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पड़ द्रव्य विचार
( १७३ )
अर्थ-रे जीव तु करी शके तो कर अने जो न करी शके तोपण जेवो वीतराग भगवंते धर्म स्याद्वादरूप उपदेश्यो छे. ते प्रमाणे हृदयमांसहा शुद्ध राखनार प्राणी अनुक्रमे मोक्ष स्थानक पामशे. जीवा जीवा पुण्यं पावा सवसेवराय निज्झरणा बंधो मुखखोयत हा नव तत्ता हुति नायव्त्रा - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, अने मोक्ष, एं नवतच छे.
या बंधा सव पुण पावा, जीवाजीवाय हुंति विनेया संवर निज्झर मुखो तिनिविए जवादेया || १ || बंध आश्रव पुण्य अने पाप ए चार तत्व त्याग करवा योग्य छे जीव अने अजीव तत्व जाणवा योग्य छे,