. आर्तध्यायना चार पाया थकी जीव तिर्यचनी गतिमां जाय छे. माटे भव्य प्राणीयोए ए ध्यान थकी दूर रहेg, आर्तध्यान रुप शत्रुनो मनमां वास करवा देवाथी आस्मानी अनंतिरिद्धिनो नाश थाय ले. आ आत्मा अनंतोकाळ ए आर्तध्यानी रजळ्यो अने हजी जो एनो संग नहीं मूके तो घणा भव भटकशे. जे आर्तध्थानने शत्रुरुप जाणे छे. ते तेनाथी दुर रहेवा अंतःकरणी म Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ تتتتتتتتتتتتتت تتتتتتسحت دست पड़ द्रव्य विचार ( १२९ ) हेनत करेछे संसारमा भंडनी पेठे राच्या पच्या थका दुर्थ्यान ध्यावे छे. ते पामरो अधोगतिने सेवे छे. संसारमा कोइ कोइनुनथी. चेतन पर ने जड वस्तु तेने पोतानीमानी अनंता दुःख भोगवे छे. खरो शत्रु दुान छः ए दुर्ध्याने प्रसन्न चंद्रराज रुपिने सातमी नर्कनां द. लीयां संचाव्या. ( एकठां कराव्यां ) पण धर्मध्यान रुपी योद्धाए आवी दुर्थ्यानने हठावी, मोक्षरुप स्त्रीनो मेळाप करावी आप्यो आश्चर्य मने एटलुन थाय छे के जीव जेते हित तथा अहितने जाणे छे. छतां अहितमां वर्ने छ, निग्रंथ महात्माओ हृदयरुप महेलमां चंडाल सरखा आर्तध्यानने प्रवेश करवा दे Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) षड् द्रव्य विचार. ता नथी. आत्महितैषीयोए. हु कोणछु. क्यांची आव्यो. क्यां जाइश. तारु कोण. तुं कोण. ए वाक्यनो उपयोग पूर्वक विचार करी त्याज्य वस्तुनो त्याग करवो. एज हितकारक छे. वारंवार आ मनुष्यजन्म पामवो दलय छे. हवे जो धर्म सामग्री पामी प्रमाद करशे तो घगा भव भटकशो. अघोर दुःखमांधी छूटवानो अवसर उत्तम छे. एम ज्ञानीओ दयाथी पुस्तक द्वारा जणावे छे. आतध्यानना परिणाम पांचमा तथा छ. हा गुगठाणा सुधी होय छे. कारण के छठे गुणठाणुं प्रमत्तछ, मारे तीहां ए ध्याननो प. रिणाम संभवे छे. *000 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ द्रव्य विचार. ( १३१ ). २ रौद्राध्यानना ४ पाया. १ हिंसानुबंधी रौद्रध्यान २ गृपानुबंधीरौद्रध्यान ३ अदत्तानुबंधी रौद्रध्यान ४ परिसहानुवेधरौद्रध्यान. . १ हिंसा करीने हर्ष पामे. बीजो कोइ हिंसा करतो होय तेने देखी खुश थाय. अ थवा युद्धनी अनुमोदना ( प्रशंसा ) करे. तें हिसानुर्वीरौद्रव्यान जाणवुं. - २ जुटुं बोली मनमां हर्ष पामे अहो में कं कपट कई के मारा जुटापणानी कोइने खबर पडी नहीं एवो मृपावादरूप परिणाम ते मृषानुवीरौद्रध्यान कहेवाय के. ३ चोरी करी. उगाइ करी. मनमां रा Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAUTANINGAAVav (११) पड दम्ब विचार. जी थाय. अने चिंतवे जे मारा जेनो कोण बळवान छे, के जे पारको माल खाय छे. चोरोने चोरी करवामां साहाय आपवाना परिणाम अने चोरी करनारनी प्रशंसारुप परिणाम ते अदत्तानुबंधीरौद्रध्यान कहीए. ४ घन, धान्य, खेत्र, वस्तु, आदि नव जातनो परिग्रह वधारवानी घणी तृष्णा होय. ने तेनी वृद्धिना ऊपायोनु चितवन, कुंटुंबना माटे गमे तेनु पाप करे. या वणो परिग्रहमळवाथी अहंकार करे, अने जगतने तृणवत् माने परिप्रद रक्षण करतानी चिंता ए आदि जे परिणामने परिग्रहानुबंधीरोद्रध्यान कहीए: ए चार प्रकारना ध्यान थकी जीवन Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __षद् द्रव्य विचार. (५३) CADDA रकनी गतिमां जाय छे. माटे भव्यात्माओए चार प्रकारचें रौद्र ध्यान ध्या नहीं. महा रौरव भयंकर दुःखनु कारण रौद्रध्यान छे. रौद्रध्यान पांचमा गुणठाणा सुधी छे. छठे गुणठाणे पण एक हिंसानुबंधी रौद्रध्यानना परिणाम कोइक जीवने होय छे. रौद्रध्यान रूप सर्प जेने करडे छे, तेने चतुर्गतिरुपः भव भ्रमण करर्बु एडे छे. जेम सर्पनो भय लागे छे, तेम बैरागीओने रौद्रध्यानरुप सर्पगे भय लागे छे. मंत्रवडे मंत्रवादीओ जेम सर्पर्नु मेर उतारे छे तेम धर्मध्यानरुप मंत्रवडे वैरागीयो पापरुप झेर उतारे छे. सर्प जेम अनिष्ट - गे छे तेम ज्ञानीओने रौद्रभ्यानरूप सर्पः बनिष्ट लागे छे. जनसमुह सर्पने पासे आश्वा Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३४ ) षड् द्रव्य विचार. देतों नथी, तेम ज्ञानी समुह रौद्रध्यानरूप सपने पासे आववा देतो नथी, एटलं विशेष छे के. सर्पडंसथी एकवार मर पडे छे पण रौद्रध्यानरूप सपेंडेंसथी अनंतिवार मरण क खुं पडे छे. रौद्रध्यान अघोर रात्री समान छे. अघोर अंधारी रात्रीमां जेम माणस अंध बनी जाय छे. तेम माणस रौद्रध्यानरुप अंगरी अघोर रात्रीमां अज्ञानी बनी जाय छे. अघोर रात्रीमां जेम चोरोनो प्रचार था - य छे, अने खातर पाडे छे. तेम रौद्रव्यानरुपी अघार रात्रीमां राग, द्वेष, मोह, माया अंदेखाइ, निंदा, क्लेश, चाडी, असत्यरुपी चोरो, आत्मानी अनंतिरिद्धि लुंढे छे. वळी रौद्रध्यान मदिरा समान बेभान कर्ता छे. अ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... ......... . ... पड द्रव्य विचार. ( १३५ ) नंत दुःश्वनो हेतु भूत छे. हे चेतन तुं आप आप विचार के