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विषय
९२
. अनुत्पत्तिस्वभाव के स्वीकार में इष्टापत्ति ...... भावधर्म और अभावधर्म तुल्य नहीं होते ९३ . ऋजुसूत्र पर्यायनय का विस्तार शब्द- समभिरूढ -
९३
.....
एवंभूतनय
.. ऋजुसूत्रव्याख्यान्तरे विज्ञप्तिवादसिद्धये प्रथमं
९५
पूर्वपक्ष:
. ऋजुसूत्र की अन्य व्याख्या के सामने पूर्वपक्ष
९५ .....
विज्ञप्तिवाद
९६
९७
. अर्थाभाव प्रत्यक्ष का विषय नहीं होता ९६ ..... बाध है तो किस को ? तीन विकल्प . बाधकतत्त्व से बाध की अनुपपत्ति ९८ ..... बाधक ज्ञान की बाधकता पर दो प्रश्न .. अनुपलम्भ बाधक प्रमाण हो नहीं सकता . शुद्धदर्शन में चन्द्रयुगल न भासने का कारण
९८ .......
९९
.....
१०० ... चन्द्रयुगल सिर्फ ज्ञानाकार होने का कथन
विषय निर्देश
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विषय
१०७... विज्ञानवादियोगाचारमतेन विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि : उत्तरपक्षः
गलत
१०० ... अनुमान से भी बाह्याभावसिद्धि दुःशक्य १०१... अनुमान से अर्थाभावसिद्धि अशक्य १०२ ... सहोपलम्भहेतुक अभेदानुमान में बाध असिद्धि दोष
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१०३ ... सहोपलम्भनियम हेतु की सिद्धि के प्रयास का निरसन
१०४ ... बुद्धि प्रत्यक्ष है, सहोपलम्भ के साथ भेद सत्ता नैयायिक
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१०४ ... प्रतिबन्धमूलकभेद दोनों ओर समान १०५... सहोपलम्भ हेतु में अनैकान्तिक या विरुद्ध या असिद्धि दोष
१२१... बुद्धि परोक्षतावादी मीमांसक के मत की समीक्षा ... अर्थप्रत्यक्षता ही बुद्धि, पृथगर्थकल्पना का निरसन १०६ ...ज्ञानमात्र का या अर्थ का एकोपलम्भ हेतु १२२... ग्राह्य - ग्राहक दो आकार युक्त एक ज्ञान
१२२
सदोष
१०६
.... अभेदसाधक तथा संवेदन हेतु में दोषप्रसङ्ग १०६ ... साधारण संवेदनरूप हेतु में दोषपरम्परा
१०७ ... बाह्यार्थवादी के सामने विज्ञानवादी का उत्तरपक्ष १०८... व्यतिरिक्त ग्रहणक्रियापक्ष में विकल्पद्वय की सदोषता
१०९... बोध एवं संवेदनक्रिया में कारण-कार्यभाव असंगत
११० ... समकालीन बोध ग्रहणक्रिया के लिये असमर्थ १११ ... भिन्न ग्रहणक्रिया की उत्पत्ति का नील से क्या सम्बन्ध ?
१११ ... अर्थ की प्रत्यक्षता का तथा कर्मादित्रितयप्रतीति का निषेध
११२ ... त्रितयावगाहि एक कल्पना से ग्राह्यग्राहकभावसिद्धि दुष्कर
११३ ... तुल्यकालीन नीलोद्भासक प्रतीति की अनुपपत्ति ११४ ... बाह्यार्थ एवं संवेदन के अभेदप्रसंग से विज्ञप्तिमात्रसिद्धि
११५ ...नीलदर्शन-पीतदर्शन की ऐक्यापत्ति का निरसन ११६ ...जन्य–जनकभावप्रेरित ग्राह्य-ग्राहकभाव असत् ११७... प्रारभाव के विना भी नियतदेशादि की उपपत्ति
११९
९... विज्ञानवाद में 'नील का प्रकाश' भेदबुद्धि की संगति
१२० ...आत्मप्रकाशन बुद्धि की भी परोक्षता की आपत्ति
असत्
१२३... भ्रमज्ञान के रजताकार की तरह सब ज्ञानमय १२४ ... रजत का लौकिकरूप से ग्रहण में अनवस्था
प्रसंग
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