Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 03
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 8
________________ विषय निर्देश विषय पृष्ठ . क्रम - यौगपद्य से अन्य प्रकार के अभाव की ४२ प्रसिद्धि . सर्वभाव स्व- पर सर्वस्वरूप मानने पर क्षतियाँ .. क्रम - यौगपद्य से अन्य प्रकार की असिद्धि . असाधारणरूप परिच्छेद में अतद्रूपपरिच्छेद का अन्तर्भाव . प्रत्यक्ष से प्रकारान्तराभावसिद्धि कैसे ? प्रश्न का उत्तर ४६ ३१ ..... परोक्ष पदार्थों के लिये भी क्रम- यौगपद्य का ४६ निर्णय सरल ५ पृष्ठ २९.... २९ ३० ३० ३० ३३ ३२ .....प्रकारान्तराभाव की अनुमान से सिद्धि ...... अक्षणिक भाव में क्रम / यौगपद्य की असंगति ३४ . सहकारी द्वारा विशेषाधान के विकल्प का निरसन ३४..... एककार्यप्रतिबद्धतारूप सहकारित्व अघटित ३५ ...... कार्य में सामग्रीजन्यस्वभावता का निरसन ..स्वभावभेदावतारवारणनिष्फलता ३६ ३६ ...... नित्य के कार्यजननस्वभाव वैचित्र्य की शंका उत्तर ३७...... ३६ ..... नित्य पदार्थ में निमित्त सापेक्ष स्वभाव की शंका उत्तर . अक्षणिक भाव में क्रमिक कार्यकारित्व अघटित ... अक्षणिकभाव में युगपत् कार्यकारित्व अघटित . क्षणिक भाव में अर्थक्रियाकारित्व अशक्य शंका ३८ . क्षणिक भाव में सत्त्व हेतु अनैकान्तिक ३९ ..... सत्ता हेतु में अनैकान्तिक दोष का निरसन . क्षणिक भावों में क्षणान्तरजनन अघटित शंका ४०......क्षणान्तरजनन अघटित नहीं ४० उत्तर ४१ ..... भिन्न कारणों में एकरूपता के अभाव का विमर्श — ३७ ३८ Jain Educationa International - विषय . सामान्यरूप अभेदमूलक कारणसामग्री की जनकता शंका उत्तर ४३ ..... अनेक कारणों से अनेककार्यापत्ति का निरसन ४३ ..... अभिन्न तत्त्व में कारणता का स्वीकार दोषग्रस्त ४४ ..... कार्य - कारणभाव सिद्धि का आधार कौन ? ...... क्षणिक भाव से व्यापार के विना कार्योत्पत्ति ४५ शंका - उत्तर ४७ . कार्योत्पत्ति के लिये व्यापार कल्पना निरर्थक ..... नष्ट कारण से कार्योत्पत्ति का असम्भव .. विनाश के लिये हेतुव्यापार नहीं होता ४७ .....अध्ययनादिमतप्रदर्शन निरसन ४८ विनाश का शब्दार्थ एकक्षणस्थायि भाव ४९ ...... अक्षणिकत्व की प्रत्यभिज्ञा में अनुमानबाध ५० .. सद्धेतु और साध्याभाव का स्पष्ट विरोध ५१ ..... प्रत्यक्षज्ञान के प्रामाण्य का आधार कौन ? प्रश्न ५२ ५३ ५३ .. प्रत्यभिज्ञा का बाधक अकेला प्रत्यक्ष नहीं ..... सदोषकारणजन्य होने से प्रत्यभिज्ञा अप्रमाण . अर्थक्रियासाधक न होने से प्रत्यभिज्ञा अप्रमाण . जलादि वास्तव बाह्यार्थ न मानने पर शून्यवादापत्ति ५४ .. प्रत्यभिज्ञा और तद्विषय में भेदापादन ... प्रत्यभिज्ञा नामक आलम्बन के स्वभाव की ५४ ५५ ..... ५५ ५५ कालपृच्छा . अवस्था अवस्थावान् में भेद असंगत . क्रमिक प्रत्यभिज्ञा से विषय - क्रमिकता की सिद्धि ५६ ..... सातिशयता का स्वीकार, भेद का क्यों अस्वीकार ? ५७..... प्रत्यभिज्ञा में प्रमेयाधिक्य / प्रामाण्य का असम्भव ५८ .. पूर्वकालदृष्टार्थता का अपूर्वग्रहण असम्भव For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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