रौद्रध्यानरुप शत्रु तने हितकर्ता छे के अहित कर्ता छे हितकर्ता तो कदापिकाले कहीं शकाय नहीं. अने अहित करनार तो प्रत्यक्ष देखवामां आवे छे छतां तुं कम तेनो संग छेडतो नथी. शुं तने कंड पैसा बेसे छे ना तेम पण नथी. द्रढ प्रहारी जेवा हिनके पण ए शत्रुनो संग त्याग कशे त्यारे सुख पाया. बळी विचार के ए रौद्र ध्यानरुप शना वशमां पडेलोमम्मण शेट. तथा संभूम चावर्ति नरकनां महा रौरव दुःख भोगवे छ. तेम छतां केम तुं इण मनमा विचार करतो नथी. मूर्यने तथा चंद्रने जा राहु घेरे छे. तेम तने रौद्रभ्यानरुप राहु ग्र Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १:६ ) पडू द्रव्य विचार. हण करे छै. कोयला जेम खावाथी काळं मुख थाय छे, तेम रौद्रध्यानथी समज. लाखो शत्रुओने जीतनार पण रौद्रध्यानरूप शत्रुने जीती शकता नथी, एवं अशुभ, आत्मबाती, मलीन, रैद्रध्यान के. एनो संत पूर्वक त्याग करवो. एज हितकारक छे ए बे ध्याननो त्याग करवो. त्यारे कोनो स्वीकार करवो तेवी आकांक्षा थतां धर्म ध्याननो स्वी करवो एम शास्त्रकार जणावे छे. ३ धर्मध्यानना ४ पाया. दुर्गतिपडता प्राणीयोने धारण करी राखे अर्थात् दुर्गतिमां पडवा दे नहीं. तेने सामान्य प्रकारे धर्म कहे छे.. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १३७ ) १. आज्ञाविचय २ अपायविचय ३ विपाकविचय ४ संख्यानविचय ए चार पाया धर्मध्यानना छे. १ आज्ञाविचय धर्मध्यान कहे छे. सीतराग देवनी आज्ञा साची करी सदहे भगर्वले छ द्रव्यनुं स्वरुप नय प्रमाणे निक्षेपा सहित सिद्ध स्वरुप तथा निगोद स्वरुप जेवी रीते क छे, तेवी रीते हृदयमांधारे, यथा तथ्य करी माने, सहे वीतरागनी आज्ञा नित्यानित्यपणे तथा निश्चय व्यवहारपणे माने. श्रद्धा करे. तथा उत्सर्ग अपवादपणे माने, श्रद्धा करे, ते आज्ञा *माणे यथार्थ उपयोग भासन थयो. तेना हर्षथी ते उपयोग मध्ये, निराधार, भासन, रमण, अनुभवता, एकता, तेमां तन्मयपणो Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८ ) षड् द्रव्य विचार. ते आज्ञा विच धर्मध्यान कहीए. २ अपायविचय-जीवमां अशुद्धपणाथी कर्मनां संयोगे करी संसारी अवस्थामा अनेक प्रकारां अपाय कहेतां दूषण के. ते अज्ञान, राग, द्वेष, कषाय, आश्रय, सारा नथी. तेना थकी हुं अनंताकाल रझयो. अने अनेक प्रकारनी आकृतिने धारण करी. चारंगतिमां भय्या करुं. ते अज्ञान, राग,. देप, मारो घात कर्ता छे. ते मारा थकी भिन्न छे. हुं ते थकी जुदो. अनंतज्ञान, अनंत दर्शन अनंत चारित्र अनंत वीर्यमयी बुद्ध, बुद्ध, अविनाशी, अज, अनादि, अनंत, अक्षय, अक्षर, अनक्षर, अचल, अकल, अमल, अगम्य, अनामी, अबंधक, अकर्मी, अरुपी, Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १३९ ) अछेदी, अभेदी, अवेदी, अलेशी, अयोगी, अभोगी, अरोगी, अकषाइ, आवेदी, अश· रीरी, अगाहारी, अव्यावाध, अनवगाही, अगुरु, लघु, परिणामी, अयोनी, अप्राणी, अतीन्द्रिय, अमर, अपर, अपरंपर, अव्यापी, अनावित, अकंप, अविरुद्ध, अशोकी, असंगी, लोकालोकज्ञायक, शुद्ध चिदानंदमय मारो आत्मा के. एवो एकाग्रतारुप जे ध्यान, ते अपायविचय धर्मध्यान जाणवू.. ३ विशाकविचय धर्मध्यानस्वरुप-पूर्वोक्त विशेषण युक्ता मारो जीव छे. पण अना. दिकालथी कर्मना संबंध आत्मानी साथे लो लीभूतपणे छे. तथा आ जीव अनेतां दुःख भोगवे ले. कर्मवशे आ जीव दुःखी छे. ते Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४.) पड द्रव्य विचार. कर्मनो विपाक चिंतबे जे-जीवनो ज्ञानगुणते शानावरणीय कर्मे दाब्यो छे, जीवनो दर्शन गुण ते दशना वरणीय कर्मे दाब्यो छे. जीबनो अव्यावाध गुण ते वेदनी कर्मे रोक्यो छ. जीवनोक्षायक गुण ते मोहनी कर्मे रोक्यो छे. जीवनो अक्षयस्थितिरुप जे गुणते आयुष्य कर्मे दाब्यो छे. जीवनो अरूपी गुपते नामकर्मे दाब्यो छे. जीवनो अगुरु ल. घु गुणते गोत्र कर्मे दाब्यो छे. अने जीवनो अनंत वीर्य गुण ते अंतराय कर्मे रोक्यो छे. एम आत्माना आठ गुण ते आठ कर्मे रोक्या छे. आ संसारमा भमतां थकां जे जीबने सुख दुःख छे ते कर्मे करीछे माठे सुखपौद्गलिक उत्पन्न यये छते खुशी थर्बु नहीं, Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद् द्रव्य विचार. (११) AY YMS अने दुःख आवे छतें शोक करवो नहीं. कर्म स्वरुपनी प्रकृति, स्थिति, रस, अने प्रदेश नो बंध, उदय, उदीरणा, तथा सत्ता चिं. तववानो जे एकाग्रतारुप परिणाम ते विपाकविचय धर्मध्यान कहीए. ४ संस्थानविषय-चौदरानलोकनो स्वरुप विचार आ लोकने चउदराज प्रमाण अचो छे ते मध्ये सातराज अबोलोक छे. वच. मां अढारसो जोजन मनुष्य क्षेत्र तीर्थो लोकछे. ते उपर कंइक उणु सातराज ऊर्चलो. कछे. तेमां सर्व वैमानिक देवता वसे छे. अने ते ऊपर सिद्ध शिला छे. अने तेनी ऊपर एक जोजनना चोचीस भाग करीए तेमांना वीसभाग नाचे म्की उपरना Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) षड् द्रव्य विचार. चोवीसमा भागे सिद्ध क्षेत्र छे. ए रीते लोकतुं प्रमाण छे. ए लोकनुं संस्थान वैशाख छे. अनंतकाल आजीवे संसारमा भमतां सर्व लो कने जन्ममरणे करी स्पो छे. ए, जे लोकनुं स्वरुप चिंतव. तथा लोकमां रहेला. