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षड् द्रव्य विचार. (१७) सर्व क्रियाथी रहीत थाय ते समुछिन्न क्रियायानु वृत्ति शुकल ध्यान कहीए. ए ध्यान ध्यावतां शेष दलखरण रुप क्रिया ऊछेदे. अवगाहना देहमानमांथी चीजो भाग घटाडे, शरीरनो त्याग करी इहांथी सातराज ऊपर लोकने अंते जइ सिद्ध थाय छे.
हवे वळी वीजा चार ध्यान कहेछे (१) पदस्थ (२) पिंडस्थ ( ३ ) रुपस्थ (४) रुपातीत.
१ अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु ए पंच परमेष्टीना गुणने संभारे, तेनुं हृदयमां ध्यान करे ते पदस्थ ध्यान कहीए.. __२ शरीरमा रह्यो जे आपणो जीव तेमां अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधुप