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पट् द्रव्य विचार.
श्री जीनेश्वर कथीत वाणी सांभळवाथी आत्मानुं स्वरुप यथातथ्य समजाय छे, माटे ज्ञाननो घणो खप करतो. ज्ञान विना जीव अजीव आदि पदार्थतुं सम्यद ज्ञान
तुं नही. आत्मा नित्य केवी रीतेछे अनित्य केवी वेळे उत्पाद व्यय अने ध्रुव शीवस्तु छे तेनुं जीहां सुधी ज्ञान नथी, वहां सुधी जीव सम्यक वस्तु जाणी शकतो नथी अने हेय ज्ञेय अने उपादेय पण जाणी शकतो नथी. सम्यक् वस्तुना ज्ञान थकी सम्यऋत्व प्राप्त थाय छे. माटे ज्ञाननी आवश्यकता छे.
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२ निश्चयज्ञान
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ज्ञानना पण वे भेद छे १ व्यवहारज्ञान