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकायर्नु अवस्थान तथा परिणमन द्रव्य मध्ये. गुणपर्यायर्नु अवस्थान तथा द्रव्य मध्ये रहेला उत्पाद, व्यय, अने ध्रुवतुं सत्पणुं तेनो जे एकाग्रताए तन्मय चितवन परिणाम ए. जे ध्यानने संस्थान विचय धर्मध्यान कहीए. ___आ आरामां भव्य प्राणीयोने धर्मध्याननो आधार विशेष छे, माटे तेने विषे तत्प. Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . LA4 पड् अव्य चार. (१४३ ) र थर्बु ते सुखकारी छे धर्म यान चोथा गुपठाणाथी मांडीने सातमा गुणठाणा सुधी होय छे. शुक्लध्यानना ४ पाया. शुक्ल कहेतां निर्मळशुद्ध परआलंबन विना आत्माना स्वरुपने तन्मय पणे ध्यावे तेने शुकल ध्यान कहे छे. तेना पाया ४ चार छ. .१ पृथकत्व वितक सप्रविचार (२) एकत्व वितर्क अप्रविचार (३) सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाति ( ४ ) ऊच्छिन्न क्रियानु दृति ए चार पाया छे. १ प्रथकत्व वितर्क "सप्रविचार-पृथ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) पड् द्रव्य विचार. कत्व-कहेता जीवथी अजीव जुदा करवा स्व भाव तथा विभावनी जुदी अथक पणे बहेंचष करवी स्वरुएने विषेपण द्रव्य तथा पर्यायनोप थकत्व एटले जुदा पणे ध्यान करी पर्यायते गु णमा संक्रमावे, अने गुण ते पर्यायमा सक्रमाव ए रीते स्वधर्मने विषे धर्मांतर भेद ते प्रथक्त्व कहीए अने तेनो वितर्क ते जे श्रुत. शाने स्थित उपयोग अने सप विचार ते सविकल्प उपयोग एटले एक चिंतव्या पछी बीजो चितवयो तेने विचार कहीए. एटले निर्मल विकल्प सहीत पोतानी सत्ताने भ्यावे, ते प्रथकत्व वितर्क सम विचार पहेलो पायो जाणवो ए पहलोपायो आठमाथी अ-- मीयारमा गुण ठाणा सुधी होय छे. Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (१४५) २ एकत्व वितर्क अप विचार-जे जीव आपणा आत्माना गुण पयायनी एकता करी ध्यावे, ते आवी रीते के-जीवना गुणपर्याय अने जीव ते एकज छे अने मारो जीव सिद्ध स्वरुप एकज छे एवो एकत्व स्वरुप तन्मयपणे अनंता आत्म धर्मनो एकत्वपणे ध्यान वितर्क कहेतां श्रुतज्ञानना लंबी पणे अने अप्रविचार कहेतां विकल्प रहित दर्शनज्ञाननो समयांतरे कारणता विना रत्नत्रयीनो एक समयी कारण कार्यतापणे जे ध्यान वीर्य उपयोगनी एकाग्रता ते एकत्व वितर्क अप्रविचार जाणवो ए बीजो पायो बारमा गुणठाणे घ्यावे. ए बेउ पायामां श्रुतज्ञानालंवीपणो छे, पण अवधि मनःपर्यव ज्ञानो प Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) षड् द्रव्य विचार. योगे वर्ततो जीव कोइ ध्यान करी शके नही. ए वे ज्ञान परानुयायी छे माटे ए ध्यानथी घनघातीयां चार कर्म खपावे. निर्मळ केवळज्ञान पामे. पछी तेरमे गुणठाणे ध्यानं तरीकापणे छे. तेरमाने अंते अने चऊदमे गुणठाणे ए बे पाया ध्यावे. ३ सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाति-सूक्ष्म मन वचन कायाना योगरुंधे. शैलेशी करण करी अयोगी थाय. ते जे अप्रतिपाति निर्मळ वीर्य अचलतारुप परिणाम ते सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाति ध्यान जाणवं. इहां सत्ताए ८५ प्रकृति रही हती तेमाथी ७२ खपावे. ४ उच्छिन्न क्रियानुवृत्ति-जे योगरुंधन कीधा पछी तेर प्रकृति खपावे. अकर्मी थाय, Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ann. षड् द्रव्य विचार. (१७) सर्व क्रियाथी रहीत थाय ते समुछिन्न क्रियायानु वृत्ति शुकल ध्यान कहीए. ए ध्यान ध्यावतां शेष दलखरण रुप क्रिया ऊछेदे. अवगाहना देहमानमांथी चीजो भाग घटाडे, शरीरनो त्याग करी इहांथी सातराज ऊपर लोकने अंते जइ सिद्ध थाय छे. हवे वळी वीजा चार ध्यान कहेछे (१) पदस्थ (२) पिंडस्थ ( ३ ) रुपस्थ (४) रुपातीत. १ अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु ए पंच परमेष्टीना गुणने संभारे, तेनुं हृदयमां ध्यान करे ते पदस्थ ध्यान कहीए.. __२ शरीरमा रह्यो जे आपणो जीव तेमां अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधुप Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) पड् द्रव्य विचार. JAY णाना सर्व गुण छे पह, जे ध्यान त पिंडस्थ ध्यान कहीए. अथवा गुणीना गुणमध्ये एकत्वता उपयोग करवो ते पिंडस्थ ध्यान. ३ रुपमा रह्यो थको पण मारो आत्मा अरुपी अनंतगुणी छे जे वस्तुनो स्वरुप अतिशयावलंबी थया पछी आत्मानुं स्वरुप एकतापणुं एहवं जे ध्यान तेने रुपस्थ ध्यान ककहीए. ए त्रण ध्यान धर्म ध्यानमां गणवां. ४ लिराकारनिः संगीः निर्मल, संकल्प विकल्प रहित, अभेद, एक शुद्ध, सत्तारुप, चिदानंद, असंग, अखंड, अनंतगुण पर्याय रूप आत्म स्वरुपर्नु ध्यान, ते रुपातीत ध्यान जाणवू. अहीयां मार्गणा गुणठाणां नय प्रमाण