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__षद् द्रव्य विचार.
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रकनी गतिमां जाय छे. माटे भव्यात्माओए चार प्रकारचें रौद्र ध्यान ध्या नहीं. महा रौरव भयंकर दुःखनु कारण रौद्रध्यान छे. रौद्रध्यान पांचमा गुणठाणा सुधी छे. छठे गुणठाणे पण एक हिंसानुबंधी रौद्रध्यानना परिणाम कोइक जीवने होय छे. रौद्रध्यान रूप सर्प जेने करडे छे, तेने चतुर्गतिरुपः भव भ्रमण करर्बु एडे छे. जेम सर्पनो भय लागे छे, तेम बैरागीओने रौद्रध्यानरुप सर्पगे भय लागे छे. मंत्रवडे मंत्रवादीओ जेम सर्पर्नु मेर उतारे छे तेम धर्मध्यानरुप मंत्रवडे वैरागीयो पापरुप झेर उतारे छे. सर्प जेम अनिष्ट - गे छे तेम ज्ञानीओने रौद्रभ्यानरूप सर्पः बनिष्ट लागे छे. जनसमुह सर्पने पासे आश्वा