________________
( १५० )
'षड् द्रव्य विचार.
सजातिय छे ते मारा बांध्व छे. मित्र छे. तो तेमना ऊपर मारे द्वेष करवो नहीं तेमनु भलुं चितव. मारु खराब करवाने कोइ समर्थ नथी. कर्मनोज ए प्रपंच छे, कर्म ए जड वस्तु छे. अचेतन छे, रुपी छे कर्म वस्तु विजातीय छे, ए थकी मारे दूर रहे, जोइए अने एना प्रपंचमां फसाईं मारे योग्य नथी, अनादिकालथी ए कर्म जड वस्तु मने चार गतिमां भटकावे छे. अने मारु पोतानु स्वरुप ओळखाववा देती नथी. जेम दारु सारा माणसने पण बेभान बनावी देछे. अने तेना गुणनो नाश करे छे. तेम कर्म वस्तुए मारा गुणनो इश को छे.
जेम कोइ पांच मित्रो हळीमळने दररोज