मति आदिक ज्ञान क्षयोपशम Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १४९ ) भाव सर्व त्याग करवा योग्य थाय छे. ए रुपातीत ध्यान कर्तुं विशेष चार ध्याननुं स्वरुप योग शास्त्र आदिथी जाणं. त्रीजुं धर्म ध्यान तेनी चार भावना क हे छे. ( १ ) मैत्री भावना ( २ ) प्रमोद भावना ( ३ ) कारुण्य भावना (४) माध्यस्थ भावना. १ मैत्री भावना - सर्व जीव साथे मित्रता चितवत्री कोइ जीव मारो दुश्मन नथी. सर्वे जीवना आत्मा सिद्ध समान सत्ताए छे, अने कर्मनाशथी संसारमां सुखी दुःखी देखाय छे, ते सर्व जीव मारा सजातिय भाइ छे. एकेंद्री आदिथी पंचेंद्री पर्यंत सर्व जीव Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) 'षड् द्रव्य विचार. सजातिय छे ते मारा बांध्व छे. मित्र छे. तो तेमना ऊपर मारे द्वेष करवो नहीं तेमनु भलुं चितव. मारु खराब करवाने कोइ समर्थ नथी. कर्मनोज ए प्रपंच छे, कर्म ए जड वस्तु छे. अचेतन छे, रुपी छे कर्म वस्तु विजातीय छे, ए थकी मारे दूर रहे, जोइए अने एना प्रपंचमां फसाईं मारे योग्य नथी, अनादिकालथी ए कर्म जड वस्तु मने चार गतिमां भटकावे छे. अने मारु पोतानु स्वरुप ओळखाववा देती नथी. जेम दारु सारा माणसने पण बेभान बनावी देछे. अने तेना गुणनो नाश करे छे. तेम कर्म वस्तुए मारा गुणनो इश को छे. जेम कोइ पांच मित्रो हळीमळने दररोज Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १५१ ) . एकठा रहे छे अने एक बीजा साथै सारीरीते मित्रताइ राखे छे. परस्पर भलु वांछे छे. एक दीवसे पांच मित्रोए दारु पीधो, ते दारुनी नीशा खुव चढी, त्यारे, ते अरस्परस गाळो देवा लाग्या. अने एक बीजाने मारवा लाग्या, तेमां ए सर्व प्रपंचनु कारण दारु छे, हवे ज्यारे ए दारुनो नीशो उतरी गयो त्यारे ते एक बीजा साथे हळीमळीने बातो क रखा लाग्या, अने मित्रपणे वर्ता लाग्या. तेम कर्मरूपी दाना जुस्साथी सर्व जीवो ए क बीजाने शत्रु दुश्मन भाइ बेन वगेरे प्रपंच तरीके माने छे, पण तेमां जीवोनो कांइवांक नथी. ए सर्व कमेनुं फळ छे, अने कर्मे करी जीव वीजा जीवने दुश्मन तरीके धारे छे. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५२ ) पड् द्रव्य विचार. पण तेमां कांइ जीव कोइनो दुश्शन नथी. कर्म थकी रहीत थएला सिद्ध महाराजनुं कोइ खराब करवा समर्थ नथी तेम हुं पण ज्यारे कर्म रहीत थइश, त्यारे कोइ मारु खराब करी शकवा समर्थ नथी, कर्म तेज दुःख कारी छे. कूतराने कोइ माणस कांकरो मारेतो ते का कराने करडवा दोडे छे. सिंहने कोइ माणस गोळी मारेतो ते गोळी तरफ नहीं जतां ए गोळो कोणे मारी एमलक्षी मारनार सामो दोडे छे. तेम केटलाक प्राणी कृतरा अने के. टलाक सिंहना जेवा होय छे. कोइ माणसे ___ कंइ तेनुं बगाडयुं होयतो ते मागसे मारु व. गाडयुं. अरे ए मारो शत्रु छे. अरे Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - -- पड् द्रव्य विचार. (१५३ ) ए मारो वैरी छे. एम धारी तेनुं भू९ करवा तत्पर थाय छे. अने द्वेष करे हे. पण वीचारतो नथी के जो मारे शुभकर्मनो उदय वर्ततो होततो ते मारु भूईं शीरीते करवाने समर्थ थात. पण हाल माठाकर्मनो विपाक उदये आव्यो छे. तेथी ते निमित्त कारणभूत थयो छे. पण तेमां कंइ तेनो दोष नथी. ए अशुभ कर्म में कर्या छे. माटे तेनो ए दोष ले. माटे हे चेतन तु कर्मबंध रहीत था. अने कर्मनी जाळमा फसाइश नहीं. जेटलां कर्म क जे. तेटलां भोगवयां पडशे तो तु वीजा माणस ऊपर द्वेष शाकारण करे छे. ए तारो मित्र छे. तारु बगाडवा ए समर्थन__थी, एम भावना भावे. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४ ) षड् द्रव्य विचार. namanna सिंह जेम गोब्ी मारनार तरफ नहीं दोडतां गोली मारनार कोण छ, एम विचारी मारनार सामो दोडे छे. तेम सिंह जेवा पुरुषो दुःखना निमित्त कारण उपर द्रष्टि नही देतां ए दुःख थवार्नु मूख्य कारण कर्म छ. एम विचारी कर्म दूर करवाना ऊपायो शोधे छे. जो में माठां वा सारां कर्म कर्या हशे. तो ते प्रमाणे मारे शुभाशुभ विपाक भोगववा पडशे. तेमां बीजो जीव मारु भूई करवा वा सारं करवा समर्थ नथी. ए दुःख सर्व कर्मथी थाय छे, माटे सिंह पुरुषो कर्मनो नाश थाय तेम वर्ते छे. पण कोइ जीव ऊपर द्वेषभाव करता नथी. मारा आत्माने जेम कर्म लाग्यां छे. ते Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १५५) म बीजा जीवोने पण कर्म लाग्यां छे. पण आत्मा तो सर्वना सरखा, अरुपी, अनंतज्ञान, दर्शन, चारित्रना भोकता छ. अमे सर्वे जीव गुणे करी एक सरखा छीए. सजातीय छीए. माटे सर्वे जीव मारा मित्र छ. एम भावना भावे ते मैत्री भावना कहीए. सर्व जीव उपर हितबुद्धि राखवी तेने मैत्री भावना क २वीजी प्रमोद भावना कहे छे. गुण. वंत अने ज्ञानादिक ऊपर राग तेने प्रमोद भावना कहे छे. धर्म करता जीवोने देखी खुशी थाय. ज्ञानवंस वैरागी मुनीओने देखी हर्ष धरे. तथा दश द्रष्यते दोहीलो मनुष्य जन्म