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षड् अग्ध विचार.
ची रहे. पुद्गल सुखनिधान, तस लाभे लोभ्यो रहे. बहिरातम अभिधान ॥१॥ पुद्गल से न्यारो नही आतम एवी बुद्धि, बहिरातम सुख क्युं लहे, प्रगटे नहीं स्व शुद्धि ॥२॥
२ जे देह सहीत जीव छे पण निश्चय सत्ता गुण सिद्ध समान छे एटल पोतानाजी बने सिद्ध करी ध्याचे ते अंतरात्मा जागयो. एटले पुद्गल वस्तु आत्मानी नथी, आत्मा. थी शरीर इंद्रिय लेश्या विगेरे भिन्न छ, आ स्मा अरुपी छे, पुदगल (कर्मरुप) रुपी छे, आत्मा चेतना सहीत छे, कर्म जड छे, आत्माने चार गतिमां भटकवा कारण कर्म छे. ते मारी वस्तु नथी. पण पर वस्तु छ अरे हुँ ए पर वस्तुने पोतानी मानी बेठो छु. अने ते