Book Title: Sanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Author(s): Umashankar Sharma
Publisher: Chaukhamba Surbharti Prakashan

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Page 6
________________ ( २ ) करता था और अर्थ का निरूपण करना निरुक्त का काम था । कालान्तर में इन तीनों वेदाङ्गों का भार व्याकरण पर ही आ पड़ा। वाक्य का विचार मुख्यतया मीमांसा-दर्शन का विषय होने पर भी न्यूनाधिक रूप से न्याय तथा व्याकरण भी इस पर अपनी दृष्टि रखते हैं। कारण यह है कि पदों का साधुत्वमात्र अपने आप में निरर्थक है यदि उनका परस्पर संसर्ग नहीं हो। इसीलिए व्याकरण के अर्थपक्ष में चरम सत्ता के रूप में अखण्ड वाक्यस्फोट का अभ्युपगम हुआ है; जिस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए व्याकरण के समस्त शब्दपक्षीय विवेचन उपक्रान्त होते हैं । तदनुसार वर्ण, पद तथा वाक्य के विश्लेषण के क्षेत्र में व्याकरणशास्त्र को विभिन्न विषयों का विवेचन करना पड़ता है। ये विपय इस प्रकार वर्गीकृत हो सकते हैं १. वर्ण-विचार-उच्चारण, वर्ण-विभाग, वर्ण-विकार ( सन्धि )। २. पद-विचार--सुबन्तरूपमाला, तिङन्तरूपमाला, अव्यय, स्त्री-प्रत्यय, समास, कृत्, तद्धित। ३. वाक्य-विचार-कारक तथा विभक्ति । इनमें विभक्ति का विचार पद तथा वाक्य दोनों में आवश्यक है, क्योंकि बिना स्वादि या तिबादि विभक्ति लगाये पद बन ही नहीं सकता और जब पद ही नहीं बनेगा तो उसका विचार क्या होगा? साथ-ही-साथ पद-साधुत्व के बाद ही वाक्य में उसका स्थान-निरूपण किया जा सकता है कि वह किन पदों से सम्बद्ध है तथा इस सम्बन्ध के परिणामस्वरूप क्या बोध कराता है ? उक्त संकलित बोध ही वाक्यबोध होता है-इसी प्रकार पदों का वाक्यगत सम्बन्ध होता है। वाक्य की रचना में कारकों का सबसे बड़ा योगदान है, क्योंकि वाक्य के प्राणभूत क्रिया की सिद्धि के लिए प्रयत्नशील रहना कारक का ही काम है। क्रिया किसी वाक्य में श्रयमाण हो या गम्यमान - उसका रहना अनिवार्य है । पुनः जब क्रिया रहेगी तो निरपेक्ष नहीं रह सकती। किसी-न-किसी शक्ति की अपेक्षा रखने से ही उसकी सिद्धि हो सकेगी। यहीं कारकों का आगमन तत्तत् शक्तियों के रूप में होता है। इसीलिए वाक्य का लक्षण करते हुए अमरसिंह ने कहा है 'सुप्तिङन्तचयो वाक्यं क्रिया वा कारकान्विता' । यद्यपि सभी व्याकरण-ग्रन्थों में कारक का विवेचन शब्दपक्ष के अन्तर्गत किया गया है तथापि वस्तुत: यह प्रकरण अर्थपक्ष से सम्बद्ध है। शब्दपक्ष के अन्तर्गत इसके निरूपण का प्रधान कारण स्वादि-विभक्तियों के साथ इसका निकट का सम्बन्ध है । इसीलिए अधिकांश वैयाकरण कारक तथा विभक्ति का संयुक्त विवरण देते हैं।

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