पामीने श्रावक कुल अवतार आदि हुं Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) पड् द्रव्य विचार. धर्मनी जोगवाइ पाम्यो. तेथी मनमां हर्ष धरे. ते प्रमोद भावना. ३ धर्मवंत उपर राग अने मिथ्यात्वी उपर द्वेष पण नहीं तेने माध्यस्थ भावना कहे छे. हिंसक जीव उपर पण उत्तमजीवने करुणा उपजे. उपदेश देवा थकी जो सारा मारगे आवे तो तेने शुद्ध मार्गे आणवो. कदाचित् मार्गे न आवे तो पण द्वेष न करवो. केमके ते अजाण छे. एम जाणवुं ए माध्य स्थ भावना. ४ सर्व जीवने पोताने तुल्य जाणी दयापाले, कोइने हणे नहीं. तथा जे दुःखी हो य. वर्महीन होय. तेना उपर करुणा लावे. अने तेनुं भलं करवा चाहे. तथा धर्महीन Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार ( १५७ ) AN-202 मनुष्य देखीने एम चिंतवे जे. ए जीव क्यारे धर्म पामशे. यथार्थ आत्म साधन प्राप्ति स्वरुप धर्मने क्यारे अवलंबशे. एवो जे परीणाम तेने चोथी कारुण्य भावना कहे छे. बारभावना. कुंटुंब, धन. पुत्र, परीवार सर्व बिनाशी छे आ प्रत्यक्ष देखाय छे ते शरीर पण एक दीवस नाश पामशे. जीवनो मूलधमें अविनाशी छे. जे जे नजरे देखवामां आवे छे ते सरवेनो नाश थशे. एम विचार ते पहेली अनित्यभावना. __ २ संसारमा जीवने मरण समये शरण राखवा कोइ समर्थ नथी. माता, पीता, भाइ, बेन, पुत्रादि जोतां आ शरीर मूकी जी Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५८ ) षड् द्रव्य विचार. व चाल्यो जाय छे, पण ते कोइनाथी रखातो नथी. राजा होय वा रंक होय. कीडो होय वा इंद्र होय. तोपण मृत्यु कोइने मूकतुं नथी. चारगतिना जीवोने मरण थकी रक्षण करी शरण राखवा कोइ समर्थ. नथी. एम विचारवं ते बीजी अशरणभावना जाणवी. ३ कर्मना योगे आ आत्मा चारगतिरुप संसारमा अनादिकालनो जन्म मरण करे छे. अने असा दुःख भोगवे छे संसार वळतानि ( दावानळ ) समान छे. ऊत्तम पुरुषोए चारित्र ग्रहण करी संसारनो त्याग कर्यो छे. अरे हुं महा पापी संसारमां राच्यो माच्यो हुं हुं हवे दुखःमय संसारथी क्यारे छुटीश आ प्रमाणे विचारणा ते संसारभा Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रष्य विचार. (१५५) वना जाणवी. ४ आ जीव एकलो आव्यो छे, अने अहींथी एकलो बीजी गतिमां ज. प. ण धन धान्यादि परिग्रह, पुत्र, कलत्र, विगेरे मारी साथै आववार्नु नथी. कुटुंब- पेट भरवा सारु. हिंसा, असत्य, चोरी-कूड कपटथी हुँ लक्ष्मी पेदा करूं छु. पण तेथी थएला पापमांथी. कोइ भाग लेनार नथी. ए मारे एकलाने भोगवई पडशे. सगांवहालां, वहालीस्त्री, पुत्र, दीकरीओने जन्मनी वखते साथे लाव्यो नहोतो. पूर्वभवना संबंधी मारे तेमनो मेळाप थयो छे. पण अंते सर्व मूकी मारे एकलं अq पडशे जे जे ममाणे अ. ही है धर्म वा अधर्म करछु तेते प्रमाणे परम Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६० ) षड् द्रव्य विचार. वमां सुख दुख पामीश. परने मारु मानी हुँ मकलाऊछं. पण हे जीव तारु कोइ नथी. संबंधे करी सर्व भेगुं थयुं छे. ते सर्वनो एक दीवस वियोग थशे. चोराशीलाख जीवायोनि भमतां दश द्रष्टांते दोहीलो मनुष्य जन्म पामी. हवे तुं प्रमाद करे छे. आखो दीवस घांचीनी घाणीना बळदनी पेठं. पाप काममां लागी रह्यो छे. पण जाणतो नथी के, मूढ अंते दुःख अनंतु भोगवू पडशे. आ देखाता शरीरनी पण अंते खाख थइ जवानी छे. माटीमां माटीरुप थइ जशे. आ वखते जेवी धर्मनी सामग्री मळी छे, तेवी वारंवार मलनार नथी. माटे हे चेतन, चेत, चेत, माथे काळ झपाटा देत. तुं क्याथी आव्यो. कयां जा Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडव्य विचार. (१६) Anani w ritinutriticianmint - इश. तुं कोण छे. तारं कोण छे. एनो विचा. र कर. राग, रावण, पांडच, कौरव, लक्ष्म ण जेवा वीरपुरुषो एकीला गया. तो तुं कम गोहरानानी घेतमा उधे छे. जाग जाग ए. कत्वपणु धार. इत्यादि विचारणा ते एकत्व भावना जाणवी. ५ आ संसारमा कोइ कोइनु नथी. सौ स्वार्थ सगुं छे. ज्यारे आपणाथी बीजान स्वार्थ सरतो नथी. तो आपणा उपरथी हेत उतरी जाय छे. हे चेतन तारी नगरे जे जे पदार्थो देखाय छे ते ताराथी जुदा छे. अने तुं तेनाथी जुदो छे. माता, पीला भाइ, बेन, स्त्री. पुत्र, धन, ए सर्व हे जीव तारायी जुदुछे आ शरीर छे तेपण हे चेतन ताराथी Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) एड् द्रव्य विचार. 4402 जुदुं छे. लेश्या, योग, पांच संस्थान, पांच शरीर, तथा पांच संघयण, दस प्राण पांच इंद्री, ए सर्व हे चेतन ताराथी जुदुं छे. तेनामां पोतापणुं मानीश नहीं एम विचार ते अन्यत्व भावना जाणवी. ६ आ शरीर अपवित्र मळ मूळनी खाण छे. असुचिमय छ, पुरुषनां नव अने स्त्री नां बार द्वारथी सदा अशुचि नीकळे छे, हाल आ शरीर पवित्र लागे छे. पण रोग थए छते दुर्गधि युक्त थइ जशे. मांस रुधिर मेद हाडकांथी आ शरीर बन्यु छे, तेने देखी हे चेतन तुं शुं राचे छे. गर्भावासे तुं कीडानी पेठे नवमास