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पड द्रव्य विचार. ( १३५ ) नंत दुःश्वनो हेतु भूत छे. हे चेतन तुं आप
आप विचार के रौद्रध्यानरुप शत्रु तने हितकर्ता छे के अहित कर्ता छे हितकर्ता तो कदापिकाले कहीं शकाय नहीं. अने अहित करनार तो प्रत्यक्ष देखवामां आवे छे छतां तुं कम तेनो संग छेडतो नथी. शुं तने कंड पैसा बेसे छे ना तेम पण नथी. द्रढ प्रहारी जेवा हिनके पण ए शत्रुनो संग त्याग कशे त्यारे सुख पाया. बळी विचार के ए रौद्र ध्यानरुप शना वशमां पडेलोमम्मण शेट. तथा संभूम चावर्ति नरकनां महा रौरव दुःख भोगवे छ. तेम छतां केम तुं इण मनमा विचार करतो नथी. मूर्यने तथा चंद्रने जा राहु घेरे छे. तेम तने रौद्रभ्यानरुप राहु ग्र