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पड् द्रव्य विचार.
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कायाना दुप्रणिधानथी तेमज क्रोधमान माया, लोभ, तथा हास्य रति, अरति, शोक, भय दुगंछा स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंशकवेद, ए आदिथी आत्मानी साथे आश्रव लागेछ, जीव अनादि काळधी आश्रवना ग्रहण करवाथी चार गतिमा भम्या करे छे, अने तेथी अनेक प्रकारनां दुःख पामे छे. ए आश्रय महा दुःखदाइ छे. आत्मानो अहित कर्ता छे, माटे तेनाथी हे चेतन तुं दुर रहे एम विचार ते अश्रवभावना. आयनो संबंध म. भवि जीवने अनादि अनंत छे अपने भपिजीबने अनादि सांत छे.
८ आश्रवनो जेनाथी रोध शाय लेने संबर कहे छे. हे जीव इयर्यासमिति, भावास