मळमां रह्यो, मूयेनो प्रकाश आ वे नही, अने ऊंधे मस्तके रहेवू, एहवां गर्भ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (१६३ ) नां दुःख चेतन शुं तुं वीसरी गयो ? माटे आ अशुचि मय काया देखी मोह पामी शुं राचे छ ? एम विचार ते छठी अशुचि भावना. (७) चेतन मिथ्यात्व, इंद्रिय, कषाय, अने अव्रत थकी आश्रवनुं ग्रहण करे छ, शुभाशुभ कर्मनां दळीयां आववानो रस्तो आश्रय छे, शुभ दळीयांने पुण्य कहे छे. अने आत्मानी साथे लागेला जे कर्मनां अशुभ दळीयां तेने पाप कहे छे, हिंसा, असत्य, चोरी मैथुन परिग्रह थकी आश्रवनो बंध था. य छे तथा राची माचीने पांच इंद्रियोना त्रेवीश विषय शेववा थकी आश्रयनो बंध था य छे. प्रमादना वश थकी तेम मन वचन Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४ ) पड् द्रव्य विचार. - - - - 10 nep कायाना दुप्रणिधानथी तेमज क्रोधमान माया, लोभ, तथा हास्य रति, अरति, शोक, भय दुगंछा स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंशकवेद, ए आदिथी आत्मानी साथे आश्रव लागेछ, जीव अनादि काळधी आश्रवना ग्रहण करवाथी चार गतिमा भम्या करे छे, अने तेथी अनेक प्रकारनां दुःख पामे छे. ए आश्रय महा दुःखदाइ छे. आत्मानो अहित कर्ता छे, माटे तेनाथी हे चेतन तुं दुर रहे एम विचार ते अश्रवभावना. आयनो संबंध म. भवि जीवने अनादि अनंत छे अपने भपिजीबने अनादि सांत छे. ८ आश्रवनो जेनाथी रोध शाय लेने संबर कहे छे. हे जीव इयर्यासमिति, भावास Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट हृव्यं विचार. ( १६९ मिति, रुपणासमिति इत्यादि पांचसमिति. अने गुप्त शुद्धि क्यारे पाळीस. अने बावीस परीसहने समभावे तुं क्यारे सहीय. हे चेतन तं विनयामिलापथी मन पालुं बाळ. त्यादि दशविध यतिधर्म शुद्ध पाळवा उयम करके जैथी आत्महित थाय. ए यतिवर्म भवोभवनां दुःख टालणाहार छे. अने पंचमो गति जे मोक्ष तेने आपनार छे. छे. धन्य धन्य के ते मुनिराजने कजे मान अपमान चित्तमां समगणे छे. सोनुं अने पाषाण चित्तमां समगणे छे. अने शत्रुमित्र उपर समद्रष्टि राखे छे. पांच प्रकारनां चारित्र हे जीव तने क्यारे उदये आवशे. अहो हुं क्यारे एकाकी अप्रतिवद्ध विहार करीश. हे चेतन कोइपण • Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) षड् द्रव्य विचार. 200- 2 0200.000000 - - THANI जीव साथे वैर विरोध करीश नहीं. कारण के तेथी तुं भवोभव दुःख पामीश. कपट क. र नहीं. विश्वास घाती थाइश नहीं. संसाररुप समुद्रमां बुडाडनार नव प्रकारनो प. रिग्रह छे. तेनो त्याग कर. मूर्छा ममता राखवाथी पण जन्ममरण करवां पडे छे. तो साक्षात् नवविध परिग्रह केवां केवां दुःख पमाडशे. माटे तेनो त्याग कर. विषयने विप. ( झेर ) सरीखा जाण. एकेक इंद्रिय विषयथी. भमरो, पतंग, मृगमीन दुःख पामे छे. तो जे पांचे इंद्रियोने वश थइ गया छे. तेनी शी गति थशे. अरे हुं अनादि काळथी संसारमा ऊचनीच कुळमां ऊत्पन थाउछु. पुण्यना योगे उचकुळमां अवतरी नीचकुळमां Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. ( १६७ ) उत्पन्न थए लानी निंदा करी पाछो नीचकुळमां उत्पन्न थयो. एम हे चेतन तुं अनंतिवार उचपणुं तथा नीचपणुं पाम्यो. बटाटा. शकरीयां, गाजरीयां, मुळा, आदु, लसणमां तुं अनंतिवार उत्पन्न थयो. तो ते वखते तारु उचपणुं क्यां गयुं हतुं. एवी रीते आटमद हे जीव तुं करीश नहीं, ए आठमद आत्मा. ना गुणोनो नाश करनार छे. स्थुलीभद्र मरीची. सनत्कुमार, आदि एकेक मद करवाथी कटुक विपाकने पाम्या छे. माटे ए आठमदनो त्यागकर. कर्मवस्तु थकी तुं जुदो छ. ते अनंत रत्नत्रयीनो भोत्ता छे. तं अरुपीछे. अज छे. अविनाशी छे. अकषायी छे. अरोगी छे अमायीयी छे. अवेदी छे. अ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --suman ( १६०) पडू द्रव्य विचार, छेदी छे. इत्यादि संघरभावना जाणवी . ९ जेनाथी कर्म निर्जरे (दुर थाय ) ने निर्जरा कहे छे. हे चेतन तुं निभावनादयने विपे धारण कर. अने वन पच्चखाणनो आदर कर, ज्ञानसहित क्रिया करवी ते निर्जरानु कारण छे. धारभेदे तपश्चर्या करवायी निर्जरा थाय छे. निशाचित कपण तप थकी दूर थाय छे. सुकोशल मुनि. दंदणकुमार गजसुझुमाल जेबा अली चरोने धन्य छे के जे उग्रतपश्यों करी छे. पण ज्यारे तेवी रीते तपश्चर्या करील. त्यारे धन्य दीवस मानीश. इत्यादि विचारणा ते निर्जरा भावना जाणवी. . १० चऊदराज लोकतुं स्वरुप विचार, Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड द्रव्य विचार. ( १६९ , न म U . ते लोक स्वरूप भावना जाणवी. एर्नु स्वः रुप पूर्व लखवामां आव्युं छे तेथी- अहीं नथी लयं, ११ संसारमा भमतां जीवने समकितभी मति बनी दुर्लभ छे. समाकित पास्या छतो पण चारित्र ग्रहण करवू दुर्लभ छे. इत्यादि विचारणा ते बोधि दुर्लभ भावना जाणवी. १२ प कथन करनार सद्गुरु तथा जीनेश्वर भगवाननी स्याद्वादमय वाणी सांभळवी तेनी