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षट् द्रव्य विचार
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नो प्रपंच विचित्र छ जेम ब्राह्मीरुप जड औ. षधिना भक्षण थकी बुद्धिरुप वस्तुनु स्फुरायमान पणु थाय छ, तेम की वस्तु जे जडरुपे छे, तेना संबंध थकी आत्मा विचित्र आकारे देखाय छे. अने जुदा जुदा प्रकारनां शरीरने धारण करे छे, तेम पांचइंद्री म
न वचन अने कायरुप पुद्गल वस्तुने धार___ण करे छे, ए सर्व कर्मना प्रपंच छे, ए कर्म
पुद्गलास्तिकाय छे. जड छे. सक्रिय छे, तेयां आत्मत्वपणु नथी, एम ज्यारे ज्ञान थाय छे त्यारे तेनाथी मोह उतरे छे, ते माटे षड् द्रव्यनुं ज्ञान थवाथी समकितनी प्राप्ति थाय छे ते षड् द्रव्य देखाडे छे.
(१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय
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