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षड् द्रष्य विचार.
जीव, रागद्वेषरुप अशुद्धताए करीसमय समय अनंता पुद्गल परमाणुानु ग्रहणरुप क्रिया करे छे, अन पुद्गल परमाणुआने वळगवानो स्वभाब छे, माटे पुद्गल परमाणुआ वलगवारुप क्रिया करे छे, माटे अनादिका
ना जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य म. ळवा विखरवारुप क्रिया करे छे माटे सक्रिय जाणवां.
हवे ए छ द्रव्यमां नित्य केटलां द्रव्य अने अनित्य केटलां ते बतावे छे. निश्चय नये करी छए द्रव्य नित्य छे. अने निश्चय नये करी छए द्रव्य अनित्यपण छे. तथा व्यवहार नये करी तो चार द्रव्य नित्य जाणवां. अने वे द्रव्य अनित्य जाणवां. धर्मास्ति कायना अ