जोगवाइ दुर्लभ छे. ते बारमी धर्मदुर्लभ भावना जाणवा. ए बार भावनानो विस्तार ग्रंथ गौरवना भयथी कयाँ नथी. विशेष अधिकार बीजा .. PNP Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७० ) षड् द्रव्य विचार. ग्रंथो थकी जाणवो. मनुष्य जन्म पामी आ. लस, विषय, कषाय, परभावमां जो आयुय गाळीशतो हे चेतन दुर्गतिमां जाइश. आ. त्मस्वरूप ओळख घणु दुर्लभ छे. चिंताम णि रत्न पाभवं ते सहेल छे पण आत्मज्ञान स्याद्वाद रीते थवं मुश्केल छे. मारो आत्मा शाश्वतो छे, पण कर्मना प्रपंचथी चतुगतिरु संसारमा भटके छे. हे चेतन तुं ज्ञान, द. र्शन, चारीत्ररूप रत्नत्रयोकरी सहीत छ. धन कुंटुंब, इंद्रिय, शरीर, लेश्या, योग, ए सर्व परवस्तु छे. एमां तारु कंइ नथी. आ जीव धन पुत्र स्त्रीना मोहमा फसाइ तेने पोतानु मानतो अनंत दुःखनी परंपरा पामे छे. संयोगी वस्तु धन कुंटुंब ए सर्व तारा थकी अ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (१७१) त्यंत जुदी छे. हुं चेतन छ, ए पुदगल अचे तन जड छे. तेनी संगतीए हुं पण जड स्वरुप थयो छु हुं अमूर्त छु. पुद्गल मूर्ति के हुं शुद्धि निर्मल छु. बुद्ध छ, ज्ञानानंदी छं. हुँ विकल्प संकल्प थकी रहीत छ. माहरु स्वरुप अलक्ष्य छे. हुं कर्म रोग थकी रहीत अरोगी छु. हुं छलेश्याथी रहीत अलेशी छ. हुं चार प्रकारना आहार थकी रहीत अणा. हारी छ. हुं अव्याबाध मुखनो भोगी©. हुं अगुरु लघु छ. आ सर्व प्रपंच कर्म थकी छे. एम आत्म स्वरूप भावना भावे. अने स्वगुण रमणता जेम जेम संसार थकी ऊदाशीन पणु थाय छे, तेम तेम संवेगरंगे करी रंगीत आत्मा थाय छे, आ काळमां भव्य प्राणी. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र १७२ ) षड् द्रव्य विचार. ओने ज्ञाननो आधार छे. ज्ञाने करीने आस्मान स्वरुप यथातथ्य जणाय छे, माटे ज्ञाननो घणो अभ्यास करवो एज हिलकारी छे. समकित सहीत ज्ञान दर्शन चारित्र ते मोक्षनु कारण छे, अने तेबु ज्ञान सहीत चारित्र न ग्रहण थइ शके. तोपण श्रेणीक राजानी पेरे सहहणा शुद्ध राखवी. जो सम. कित शुद्ध छे तो मोक्ष आसन्न छे का छे के दसण भठामहो दसण भठोइन च्छि निव्या णं सिझंति चरण रहिया देसण रहिया न सिझंति ॥ १॥ वळी आगममां कयुं छे के जंसके तीकरइ अहवा नसकेई तहय सदहइ सदहमाणो जीवो पावइ अयरा मरंटाणं ।। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ द्रव्य विचार ( १७३ ) अर्थ-रे जीव तु करी शके तो कर अने जो न करी शके तोपण जेवो वीतराग भगवंते धर्म स्याद्वादरूप उपदेश्यो छे. ते प्रमाणे हृदयमांसहा शुद्ध राखनार प्राणी अनुक्रमे मोक्ष स्थानक पामशे. जीवा जीवा पुण्यं पावा सवसेवराय निज्झरणा बंधो मुखखोयत हा नव तत्ता हुति नायव्त्रा - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, अने मोक्ष, एं नवतच छे. या बंधा सव पुण पावा, जीवाजीवाय हुंति विनेया संवर निज्झर मुखो तिनिविए जवादेया || १ || बंध आश्रव पुण्य अने पाप ए चार तत्व त्याग करवा योग्य छे जीव अने अजीव तत्व जाणवा योग्य छे, Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४ ) षड् द्रव्य विचार.. संवर निर्जरा अने मोक्ष ए त्रण तत्व आद. रवा योग्य छे. जीवो संवर निज्जर मुखो चत्तारि हुँ. ति अरुवी रुवी बंधा सव पुण पावा मिस्स हृतिअजीबो-जीव संवर निर्जरा अने मोक्ष ए चार तत्व अरुपी छ, बंध आश्रव पुण्य अने पाप ए चार तत्वरुपी छे, अने अजीव तत्वरुपी पण छे, अने अरुपी पण छे. धर्म अधर्म आकाश अने काळ ए चार द्रव्य अजीव भूत अरुपी छे अने पुद्गल द्रव्य अ. जीव स्वरुप रुपी छे. ए छ द्रव्यना अगीआर ११ सामान्य स्वभाव हे छे. १ अस्तिस्वभाव २ नास्तिस्वभाव ३ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य विचार. (१७५ ) नित्यस्वभाव ४ अनित्यस्वभाव ५ एकस्वभाव ६ अनेकस्वभाव ७ भेद स्वभाव ८ अभेदस्वभाव १ भव्यस्वभाव १० अभव्य स्वभाव ११ परमस्वभाव ए अगीआर सामान्य स्वभाव छे. छ द्रव्यना दस विशेष स्वभाव कहे छे. . १ चेतन २ अचेतन ३ मूर्ति ४ अप. ति ५ एक प्रदेश ६ अनेक प्रदेश ७ शुद्ध ८ अशुद्ध ९ विभाग १० ऊपचरित स्वभाव ए दस विशेष स्वभाव छे ते श्री केवळी भगवान केवळज्ञानथी जाणे, अने देखे ए दश विशेष स्वभाव ते कोइक द्रव्यमां छे, अने कोइ द्रव्यमा नथी. ए सर्वे स्वभाव सिद्ध भ. गवान ज्ञानेकरी जागी रह्या छे. एवा अनंत Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६ ) पहू द्रव्य विवर. गुणी सिद्ध भगवान समान पोताना आत्माने जाणी उपादेय करी ध्यावे, तेज समकित जाणवु. चउरा लोकनो संघ लोकाकाश सादिसांत छे. ते आवी रीते जे - लोकना मध्य भागे आठ रुचक प्रदेशथी मांडीने सादि के. अने चऊराज लोकानो अंत आवे तीहां सांत. तथा चउराज लोकनौ बेल्लो प्रदेश मुकीने पर्छ आ लोकनी आदि लेवी. पण अलोकने अंते नथी. माटे सादि अनंत क ह्युं छे. छ द्रव्यना यथार्थ ज्ञानपूर्वक हेय पांच द्रव्य त्याग करे. अने जीव द्रव्य आदरवानो परिणाम तेने समकित ज्ञान कही. ते सम Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड् द्रम्य विचार. ( 160 ) कित ज्ञानथी भलुंज थाय छे. कां छे के-नायम्मि गिन्हियद्दयन्वे अगिहि यव्वेअ इच्छअच्छमि जवमेवहजो सोउपरसो नओनाम. भावार्थ- शानथी छ द्रव्य जाणीने आदरवा योग्य होय ते आदरे- अने त्यागवा योग्य त्याग करे. एषो जे ते नय उपदेश जाणवो. इवे समकितनी दशरुचि कहे छे. १ निसर्गरुचि-ते निश्रय नये करी जीवादि नवतत्व जाणे, आश्रव त्यागे, संवर सेवे. वीतरामना कहेला छ द्रव्य ते द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावधी जाणे. नामादि चार निक्षेपा जीमाझा पूर्वक पोतानी बुद्धिथी जा णे. सह. वीतरागे कहेला भाव सत्य छे, एम चाण ते, Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८ १ षड् द्रव्य विचार. २ उपदेशरुचि - नवतत्व तथा छ द्रव्यने गुरु उपदेशयी जाणीने सङ्घहे ते. ३ आइ रुचि - वीतराग भगवंते कहेली आज्ञानुं मान्यपणुं तेने आज्ञा रुचि कछे. Tho ४ सूत्राचे - वर्तमानक विद्यमान पीस्तालीश आगमादि, मूलसूत्र, तथा नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका. ए पंचांगीनां वचन माने ते जीव सूत्ररुचिवंत कहेवाय छे. आ - गम भणवानी तथा सांभळवानी घणी चाहना होय ते सूत्ररुाचे जाणवी. ५ गुरु मुखथी एकपदनों अर्थ सांभलीने अनेक पद सदहे. ते बीजरुचिं. ६ सूत्र - सिद्धांत अर्थ सहीत जाणे. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षड् द्रव्य चार. 0) अने अर्थ विचार सांभळवानी घणी चाहना होय ते अभिगमरुचिः ७ पट् द्रव्यना गुणपर्यायने चार प्रमा. ण तथा सात नये करी जाणे ते विस्तार• रुचि. ८ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय, वैयावस्य, समिति. गुप्ति. चरण सित्तरी अने करण सित्तरी सहीत. आत्म धर्म साथे जेने घणी रुचि होय. ते क्रिया रुचि. ९ अर्थज्ञान थोडु कहे छते घj जाणीने कुमतिमां पडे नहीं. ते संक्षेपरुचि. १० पांच अस्तिकायनुं स्वरुप जाणे. श्रुतज्ञाननो स्वभाव अंतरंग सत्ता सद्दहे. ते धमरुचिं समकितना सडशठ बोल जाणी. आ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) षड् द्रष्य विवार. صصصصحصحصد दरे. ते जीव समकिती कहेवाय छे. हे भव्य पाणीयो पूर्व पुण्ययोगे करी मनुष्य जन्म पाम्या छो. माटे शुद्धदेव, शुद्धगुरु, अने शुद्धधर्म ओळखी आदर करो सामायक पुजा, प्रभावना, पडिक्कमण, पोसह, श्रावकनां बारव्रत साधुनां पंचमहाव्रत, तीर्थयात्रा, सद्गुरुवाणी, जीर्णोद्धार शुद्धक्रियानो खप इत्यादि धर्मकरणी हृदयमां धारण करो. के जेथी अनुक्रमे शीवसुख पामो. ___ आ षद्रव्य विचार नामनो ग्रंथ आगमसार. नयचक्र आदि ग्रंथोनी सहायताथी ते ग्रंथोना अनुसारे भव्यजीवोना उपगार भणी बनाव्यो छे. तेमां कंइ वीतरागनी आज्ञा विरुद्ध भाषण थयुं होय. लख्यु होय. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद द्रव्य विचार ₹१४) Lancetamacaran00000000 ते त्रिविधे करी मिरद्वमि कुकर्ड दऊर्छ, आ ग्रंथमां कोइ कंइ दोष, विभ्रम चित्तथी थयो होय तो ते सुधारवा पंडीत पुरुषोए कृपा करवी. शुभे यथाशक्ति यतनीयं. ए न्यायने अनुसरी में उद्यम कर्यो छे. तेथी हुँ मारी महेनत परोपकार थये छते. सफल मानीश. आ ग्रंथ पंडीत पुरुषोने योग्य छे. आग्रंथ वांची व्यवहार मार्गमां स्नेह धरी हृदयमा निश्चय दृष्टि राखशे ते आत्मसुख पामशे. दुहा अध्यातमरसझीलवा, ए षड् द्रव्य विचार; जे भवी प्राणी धारशे, ते लहेशे सुखसार. १ जन्म मरण करी आतमा, रब्यो काळ अनंत Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) षड् द्रव्य विचार. ४ जीनवाणी पद् द्रव्यनी, सुणतां होवे संत. २ सात नये करी आतमा, सप्तभंगी ए धार; आत्म स्वरुप विचारशे, ते लहेशे भवपार, ३ ओगणीश अठ्ठावननी, विक्रम साल रसाल: फागुण मासनी पंचमी, रुडो शुकरवारपादरा नगरे शोभता, शांतिनाथ भगवंत; तेह तणा चरणे नमी, ग्रंथ कीयो गुणवंत. ५ विनयवंत विवेकवंत, श्रावक मोहनभाइ; हीमचंद तणा सुत कारणे, ग्रंथ कीयो सुखदाइ ६ तपगच्छ गयण दिवा करूँ, हीरविजय सुरिराय; सहेजसागर तासशिष्य, पदवी उपाध्याय ७ पाट परंपर तेहनी, रविसागर गुरुराय; सुखसागर शिष्य तेहना, विनयवंत कहाय. ८ तास चरणने सेवतो, बुद्धि कछे एम; Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ ध्य विचार. (a) भणेगणे जे धारसे, ऋद्धि सिद्धि लहे क्षेम. ९ ज्यां लगे शशी सुरज रहे, जगमां करे प्रकाश भवीजन मनमां भानुसम, थइने करजो वास.१० ए षड् द्रव्य विचार ग्रंथ, जीनवाणीथी रसाल, भणशे गणशे ते भवी, लहेशे मंगलमाल ॥१॥ संपुणम् श्रीः शांति शांतिः शांतिः शांतिः शांति शांतिः 00k Page #195 --------------------------------------------------------------------------  Page #196 -------------------------------------------------------------------------- _